लखनऊः जापानी इंसेफेलाइटिस जैसे रोगों से निपटने हेतु प्रदेश के छः जनपदों में पीडियाट्रिक आइसीयू बनाये जाने का निर्णय लिया गया है।
अब गंभीर रूप से पीड़ित बच्चों को इलाज के लिए भटकना नहीं पडेगा। उन्हें स्थानीय स्तर पर ही इलाज मुहैया हो सकेगा। इसके लिए छह और जनपदों में पीडियाट्रिक आइसीयू खोलकर बड़ी राहत दी जाएगी।सरकार ने राज्य में एक्यूट इंसेफेलाइटिस (एईएस) व जापानी इंसेफेलाइटिस (जेई) से 20 जनपदों को संवेदनशील घेषित किया है,फिर भी इन सभी जनपदों में इलाज का पुख्ता बंदोबस्त नहीं हो सका है। वर्षों बाद भी एईएस-जेई के मरीजो के इलाज के लिए दर-दर भटकना पड़ता है। वहीं वेंटीलेटर की सुविधा के लिए पीडियाट्रिक आइसीयू की सुविधा सिर्फ नौ जनपदों में ही है। दूसरी ओर 11 जनपदों के मरीजों को लखनऊ की दौड लगानी पड रही है। ऐसे में समय पर गंभीर बच्चों को वेंटीलेटर व इलाज न मिलने से कभी कभी जान भी गंवानी पडती है। मगर अब छह और जनपदों में वेंटीलेटर की सुविधा होगी।
संयुक्त निदेशक डॉ. एचके अग्रवाल ने बताया कि हरदोई, सीतापुर, गोंडा, रायबरेली, आजमगढ व मऊ में पीडियाट्रिक आइसीयू वार्ड बनाने के निर्देश दिए गए है। इनका निर्माण कार्य भी शुरू हो गया है। दिसंबर से पहले इन्हें चालू करने का योजना है। ये सभी पीडियाट्रिक आइसीयू वार्ड 10-10 बेड के होगें। प्रति यूनिट निर्माण के लिए सीएमओ के खाते में पैसा भेजा दिया गया है। सभी में वेंटीलेटर भी लगेंगे।
अभी सिर्फ यहां नौ जनपदों में पीडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट (पीआइसीयू) ही चल रही है। वर्ष 2016 में बनी इन यूनिटों में सिर्फ 12 वर्ष तक के बच्चों को ही भर्ती किया जाता है। गोरखपुर में एक देवरिया में एक, कुशीनगर में एक , महाराजगंज में एक, बस्ती मेंदो, सिद्धार्थनगर में एक, संतकबीरनगर में एक, लखीमपुर में एक व बहराइच में एक पीडियाट्रिक आइसीयू वार्ड है।
MBइन यूनिटों में 10-10 बेड की क्षमता है। कुल नौ जनपदों में सिर्फ 100 बच्चों के भर्ती करने के लिए वेंटीलेटर की व्यवस्था है।हर बार जा रही सैकडों की जान वर्ष 2017 अप्रैल तक एईएस मरीजों की संख्या 175 के करीब थी। वहीं जेई से पीडित आठ मरीज पाये गए थे। वहीं मृतकों की संख्या 35 से अधिक पहुंच चुकी है। ऐसे ही वर्ष 2005 से पूर्वांचल में इंसेफ्लाइटिस की बीमारी कहर बनकर उभरी ।वर्ष 2005 से चार अप्रैल 2017 तक कुल 7749 मरीजों की एईएस से मौत व 758 की जेई से मौत हो चुकी है। वहीं कुल मौतों का आंकडा साढे आठ हजार से अधिक हो गया है और बीमारी का प्रकोप अभी बरकरार है।