नीमच : मध्यप्रदेश जिले के रतनगढ़ से मानवता को शर्मसार करने वाली घटना सामने आई है. इंदौर से करीब 275 किलोमीटर दूर स्थित रतनगढ़ गांव में एक आदिवासी को अपनी पत्नी का अंतिम संस्कार कागज, टायर, प्लास्टिक बैग और झाड़ियों से करना पड़ा क्योंकि उसके पास लकड़ी खरीदने के पैसे नहीं थे.
पत्नी के अंतिम संस्कार के लिए लकड़ियां खरीदने को पति के पास 2500 रुपए नहीं थे. इस वजह से उसे श्मशान में लकड़ियां नहीं दी गईं. इस बेरहम रुख के कारण उसने पत्नी की चिता जलाने के लिए मजबूरन उसे टायर और बाढ़ में बहकर आए प्लास्टिक के कचरे से चिता जलाने का इंतजाम करना पड़ा. प्लास्टिक बैग उठाते देख श्मशान में कर्मचारियों ने उसे कहा कि पैसे नहीं है तो शव को पानी में बहा दो तो किसी ने दफना देने का सुझाव दिया. इस पर वह शव को दफनाने के लिए फावड़ा भी ले आया.
उधर स्थानीय लोगों को इस बात का पता चला तो उन्होंने नगर पालिका में जाकर उसकी मदद करने को कहा. इसके बाद लकड़ियां पहुंची लेकिन रास्ता खराब होने के कारण वाहन ने सारी लकड़ियां बीच रास्ते में ही छोड़ दी.
जानकारी के मुताबिक रतनगढ़ के निवासी जगदीश भील की पत्नी नौजी बाई का निधन हो गया था. जब वह अंतिम संस्कार के लिए श्मशान पहुंचा तो उसे 2500 रुपए नहीं होने की वजह से लकड़ियां देने से इनकार कर दिया गया. उसने बार-बार उन लोगों ने गुहार लगाई लेकिन कोई नहीं माना.
प्रशासन ने दिए मामले की जांच के आदेश
बाद में जब इसकी सूचना प्रशासनिक अधिकारियों को लगी तो उन्होंने मामले की जांच के आदेश दिए हैं. लेकिन आजादी के इतने साल बाद भी एक शख्स सिर्फ चंद रुपयों के कारण अपनी पत्नी का पूरे रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार नहीं कर पाया तो इस घटना से इंसानियत पर तो सवाल खड़े होंगे ही.