नई दिल्ली : करोड़ों के घाटे में चल रही गुजरात सरकार की पेट्रोलियम कम्पनी 'गुजरात स्टेट पेट्रोलियम कॉरपोरेशन' (GSPC) को उबारने की जिम्मेदारी अब केंद्र सरकार ने अपनी ऑयल एंड नेचुरल गैस कारपोरेशन (ONGC) को दे दी है। ऐसा पहली बार हो रहा है जब केंद्र सरकार किसी राज्य की कपनी को बचाने के लिए अपनी कंपनी को इतने बड़े घाटे में धकेल रही है। सूत्रों की माने तो प्रधानमंत्री कार्यालय चाहता हैं कि गुजरात की ऑयल कंपनी को घाटे से उबारा जाए क्योंकि कोई भी प्राइवेट कम्पनी इतना जोखिम उठाने तो तैयार नही है। जानकारी के अनुसार ओनजीसी अब GSPC के 50 प्रतिशत शेयर खरीदने जा रही है और यह मर्जर इसी महीने होने की संभावना है।
ये है GSPC की घाटे में आने की कहानी
साल 2005 में जब नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने घोषणा की थी कि गुजरात स्टेट पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (जीएसपीसी) को केजी बेसिन ब्लॉक में 20 अरब घनफुट गैस भंडार का पता चला है। इसे GSPC की एक बड़ी उपलब्धि माना गया और गैस ब्लॉक को दीनदयाल ब्लॉक भी रख दिया दिया गया।
लेकिन 31 मार्च 2016 को गुजरात विधानसभा में पेश कैग रिपोर्ट में सामने आया कि गुजरात की जीएसपीसी ने इस ब्लॉक से गैस निकालने के लिए 19,716 करोड़ रुपये खर्च किये लेकिन क्षेत्र से अभी तक गैस का वाणिज्यिक उत्पादन शुरू नहीं हो पाया है। कहा जा रहा है कि ओनजीसी और जीएसपीसी के इस मर्जर से GSPC को 19,576 करोड़ रुपये के कुल कर्ज से निजात पाने में मदद मिलेगी।
कैग रिपोर्ट में यह कहा गया है कि कंपनी ने 2006-10 के बीच विदेशों में भी ब्लॉक हासिल किये। कंपनी ने ये ब्लॉक संचालक के तौर पर लिये जिसमें अधिक हिस्सेदारी खरीदी गई और उसे विदेशों में काम का कोई अनुभव भी नहीं था। इन ब्लॉक में काम शुरू होने में देरी से लागत बढ़ती चली गई। इसी साल राज्यसभा में कांग्रेस पार्टी ने इस मुद्दे को लेकर खूब हंगामा भी किया।
कांग्रेस ने सवाल उठाया कि भारी निवेश के बावजूद वहाँ कोई व्यावसायिक उत्पादन नहीं हुआ, इसका मतलब यह हुआ कि सारा पैसा बर्बाद हो गया। इसके बाद जीएसपीसी को कई गैस ब्लॉक छोड़ने पर मजबूर किया गया।