वो बर्फ ही तो थी जो गिर रही थी धांय धांय। बड़े बड़े रुई के गोले सी। हाथ पैर सब सुन्न हो चुके थे। जब हम लेंकेस्टर (अमेरिका) के पार्क सिटी मॉल से बाहर निकले।
जब हम लोग मॉल के अंदर गए थे। तब मौसम बिल्कुल साफ था लेकिन जब एक घंटे बाद बाहर निकले तो चारो तरफ बर्फ की चादर बिछी हुई थी। चारो तरफ बर्फ ही बर्फ,सड़कें काली से सफेद हो चुकी थी। जब हम लोग रात के लगभग दस बजे घर पहुंचे तो देखा पैगी अपने घर के बाहर की बर्फ साफ कर रही थी। उस समय यॉर्क का टेंमरेचर माइनस 10° था। हम ठंड से बुरी तरह कांप रहे थे और पैगी हाथ में बर्फ काटने का फावड़ा लेकर बर्फ साफ कर रही थी। ठंड के कारण हम अपने बिस्तर में जाकर लेट गए थे लेकिन पैगी करीब 12 बजे तक बर्फ साफ करती रही। उस दिन बर्फ भी बहुत अधिक मात्रा में गिरी थी। घर के आगे का रास्ता भी बर्फ से ढका हुआ था। गाड़ी निकालना भी मुश्किल था।
सुबह जब सात बजे आंख खुली तो खिड़की से देखा कि बर्फ पर चलने वाले बूट और जैकिट पहने हुए, हाथ में बर्फ काटने के बड़े-बड़े औजर लिए दोनों माँ बेटी घर के आगे की बर्फ साफ कर रही थी।
उस समय कड़ाके की ठंड थी,ठंडी हवा चल रही थी। माइनस 12° टेंपरेचर था। हमें घर के बाहर निकलने की हिम्मत नहीं हो रही थी। यहां घर के अंदर सेंट्रल हीटर होने के कारण घर पूरी तरह गर्म रहते हैं इसलिए गर्म कपड़े भी पहनने की आवश्यकता नहीं होती है।
पैगी एक 71 वर्षीय स्त्री थी लेकिन पूरी तरह उत्साह व जोश से भरपूर किसी युविका से कम न थी।
यॉर्क में जहां हमारा निवास था। वह वहीं हमारे पड़ौस में रहती थी।
उस समय मैंने अपनी आयु के छह दशक भी पूरे नहीं किए थे। बस पूरे होने की लाइन पर थे। वहां बड़े छोटे के हिसाब से रिश्ते नहीं होते। सबको नाम लेकर ही बुलाया जाता है इसलिए वह मुझे बड़े प्यार से निशा कहती थी और मैं पैगी।
पैगी की जिंदादिली व कर्मठता ने मुझे कलम पकड़ कर लिखने को मजबूर कर दिया। उसका अपना बहुत बड़ा चार कमरों का घर था।
पीछे बैकयार्ड में स्विंग पूल आदि तथा सामने फूलों का कॉफी बड़ा बगीचा था।
पैगी के पति का नाम माइकल था।
उनके दो बच्चे एक बेटा और एक बेटी थे। बेटा अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ यॉर्क में ही रहता था और बेटी रैमी अपने माता-पिता के साथ वहीं रहती थी...क्योंकि विवाह के कुछ समय बाद ही उसके पति की मृत्यु हो गई थी।
रैमी का पति एयर फोर्स में उच्च अधिकारी था तो इस तरह पैगी के घर में तीन लोग रहते थे। पैगी के पति माइकल भी 71 वर्ष के थे।
दोनों का प्रेम विवाह हुआ था। मुझे याद है पैगी ने मुझे बताया था कि जब वह दोनों मैट्रिक में पढ़ते थे...तब उनकी दोस्ती हुई थी। आज विवाह के 45 साल बाद भी दोनों बहुत प्यार से रहते थे। दोनों ही नौकरी से रिटायर्ड हो चुके थे। पैगी स्कूल टीचर थी और माइकल किसी वेस्ट कंपनी में अधिकारी था।
पैगी अपने घर का सारा काम स्वयं करती थी। घर बहुत ही साफ- सुथरा रहता था। वह सुबह सात बजे से उठकर रात के बाहर बजे तक घर के सभी कार्य स्वयं करती थी। यहां कोई सहायक नहीं होता है। खाना बनाने से लेकर घर की साफ सफाई व मशीनों को ठीक करने संबंधी सभी कार्य परिवार को स्वयं ही करने पड़ते हैं। पैगी अपने लॉन की सफाई भी स्वयं ही करती थी। सूखे पत्तों को उठाना... नये पेड़-पौधे लगाना आदि सभी कार्य वह स्वयं करती थी।
दादी के रूप में अपने पोते व पोतियों का भी बहुत ध्यान रखती थी। परिवार के सभी सदस्यों के बीच में बहुत अपनापन था। तीज-त्योहार पर सब लोग एक साथ मस्ती करते थे। पैगी सबके लिए स्वादिष्ट भोजन बनाती थी। एक साथ गीत-संगीत का कार्यक्रम होता था। मैंने पैगी के चेहरे पर कभी शिकन नहीं देखी...हमेशा हंसती मुस्कुराती रहती थी।
जब पैगी की आंखों की सर्जरी हुई उस समय...तो पैगी की हिम्मत काबिले तारीफ थी। उसने सुबह उठकर घर का सब काम किया और बड़ी हिम्मत के साथ अकेले ही अपनी आंखों की सर्जरी करवा कर आ गई। उस समय माइकल के पैर की हड्डी टूटने के कारण प्लास्टर चढ़ा हुआ था। उसने अपने बच्चों को भी नहीं बताया था। वह 71 साल की उम्र में भी एक 40 चाल की युवती की तरह सभी कार्य बड़ी फुर्ती और चतुरता से करती थी।
पैगी के चरित्र ने मुझे बहुत अधिक प्रभावित किया इसलिए उसके विषय में लिखने के लिए कलम उठ गई। नारी चाहे भारत की हो या अमेरिका की...कठिन परिश्रम ही नारी का गहना है। अपने घर को सुरक्षित,व्यवस्थित व अनुशासित रखने के लिए नारी भरसक कोशिश करती है अगर परिवार भी उसका साथ दे और उसकी प्रशंसा में दो शब्द बोल दे... तो वह अपने परिवार पर मर मिटने को तैयार हो जाती है क्योंकि नारी ईश्वर की एक अद्भुत रचना है।
(जनवरी 2022 में पेंसिलवेनिया प्रवास के दौरान लिखी गई कहानी)