लखनऊ: भाजपाध्यक्ष अमित शाह भले ही जगह जगह यह दावा ठोंक रहे हों कि उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी दो तिहाई बहुमत से जीत रही है। लेकिन, इसका अर्थ यह नहीं लगाया जाना चाहिये कि उनकी पार्टी में सब कुछ ठीक ठाक चल रहा है। तीसरे चरण और उसके बाद के चरणों की चुनावी स्थिति पर गौर करें, तो पता चलेगा कि भाजपा भी अंतर्कलह के ज्वर से पीडित है। स्वयं प्रधान मंत्री का संसदीय क्षेत्र वाराणसी पर भी इसकी छाया मंडरा रही है।
सूबे के राजनीति क पंडित यह नहीं समझ पा रहे हैं कि क्या सोचकर अमित शाह ने वाराणसी में लगातार सात बार से विधायक होते चले आ रहे श्यामदेव राय चैधरी को इस बार टिकट नहीं दिया। इससे उनके समर्थकों का गुस्सा उबल रहा लिहाजा, विवश हो गये शाह ने उन्हें विधान परिषद का सदस्य बनाने का लालीपाप देकर मनाने की पुरजोर कोशिश की है। लेकिन, उनके समर्थक भाजपाइयों का गुस्सा पूरी तरह थम जायेगा, इसके आसार कम ही हैं।
भाजपा के बडबोले सांसद वरुण गांधी तो पहले से ही नाराज चल रहे हैं। इन्हें रास्ते पर लाने के लिये उनकी नकेल कस दी गयी। अपने को नेहरू-गांधी परिवार का सपूत समझने के दंभ से पीडित वरुण गांधी को यह अंकुश पूरी तरह नागवार गुजरा। इसी के चलते केंद्र सरकार में मंत्री इनकी माँ मेनका गांधी भी अंदर ही अंदर उबल सी जान पड रही हैं। लिहाजा, इस चुनाव में वह सिर्फ खानापूरी के लिये अपने संसदीय क्षेत्र में ही गयी है। वैसे, उनका आसपास के क्षेत्रों में भी खासा असर है। वरुण गांधी का कहीं पता नहीं चल रहा है। इन दोनों को स्टार प्रचारक का तमगा देने वाले अमित शाह भी इन्हें मनाने की जरूरत नहीं समझ रहे हैं।
इस स्थिति में भाजपा का सच यह है कि इस चुनाव में मध्य और पूर्वांचल में उसे अपने बागियों से ही गंभीर चुनौती मिल रही है। मसलन, वाराणसी के कैंट विधान सभा क्षेत्र से भाजपा नेता सुजीत सिंह टीका ने पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ पर्चा भरा है। इसी तरह वाराणसी उत्तरी से अशोक सिंह और सेवापुरी क्षेत्र से विभूति नारायण राय ने भी पाटी प्रत्याशी के खिलाफ पर्चा दाखिल किया है। दूसरों की बात तो दरकिनार, गोरखपुर क्षेत्र में भाजपा के तेजतर्रार सांसद योगी आदित्य नाथ के संरक्षण मे पली और बढी हिंदू युवा वाहिनी ने भी कई क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार खडे कर दिये हैं। गोरखपुर ग्रामीण से टिकट कटने पर रामभुआल निषाद ने चिल्लूपुर सीट से और खड्डा से टिकट कटने पर विधायक विजय दुबे भी भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ मैदान में उतर पडे हैं।
राजधानी लखनऊ से सटे बाराबंकी जिले की बात करें, तो यहां की रामनगर सीट पर भाजपा ने पूर्व जिलाध्यक्ष शरद अवस्थी को टिकट देने के विरोध में पूर्व विधायक राजलक्ष्मी वर्मा पीस पार्टी के टिकट पर चुनाव लड रही हैं। इसी तरह कानपुर मे कांगेस के अभिजीत सांगा के टिकट दिये जाने से भाजपा के स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं में खासी नाराजगी है। इसकी मिसाल बिल्हौर और किदवईनगर में क्रमशः सपा सरकार के पूर्व मंत्री भगवती प्रसाद सागर को टिकट दिया जाना है। सलेमपुर से टिकट कटने पर विधायक विजयलक्ष्मी गौतम सपा के टिकट से मैदान में हैं। तमकुहीराज से टिकट कटने पर श्रीकांत मिश्र तो निर्दल खडे हैं। देवरिया में गुस्साए भाजपाइयों ने केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र के पोस्टरों पर जमकर कालिख पोती है। लेकिन, इस कडुवे सच के बाद भी अमित शाह पूरी तरह आश्वस्त है कि प्रधान मंत्री मोदी की लोकप्रियता से ही प्रदेश में भाजपा की नैया पार होकर रहेगी।
यह ठीक है कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी इस बात को बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि दिल्ली के राजसिंहासन के लिये उत्तर प्रदेश की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है। दिल्ली के तख्ता का रास्ता यहीं से होकर जाता है। इसीलिये उन्होंने यहां चुने गये सांसद उमा भारती, कलराज मिश्र, मनोज सिन्हा, राजनाथ सिंह, मेनका गांधी, संतोष गंगवार, कृष्णा राज, डा0 महेश शर्मा, अनुप्रिया पटेल, जनरल वी.के.सिंह, संजीव बालियान तथा मुख्तार अब्बास नकवी को भी अपनी सरकार में मंत्री बना दिया है। इनमें उत्तरप्रदेश के कोटे से राज्यसभा के सदस्य बने प्रतिरक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर भी शामिल किये जा सकते हैं। लेकिन, राजसुख भोग रहे इन मंत्रियों और मोदी की वजह से ही बने सांसद मौज उडाने के अलावा सूबे के आमअवाम के हित में क्या कर सके हैं, इसका सच तो 11 मार्च को ही सामने आ सकेगा।