
लखनऊ-: सुरेश पासी। योगी सरकार में यह स्वतंत्र प्रभार के आवास मंत्री हैं। सामान्यतः दलित बिरादरी के पढेलिखे युवा अपने इस सरनेम में भारतीय अथवा सरोज जैसे शब्द ही लिखना पसंद करते हैं। लेकिन, इन्हें इसमें भी पारदर्शिता ही पसंद है। काम में तो है ही। इनके इसी मिजाज के चलते लखनऊ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष रहे सतेंद्र सिंह यादव की नींद उड गयी है। उनके कालखंड में हजारों करोड रु की लागत की तीन परियोजनाओं में हुए भ्रष्टाचार की परत दर परत उघाड कर इन्होंने रख दी है। मुश्किल नहीं, सपने में भी इन्हें देख वह चिंहुक पडते हों।
कमोवेश, यही हाल अखिलेश सरकार के नामवर मंत्री गायत्री प्रजापति का भी हो सकता है। आज चिलचिलाती धूप में खुद खडे होकर इन्होंने लखनऊ में बनी उनकी अवैध आलीशान इमारत को घ्वस्त करा दिया। संयोग से यह अमेठी के हैं और गायत्री प्रजापति भी अमेठी के ही हैं। पेश है ‘इंडिया संवाद‘ से हुई बातचीत के प्रमूख अंशः-
संयोग से गायत्री प्रजापति और आप अमेठी के ही मूल वासिंदे हैं। आज दोपहर में आपने लखनऊ में बनी उनकी आलीशान इमारत को आपने खुद खडे होकर जिस बेरहमी से गिरवा दिया, उसमें आपको इसका भी लिहाज नहीं रहा। क्यों?
लिहाज ही किया होता, तो फिर योगीराज और अखिलेशराज में फर्क ही न रह जाता।
प्रदेश में अवैध निर्माणों की क्या स्थिति है? क्या इनके भी ध्वस्तीकरण की प्रक्रिया होगी?
अभी तक सिर्फ कागजों पर ही प्रदेश के जिन लगभग 75 हजार अवैध निर्माणों के ढहाये जाने के आदेश दिये जा चुके थे। लेकिन, अब योगी सरकार में में उन पर बुलडोजर चला कर उन आदेशों को अमलीजामा पहनाया जायेगा। इनमें राजधानी लखनऊ में ही बनी अवैध इमारतों की संख्या 1725 है।
मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ के साथ काम करते हुए आपको लगभग सवा महीने हो रहे हैं। इस बीच आपको उनसे क्या सबक मिला है?
देखिये, सीखना तो जीवन की सतत प्रक्रिया है। यह अनंत है। योगीराज जैसे व्यक्तित्व के साथ रहकर हमेशा कोई न कोई सबक मिलता ही रहेगा। वैसे, इतने कम समय में ही मुझे यह सीख मिली है कि सरकार की जो भी योजनाएं हैं और जिनके लिये हैं, उसका लाभ उन्हें हर हाल में मिलना ही चाहिये। पारदर्शिता हर काम में होनी चाहिये। सोच तक में। इसके बिना भ्रष्टाचार को जड से उखाडकर नहीं फेंका जा सकता है। इसी के साथ मुझे यह भी प्रेरणा मिली है कि भ्रष्टाचार में दोषी पाये जाने पर किसी को भी बख्शा नहीं जाना चाहिये। चाहे वह कोई भी हो।
भ्रष्टाचार के मामलों की जांच में आप कितना समय देते हैं?
सामान्यतः एक सप्ताह का।
अभी तक आपने भ्रष्टाचार के कितने मामलों की जांच की है?
मुख्यमंत्री जी ने मुझे जनेश्वर मिश्र पार्क, हेरिटेज जोन, और जेपीएनआईसी प्रोजेक्ट की बडी गहराई से जांच करने का आदेश दिया था। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जनेश्वर मिश्र पार्क और हुसैनाबाद में आठ से दस गुना ज्यादा खर्च कर दिया गया है। फिर भी आाधाअधूरा ही पडा है। जेपीएनआईसी की निर्माण प्रगति के बारे में अधिकारियों ने गुमराह करने की कोशिश की थी।
मुख्य मंत्री योगी का कहना है कि वह न बैठेगे और न बैइने देंगे। उनके साथ वही खप सकता है, जो नित्य 16 से 18 घंटे तक काम कर सकता है। उनका यह फार्मूला कितने दिनों तक यह चल सकेगा?
आजीवन। बस, मजबूत इच्छाशक्ति होनी चाहिये।
मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ के साथ काम करते हुए आपको कैसा लग रहा है?
आनंद आ रहा है। इसलिये कि वह स्वयं रोजाना औसतन 18 से बीस घंटे तक काम करते हैं। रात में लगभग एक बजे तक काम करना तो अब उनके लिये आम दिनचर्या सी हो गयी है। कभी कभी रात दो बजे तक काम कर तीन बजे ही उठ जाते हैं।
उनमें ऐसी कौन सी खूबियां हैं, जो आपको बहुत अच्छी लगी है।
एक दो हों, तो गिनाऊं। फिर भी आपने जानना चाहा है, तो बताना चाहूंगा कि वह नितांत पारदर्शी हैं। अपने सहयोगियों में भी वह पूर्ण पारदर्शिता चाहते हैं। उनकी पारदर्शिता सिर्फ काम में ही नहीं, सोच में भी हे। वह चाहते हैं कि सबको काम मिले। सबको विकास का समान अवसर मिले। सबको न्याय मिले। समाज के आखिरी छोर पर खडे व्यक्ति के लिये अपेक्षित सुविधाएं और संसाधन सही समय पर सही ढंग से मिले। बिचैलियों से उन्हें सख्त नफरत है। वह चाहते हैं कि प्रदेश की कानून और व्यवस्था ऐसी हो, जिसमें जरूरत पडने पर रात को बारह बजे भी बहू-बेटियां कहीं भी एकदम निश्चिंत, सुरक्षित और निर्भीक भाव से आ जा सके। लोगों की समस्याओं का सही ढंग से और सही समय पर समाधान होना ही चाहिये।
आपको योगी में क्या कोई खोट भी नजर आती है?
अभी तक तो एक भी खोट नहीं दिखा है।
यह कैसे संभव है? ईश्वर भी जब मनुष्य रूप में अवतरित होता है, तो उसमें भी खोट आ जाते हैं। राम और कृष्ण भी इसके अपवाद नहीं रहे है?
देखिये, मै शिवभक्त हॅू। मुझे अपने आराध्यदेव में सब कुछ अच्छा ही अच्छा दिखाई पडता है। बुरा कुछ भी नहीं। योगी तों शंकर के इतने प्रबल साधक और उपासक हैं कि वह मुझे अपने आराध्यदेव जैसे ही जान पडते हैं। मेरे आदर्श भी हैं और इन विभूतियों में मीनमेष निकालना मेरे स्वभाव-संस्कार में नहीं है।