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पढ़क्‍कू की सूझ

19 फरवरी 2022

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 एक पढ़क्‍कू बड़े तेज थे, तर्कशास्‍त्र पढ़ते थे, 

जहाँ न कोई बात, वहाँ भी नए बात गढ़ते थे। 

  

एक रोज़ वे पड़े फिक्र में समझ नहीं कुछ न पाए, 

"बैल घुमता है कोल्‍हू में कैसे बिना चलाए?" 

  

कई दिनों तक रहे सोचते, मालिक बड़ा गज़ब है? 

सिखा बैल को रक्‍खा इसने, निश्‍चय कोई ढब है। 

  

आखिर, एक रोज़ मालिक से पूछा उसने ऐसे, 

"अजी, बिना देखे, लेते तुम जान भेद यह कैसे? 

  

कोल्‍हू का यह बैल तुम्‍हारा चलता या अड़ता है? 

रहता है घूमता, खड़ा हो या पागुर करता है?" 

  

मालिक ने यह कहा, "अजी, इसमें क्‍या बात बड़ी है? 

नहीं देखते क्‍या, गर्दन में घंटी एक पड़ी है? 

  

जब तक यह बजती रहती है, मैं न फिक्र करता हूँ, 

हाँ, जब बजती नहीं, दौड़कर तनिक पूँछ धरता हूँ" 

  

कहाँ पढ़क्‍कू ने सुनकर, "तुम रहे सदा के कोरे! 

बेवकूफ! मंतिख की बातें समझ सकोगे थोड़े! 

  

अगर किसी दिन बैल तुम्‍हारा सोच-समझ अड़ जाए, 

चले नहीं, बस, खड़ा-खड़ा गर्दन को खूब हिलाए। 

  

घंटी टून-टून खूब बजेगी, तुम न पास आओगे, 

मगर बूँद भर तेल साँझ तक भी क्‍या तुम पाओगे? 

  

मालिक थोड़ा हँसा और बोला पढ़क्‍कू जाओ, 

सीखा है यह ज्ञान जहाँ पर, वहीं इसे फैलाओ। 

  

यहाँ सभी कुछ ठीक-ठीक है, यह केवल माया है, 

बैल हमारा नहीं अभी तक मंतिख पढ़ पाया है।  

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रचनाएँ
बाल कविताएँ
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