सखि,
आजकल मैं बड़े असमंजस में हूं । असमंजस का कारण भी बड़ा खूबसूरत है । लोग मुझसे तरह तरह की सलाह मांगने लगे हैं जैसे कि में "निर्मल दरबार" वाला बाबा हूं और लोगों की समस्याओं का 'चटनियों' से ही समाधान कर देता हूं ।
आजकल लोग प्यार व्यार के चक्कर में बहुत फंसे हुए हैं । जिधर देखो उधर ही आजकल "आई लव यू" का बोलबाला है । सखि, अभी कल परसों की ही बात है कि मेरी एक पाठक ने मेरे मैसेज बॉक्स में एक मैसेज भेजा
"सर, मैं आपसे कुछ बात करना चाहती हूं" ।
मैं उन्हें व्यक्तिगत तौर पर नहीं जानता था पर वे मेरी रचनाओं को पढती थीं और समीक्षा भी बहुत बढिया करती थीं । इसलिए मैंने भी कह दिया कि "बताइए, क्या बात करनी है आपको" ?
"सर , एक व्यक्तिगत समस्या पर मुझे आपसे राय लेनी है"
मैं आश्चर्य चकित यह गया । न जान न पहचान और व्यक्तिगत समस्या पर मेरी राय ? कुछ अजीब सा लगा । छठवीं इन्द्रिय कुलबुलाकर कहने लगी 'बेटा, रहने दे । औरत जात का मामला है , कहीं "मी ठू" में ही ना फंसा दे ' ? मैं खामोश ही रहा । कोई जवाब नहीं दिया ।
थोड़ी देर तक जब मैंने कोई जवाब नहीं दिया तो उसने लिखा "सर, मैं जानती हूं कि आप दुविधा में हैं । आपकी दुविधा भी सही है । आपकी जगह मैं भी होती तो मैं भी ऐसे ही रेस्पांस नहीं देती हर किसी को । लेकिन सर, मैं आपको यकीन दिलाती हूं कि मैं एक अच्छी लड़की हूं और विवाहिता हूं । अगर आप इजाजत दें तो मैं अपनी बात रखूं" ?
इतना बहुत होता है किसी के बारे में जानने के लिए । मैं भी पिघल गया कि पता नहीं क्या समस्या है और क्या पता उसका समाधान मेरे ही हाथों होना हो ? मुझे अपने ज्ञान पर अभिमान भी हो चला था । अत : मैने कहा "जी बताइए , क्या समस्या है आपकी" ?
वो बताने लगी "सर, मैं अभी प्रतिलपि पर नई नई आई हूं । अभी कुछ दिन पहले से मैंने कुछ प्रख्यात लेखकों को फॉलो किया है । उनकी सब रचनाएं पूरे मनोयोग से पढती हूं और बडी सुंदर सी समीक्षा भी करती हूं । एक दिन एक नामचीन लेखक का मैसेज आया "गुड मॉर्निंग "
"मुझे बहुत अच्छा लगा और मैंने भी उन्हें "सुप्रभात" मैसेज कर दिया । अब तो रोज रोज मैसेज आने लगे उनके । मेरी समीक्षाओं की तारीफ करने लगे और .."
"और क्या" ? मैंने उत्सुकता से पूछा
"सर, एक दिन उन्होंने 'आई लव यू' लिख दिया मैसेज में । अब आप ही बताइए कि इस प्यार को मैं क्या नाम दूं ? कहने लगे कि मैं तुमसे सच्चा प्रेम करता हूं" । अब आप इस पर राय दीजिए कि मुझे क्या करना है" ?
बड़ी विचित्र स्थिति है । आज महसूस हुआ कि वास्तव में हम लोग तो "जेट युग" में जी रहे हैं । जिस स्पीड से प्यार हो रहा है उस स्पीड से तो जेट भी नहीं उड़ता है । अब इन मोहतरमा को जो पहले से विवाहिता हैं , किसी अनजान व्यक्ति , जो कौन है यह भी नहीं जानते क्योंकि प्रतिलिपि पर सबने अपना असली नाम और फोटो लगाया हो, जरूरी नहीं है , प्रणय निवेदन कर रहा है और ये मोहतरमा हमसे पूछ रही हैं कि वह क्या करे ? इस स्थिति के लिए तो हम भी तैयार नहीं थे । हमारे ज्ञान की परीक्षा की घड़ी थी इसलिए हम भी मोर्चे पर डट गये। समस्या का समाधान कैसे हो, यह बात जानने के लिए एक बात जरूर आई दिमाग में कि इन मोहतरमा का क्या सोचना है इस बारे में , एक बार पता तो चले , तब कहीं सलाह देना उचित होगा । तो हमने पूछा
"क्या किसी और ने भी आपको "आई लव यू" बोला है" ?
"जी सर, बहुतों ने बोला है । रोज कोई न कोई बोलता ही रहता है" ।
ओह माई गॉड ! यह क्या हो रहा है ? यहां तो हर दिल में प्यार उमड़ रहा है । और ये मैडम जी बड़े मजे से "लव लव" गेम खेल रही हैं । मैंने अपना माथा पीट लिया । मन में तो आया कि कह दूं , दोष उन लेखकों से ज्यादा आपका है । मगर डर लगता है कि कहीं वह गुस्सा होकर मुझे "मी ठू" में ना फंसा दे । इसलिए चुप रहना ही उचित समझा । पर उसको सलाह तो देनी ही थी इसलिए आखिरी प्रश्न पूछा
"देवी जी, एक बात तो बताइए। आप ने कितनों को रिप्लाई कर दिया कि "आई लव यू ठू" ।
"सर, किसी को नहीं किया"
"मतलब सबको मना कर दिया" ?
"नहीं सर, मैंने ऐसा कब कहा ? किसी को मना भी नहीं किया" ।
बड़ी विचित्र स्थिति थी । न हां करे और न ना करे । फिर बात आगे बढे तो कैसे बढे ? मुझे थोड़ा गुस्सा आ गया । कह दिया "तुम्हें सबको जोरदार डांट लगानी चाहिए थी इस गिरी हुई हरकत पर" ।
थोड़ी देर सोचकर वह बोली " सर, किसी का दिल दुखाना कोई अच्छी बात थोड़ी है । क्या पता ये लोग अपनी पत्नियों से पीड़ित हों" ?
"तो तुमने यहां पर "सेवाश्रम" खोल रखा है क्या ? यदि हां , तो जाओ, सबको बोल दो "आई लव यू ठू" ।
वो कहने लगी "आप तो गुस्सा हो गये सर । ठंडे दिमाग से सोचकर बताइए न " । वह हंसते हंसते बोली ।
अब मेरा माथा ठनका । ऐसी मुसीबत में तो कोई परम ज्ञानी ही हंस सकता है । ये महिला कोई साधारण महिला तो नहीं है वरना पता नहीं क्या कर बैठती ? फिर मुझे समझ आया कि लगता है कि मेरी परीक्षा ली जा रही है कि मुझमें ज्ञान को लेकर कहीं अभिमान तो नहीं हो गया है ? मैं अपनी विद्वता के बोझ से दब तो नहीं रहा हूं कहीं ? तब मैंने उन्हें कहा "देवी , आपने मेरी आंखें खोल दी हैं । मैं अपने आपको दुनिया का सबस ज्ञानी आदमी समझ बैठा था । आज आपने मुझे आईना दिखाया है । आपका यह अहसान मैं कभी नहीं भूलूंगा" ।
इतने में मेरी नींद खुल गई । मैं घबरा गया था । श्रीमती जी ने मेरे सिर पर हाथ रखा तब जाकर घबराहट दूर हुई । वाकई, मान गया कि पत्नियां सबसे बड़ी डॉक्टर हैं ।