दोनों हाथों से अपने पेट को पकड़ कर कुछ ढूंढने की कोशिश करती हुई, घंटों से वह हॉस्पिटल की बेड पर रो रही थीl रोते-रोते एक ही बात कह रही थी"" मुझे बस एक बार मेरे बेटे को देखने दो, एक बार उससे मैं अपनी छाती का दूध पिला दूं, बस एक बार जी भर उसे गले से लगा लू , मैं दूर... बहुत दूर चली जाऊंगी उससे फिर कभी नहीं मिलूंगी न हीं उसका नाम लूंगी"" परंतु इस संवेदना विहीनमाहौल में उस के दर्द और तड़प को समझने वाला कोई नहीं था न हीं किसी को उसके आंसू दिखाई दे रहे थे l
डॉक्टर अपनी फीस लेकर खुश थे, और वे निसंतान दंपति गोद में औलाद ले करl
खुश क्यों न हो?आखिर उन्होंने इसकी कीमत अदा करी थीl
वह भी पूरे 500000 रुपए, इस कलयुग में में पैसों के आगे रिश्तो का मोल कहां?
जिसके पास पैसा है वह सारे रिश्ते खरीद सकता है, और जिसके पास नहीं वह एक-एक दाने को भी मोहताजl
पेट की आग बुझाने के लिए रिश्तो को बेचना भी उसकी मजबूरी हो जाती हैl कभी वह बेटी बेचता है, तो कभी वह कोखl
एक मजबूर मां, अपने बेटे के लिए चीख पुकार रही थीl
पर सब व्यर्थ था, बच्चे को देखने की भीख मांगते मांगते थक हार कर वह निढाल हो चुकी थी, एक तो प्रसव उपरांत दर्द, दूसरा अपने बच्चे को न देख पाने की असहनीय टीसl जब शरीर और आत्मा दोनों ही थक कर हार गए, वह शांत हो गईl
"बहन जी, यह लीजिए पूरे ढाई लाख रुपए, और आज के बाद आप और आपकी बेटी हमसे कोई संपर्क करने की कोशिश मत कीजिएगाl""
कुछ पैसों से घर पर ही छोटी सी परचून की दुकान खोल दीजिएगा , आपकी जिंदगी भी पटरी पर आ जाएगी और किसी के सामने हाथ फैलाने की नौबत भी ना आएगीl
मैं आपके लिए इतना तो कर ही सकती हूंI
आपने मुझे जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी दे दी, वर्षों से खुद पर बांझ होने का लांछन , और ताने सुनते सुनते मैंने तो आस ही छोड़ दी थी कि कभी मैं भी माँ का सुख ले पाऊंगीI
आज मेरी गोद हरी हो गई है, यह आपकी मदद के बिना कभी न संभव हो पाताl अच्छा अब मैं चलती हूंl"
अदिति भीतर से ही उन दोनों की बातें सुन रही थी, उनकी बातें उसे इतनी तकलीफ दे रही थी जैसे किसी ने उसके कान में पिघला हुआ शीशा डाल दिया होl
दोनों हाथों से अपने कानों को ढक लिया ताकि उनकी बातें उसे सुनाई ना दे, वह सोचने लगी"" मैं कैसी मां हूं जिसने अपने ही बच्चे को बेच दिया , और वो... मां बनने की खुशी पर इतरा रही है ,मुझे मेरे बेटे को देखने तक नहीं दिया, बस एक बार जी भर कर देख लेती, उसे सीने से लगा लेती तो इसका क्या बिगड़ जाता......, बड़ी शान से कहती है कि मेरा बच्चा पहले केवल मेरा स्पर्श और मेरी ही गंध पाएगा, ताकि वह मुझे ही अपनी मां समझेl
पागल है वह, ...वो क्या जाने मेरा बच्चा मुझे पेट से ही जानता है,.... पेट से ही पहचानता है उसकी रगों में मेरा ही खून दौड़ रहा है.. बहुत कुछ सिखाया है मैंने उसे, उसे बहुत सारी कहानियां सुनाई है.....
हे विधाता मैंने तेरा क्या बिगाड़ा था..... तूने मुझे इतना मजबूर क्यों किया मुझे मेरी औलाद दूसरों के हाथों में सौपनी पड़ीl
रोते-रोते वह अतीत की यादों में चली जाती है..
उसके पिता ने मां को छोड़कर दूसरी शादी कर ली, तो नाना ने 2 कमरे का घर मां को रहने के लिए दे दिया था ताकि मां को भाभियों के ताने न सहने पड़े, जब तक वह जिंदा थे दाल रोटी की चिंता न थी, उनकी मृत्यु के पश्चात मा ने
दूसरों के घरों में काम करके अपनी आजीविका चलाई और अदिति को पढ़ाया लिखाया, सरकारी स्कूल में प्राइमरी कक्षा तक मध्यान भोजन का इंतजाम हो जाता था, धीरे-धीरे उसने 12वीं कक्षा पास कर ली, पर उसके मां का काम करना अच्छा नहीं लगता था, इसलिए वह प्राइवेट स्कूल मे जॉब के लिए एप्लीकेशन फॉर्म दे दियाl
उसके वह सभी विषयों में अच्छे नंबर से पास हुई थी, तो उसे प्राइमरी के बच्चों को पढ़ाने की नौकरी मिल गई।3000 प्रतिमाह वेतन थाl जो उन मां बेटियों के तन ढकने व पेट की भूख मिटाने के लिए पर्याप्त था।
वह बहुत जल्दी ही बच्चों से घुल मिल गई, वह कुछ बच्चों को घर पर ट्यूशन भी पढ़ाने लग गई जैसे उनकी जिंदगी की गाड़ी पटरी पर चलने लग गई थीl
अपनी इस दुनिया में दोनों मां बेटी खुश थे। माँ को बस बेटी के हाथ पीले करने की चिंता थीI
परंतु एक दिन........
समाचार पत्रों में फ्रंट पेज पर बड़े बड़े काले अक्षरों से छापा जाने लगा, कोरोना महामारी की वजह से, सभी स्कूल कॉलेज बंद, परीक्षाएं स्थगित की जाती हैl
सभी प्राइवेट स्कूल बंद हो गए, साथ ही उन स्कूलों में कार्यरत शिक्षकों की आजीविका भी बंद हो गईl
कोरोना में अभिभावकों ने बच्चों को ट्यूशन पढ़ने के लिए भी भेजना बंद कर दियाI
अदिति और उसकी मां बहुत परेशान हो ग ई , उनके पास कोई अतिरिक्त धनराशि भी नहीं थी ।थोड़ी बहुत अनाज रसोई में थे जो कुछ दिनों की भूख मिटा सकते थेl
तब अदिति की माँ ने छोटे-मोटे काम ढूंढना शुरू कर दिया ।कभी किसी के घर का झाड़ू पोछा कर देती, किसी के घर के गार्डन की सफाई कर देती, किसी के बर्तन मांज देती, उससे जो थोड़े बहुत रुपए मिलते उनसे अनाज की व्यवस्था कर लेती थी, पर विधाता इतने में खुश ना था। वह इन गरीबों को और दयनीय स्थिति में देखना चाहता थाl
करोना का संक्रमण अत्यधिक बढ़ने के कारण लॉकडाउन लगा दिया गयाl अब अदिति के मां के सभी आय के स्रोत बंद हो गएl इधर उधर से मांग कर पेट की आग को बुझाने लगीl
कई बार जब कुछ नहीं मिलता तो दोनों मां बेटी पानी पीकर सो जाती थी, अब तो नित्य ही उपवास रहने लगा फलाहार के नाम पर कभी कभार एक- दो रोटी की व्यवस्था हो जातीl तभी एक दिन उनके घर पड़ोस में रहने वाली सविताआंटी कुछ अनाज ,
खाने की वस्तुएं लेकर आईl.. उन्हें देखकर दोनों मां बेटी बहुत खुश हुए और उनका धन्यवाद देने लगेl
इस संवेदनहीन दुनिया में बिना स्वार्थ के कोई किसी की मदद भी नहीं करताI सब आपदा में अवसर तलाशते हैंI अतः वह भी निस्वार्थ भाव से मदद करने नहीं आई थी उनके मस्तिष्क में एक योजना जन्म ले चुकी थी जिसकी पूर्ति के लिए उन्होंने अदिति को चुना थाl जब मां उनकी लाइ वस्तुएं रखने के लिए अंदर चली गईl तब उन्होंने अदिति से कहा"मुझसे तुम लोगों की तकलीफ देखी नहीं जाती, आज तो मैंने दे दिया पर रोज मैं भी न दे पाऊंगी फिर तुम लोग क्या करोगी?
यह बीमारी इतनी जल्दी तो जाने वाली नहीं न हीं कोई तुम्हारी मदद कर पाएगा, दोनों मां बेटी खाए बिना मर जाओगेl""
हां वह तो है, पर हम कर भी क्या सकते हैं जो विधाता ने किस्मत में लिखा होगा उसे तो झेलना ही पड़ेगा l" अदिति ने कहा"
यदि तुम चाहो तो मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूं मेरे पास तो ज्यादा पैसे नहीं हैं पर मेरे एक रिश्तेदार हैं बहुत अमीर है ईश्वर की दया से उनके पास किसी तरह की कोई कमी नहीं है बस एक ही कमी है जिसे पूरा करने के लिए तुम्हें मुंह मांगी कीमत दे सकते हैंl......
मैं भला उनकी क्या मदद कर सकती हूं, मैं यहां स्वयं मदद के लिए मोहताज बनी बैठी हूंl.....
यदि तुम चाहो तो तुम मदद कर सकती हो, तुम्हारे पास वह है जिसके लिए वो तरस रहे हैंl
ऐसा क्या है मेरे पास?
" तुम्हारी कोख"
यह क्या कह रही है आंटी, आपकी बात मेरे समझ में नहीं आ रही हैl.....
तभी अदिति की मां उन दोनों के पास आ जाती हैं...
देखो मैं तुम दोनों के भले के लिए ही कह रही हूं....
क्या है जी जी मुझे भी बताना.....
सुनो अदिति की मां, मेरे एक रिश्तेदार हैं जिनके कोई औलाद नहीं है, गर्भाशय में खराबी के कारण वह कभी मां नहीं बन सकतीl
यदि तुम उनकी संतान को जन्म दो बदले में तुम्हें चार ₹500000 मिल ही जाएंगे, जिसे तुम दोनों के सभी कष्ट दूर हो जाएंगेl....
ऐसा बोलते समय तुम्हारी जीभ नहीं काँपी...
हम गरीब जरूर हैं पर इतने बेगैरत नहीं किया अपनी बेटी की कोख बेच दे l
एक कुंवारी लड़की जब मां बनेगी जमाना क्या कहेगाI इसका घर कैसे बस पाएगा... ऐसी बातें दोबारा अपनी जुबान से मत निकालिएगा ... कृपा करके आप यहां से चले जाइए हम दोनों मां बेटी को अपने हाल पर छोड़ दीजिए, इतना कहकर अदिति की मां उसे सीने से लगा कर रोने लगीl
और सविता जी वहां से चली गईI
मां स्वयं भूखी रह सकती है पर अपनी संतान की भूख
नहीं बर्दाश्त कर पातीI
तो वे लॉकडाउन में भी चोरी छुपे काम की तलाश में निकल जाती है, पर अब सब अपने घरों में बंद हो गए थे कोई किसी को अपने घर में आने नहीं देना चाह रहा थाl
कभी कभी किसी न किसी बहाने से मदद मिल जाती थी तो किसी तरह एक टाइम की भूख का जुगाड़ हो जाता थाl
पर अब वह भी धीरे-धीरे मुश्किल होता जा रहा थाl
दोनों मां बेटी बहुत कमजोर हो चुके थेI और 1 दिन मां की तबीयत बिगड़ने लगीl
अदिति के पास मां के इलाज के लिए पैसे नहीं थे,
सारे रिश्ते नाते तो उससे कब के दूर जा चुके थे इतना ही तो थी जिसके सहारे वह जिंदा थी उसे इस तरह बीमारी में तड़पता देख स्वयं को बहुत लाचार और असहाय महसूस कर रही थीl
हार कर वह सविता जी से मदद मांगने के लिए गईl
"" आंटी कुछ रुपए दे दो मां बहुत बीमार है अगर उसका इलाज नहीं कराया तो वह मर जाएगीl बाप का मुंह तो मैंने पहले भी नहीं देखाl मां के बिना मैं अनाथ हो जाऊंगी, प्लीज आंटी मेरी मदद कर दो..... उधार दे दे ?बदले में मैं तुम्हारे सारे काम कर दूंगीl
" अभी क्या लेने आई है यहां... उस दिन तो तेरी मां ने मुझे घर से भगा दिया थाl मैं तेरी कुछ भी मदद नहीं कर सकतीl
आंटी प्लीज आंटी मेरी मदद कर दो तुम जो कहोगी मैं करने को तैयार हूंI मैं मां को इस तरह मरता नहीं देख सकतीl
सोच ले....
बच्चे को जन्म देने के बाद उससे तेरा कोई वास्ता नहीं रहेगाI
मुझे मंजूर है....
तो यह ले कुछ रुपए पहले जा अपनी मां का इलाज करा फिर मैं उन रिश्तेदारों को भी बुला लेती हूंl
" हॉस्पिटल में"
डॉक्टर ऐसा कैसे संभव है कि उनके बच्चे को मैं जन्म दे सकूंl "अदिति ने कहा"
संभव है आज विज्ञान इतनी उन्नति कर चुका है कि कुछ भी असंभव नहीं, कुछ टेस्ट करने के बाद हम कृत्रिम भ्रूण को तुम्हारे गर्भाशय में स्थापित कर देंगे जहां वह विकसित होने लगेगाl ""डॉक्टर ने कहा""
कुछ महीने बाद.....
मां ,मां देखो ना मेरे पेट में हलचल हो रही है.. मुझे पैर मार रहा हैl
अदिति के कोख में रईस खानदान की संतान पल रही थी। तो उन्होंने आदिती की सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली और हर तरह से फल फूल खाद्यान्न उन्हें मुहैया करा दिए ताकि उनकी संतान स्वस्थ जन्म लेl
जैसे-जैसे कोख बढ़ती जा रही थी अदिति एक लड़की से मां मे बदलती जा रही थीl
वह हर पल अपने बच्चे को महसूस करने की कोशिश करती, उससे बातें करती ,उसे कहानियां सुनाती... और कई बार उससे अपनी मजबूरी भी बताती.....
और रोती.... मैं कैसी अभागी की मां हूं जो अपने बच्चे को अपनी आंचल में नहीं ले पाऊंगी l अपने सीने में उमड़ती ममता उसे नहीं पिला पाऊंगीl मुझे माफ कर देना मेरे बच्चे.... मैं बहुत मजबूर थी हे विधाता तुम मुझे अब किसी भी जन्म में गरीब न बनानाl
9 महीने बाद......
अदिति दर्द से चीख रही थी... प्रसव वेदना से उसके प्राण कंठ तक आ रहे थे असीम के दर्द के उपरांत उसने एक बेटे को जन्म दियाl
वह बेहोश हो गई, और जब वह होश में आई तो उसके हाथों से सब कुछ छीन चुका थाl वह अपने पेट में अपने बच्चे को महसूस करना चाहती थी, बहुत से बातें करना चाहती थी, उसे अपनी छाती का दूध पिला कर मां होने की संतुष्टि पाना चाहती थीl परंतु शायद एक गरीब के नसीब में माँ की ममता भी नहीं होतीl