अतुल कुमार
लखनऊ : 8 नवंबर 2016 को देश को संबोधित करते हुऐ प्रधान मंत्री मोदी ने तत्समय प्रचलित 1000 और 500 रुपए का चलन रात्रि 12 बजे से बंद करने की घोषणा की थी। सूट सर्जिकल स्ट्राइक और अन्य बातो में मोदी की आलोचना करने वाले राहुल गांधी को फिर मौका मिल गया। बिना लाभ हानि और कारणों को ध्यान में रखते हुये राहुल गांधी तुरंत इसकी आलोचना में लग गये। कुछ पुराने और वरिष्ठ नेताओं ने नोट बंदी की तारीफ जरूर की पर राहुल गांधी के दबाव में वे भी उनसे स्वर में स्वर मिलाने लगे।
समय के साथ साथ राहुल गांधी ने पार्टी के हितों को ध्यान में न रखते हुए नोटबंदी के विरोध को संसद से लेकर सड़क तक बढ़ा दिया। मोदी के निर्णय से जनता सहमत और विरोधी असहमत नज़र आने लगे। बड़ी पार्टी देख कुछ विरोधी पार्टिया भी नोटबंदी के विरोध में राहुल के साथ हो गई। इन विरोधी पार्टियों को आघात उस समय लगा जब राहुल गांधी बिना सबको बताए प्रधानमंत्री से मिलने पहुच गए।
जनता की दिक्कतों का आंकलन कर उन्हें दिन प्रतिदिन दूर किया गया। आरम्भ में प्रक्रियात्मक समस्याओं से त्रस्त जनता, कठिनाइयो को झेलते हुए भी मोदी में अपना विश्वास जगाती रही। राहुल गांधी का भाषण जनता को हास्यास्पद लगने लगा। कांग्रेस को देश विरोधी की सज्ञा मिलने लगी ,लेकिन राहुल गांधी अपनी जिद्द पर अड़े रहे। स्थिति यह हो गई कि जनता तो दूर स्वयं कांग्रेसी कार्यकर्ता भी हताश होकर प्रचार से दूर हो गए।
जिस प्रकार नोटबंदी के साथ 1000 और 500 के पुराने नोट मार्केट से गायब हो गए हैं उसी प्रकार पुराने कांग्रेसी नेता और कार्यकर्ता भी मैदान से नदारत हो गये है। उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में अखिलेश से गठबंधन होने के बाद राहुल ने अपने भाषणों में नोटबंदी को ही मुख्य मुद्दा बनाये रखा। नतीज़ा यह हुआ कि देश हित में मोदी द्वारा किये गऐ काम की आलोचना से कांग्रेसी मतदाता भी राहुल को नफ़रत की निगाह से देखने लगे।
कांग्रेस का किला तो ध्वस्त हुआ ही पर इसका खामियाजा कहे या नुकसान कांग्रेस से अधिक समाजवादी पार्टी को उठाना पड़ रहा है। राहुल के बयान से क्षुब्ध समाजवादी पार्टी का मतदाता भी दूसरी पार्टियों की और मुड़ता दिखाई दे रहा है। चौथे और पांचवे चरण के चुनाव में मतदाताओं का 80 से 90 प्रतिशत विचार नोटबंदी के पक्ष में है जबकि 10 प्रतिशत जनता साहसिक कदम बताकर तैयारी ठीक से न होने की बात करती है।
प्रत्यक्ष रूप से राहुल गांधी के बड़बोलेपन का नुकसान प्रदेश में सत्ताधारी दल समाजवादी पार्टी को उठाना पड़ रहा है। प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति तो पहले से ही ख़राब थी और उसे पिछली बार से अधिक सीटे मिलती नज़र नही आ रही है। नोटबंदी का विरोध करने वाले राहुल गांधी का साथ अखिलेश सरकार के लिए बड़ा खतरा साबित हो रहा है। अखिलेश ने भी इसे है। BMC चुनाव नतीज़ों का प्रभाव पड़ने के बाद उत्तर प्रदेश में इसका सही जवाब तो 11 मार्च को ही सामने आएगा।