स्नेहा हास्पिटल में एडमिट थी ,जब होश आया पास में पडे झूले की तरफ देखा और आखें नम हो गई ।
धीरे से बिस्तर से उतर कर धीरे धीर कदम झूले के तरफ बढायाँ ,पर कदम उठना ही नही चाह रहें थे ।
माँ की ममता उसे झूले की तरफ खीच रही थी ,वहीं अतीत का दर्द कदमों को बढनें से रोक रहा था।
16 साल की अनब्याही माँ इस समाज में कैसे जियेगी ये सोच सोच उसका हृदय बैठा जा रहा था ।पर अपनें अंश से अपने खून से कोई कब तक नजर फेर सकता है । भारी कदमों से वह झूले तक आखिर पहुँच गयी ।
अपने बेटे का देख वह चीख उठी ,और नफरत से मुह फेर लिया ।वही नैन नक्स जिससे वो नफरत करती है वही चेहरा उसे अतीत को कुरेद दिया वह अतीत जिसे भूलना नामुमकिनहै, वह जख्म जो नासूर बन कर पालनें में झूल रहा था ।कैसे वह भाग पायेगी उससे ,यही चिन्ता उसे अन्दर ही अन्दर खाये जा रहीथी।
वह जाकर बिस्तर पर लेट गयी और आँखबंद कर सोनें का प्रयास करनें लगी ,पर नींद तो आँखों से कोसो दूर थी ।
अतीत का चल चित्र आँखों के आगे नाच रहा था ।
इस वर्ष कक्षा 10 में प्रवेश लिया था उसनें ,पढाई में थोडी लापरवाह थी सो माँ पापा चिंन्तित थें ।आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नही थी कि वह ट्यूशन का खर्च उठा सकें ।
एक दिन पापा के दोस्त घर आये ,उस समय वह आँगन में खेल रही थी । स्नैहा ने अभी ही युवावस्था की तरफ कदम रखा था ,उसकारंग रूप उसके पापा के दोस्त के निगाह में चढ गया ।
स्नेहा के पापा ने बातों हीबातों में अपने दोस्त से उसकी पढाई को लेकर अपनी चिन्ता जाहिर कर दी ।
पापा के दोस्त की तो जैसे मनचाही मुराद पूरी हो गई ,उन्होने स्नेहा को पढानें की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली ।
स्नेहा अंकल के घर पढनें जाने लगी ,उसमें अभी बचपना था अंकल का घूरना उसे थोडा अजीब लगता लेकिन शेर की खाल में छुपे भेडिये को पहचान न पाई ।
अंकल से पढने के बाद उसकी पढाई में सुधार आया और वह 10 में प्रथम स्थान से पास हो गई ।
अंकल को घर में देवता की तरह मान दिया जाने लगा ,आगे की पढाई का जिम्मा भी उन्हे ही दे दिया गया । पर अब स्नेहा उनके घर नही जाना चाहती थी ,उसे अंकल के खतरनाक इरादों का आभास हो गया था । वह मना करती रही पर घर वालों के लिये अंकल देवता तुल्य हो गये थे उसकी कौन सुनता ।
स्नेहा के परिवार में अपना स्थान बनाने के बाद अंकल के इरादे खतरनाक हो चुके थे ,उसे यकीन हो गया था बदनामी के डर से स्नेहा कुछ बोलेगी नही यदी बोला भी तो कोई उस पर विश्वास नही करेगा ।
अंततः एक दिन दिन उन्होनें अपनें खतरनाक ईरादों को अंजाम दे दिया ।
स्नेहा चीखती रही ,चिल्लाती रही लेकिन उन्होनें उसे औरत बना दिया ।
उसका सारा बचपना खामोशी की चादर ओढ कर कही सो गया वह दुनिया की भीड में अकेली हो गई ।संकोच वस किसी से कुछ न कह पायी ,पर अंकल नेउसकी इस खामोन का फायदा उठाना शुरू कर दिया उनका जब भी मन होता अपनें मन की कर लेते ।
एक दिन स्नेहा को उल्टियाँ होने लगीं अचानक यह सिलसिला रोज का हो गया ।
वह डरते डरते बिना किसी को कुछ बताये हास्पिटल गई वहाँ जब उसे पता चर की वह माँ बननें वाली है ।
उसके पैरो तले जमीन खिसक गई ।
उसनें अनजाने राहों में अपनें कदम बढा दिये और अनजानी मंजिल की ओर चल पडी । भिखारियों की तरह दर दर ठोकरे खाती उसनें 9महीनें बिता दिये ।अब उसे अपना शरीर भी बोझ लगनें लगा था ।
ईधर माँ बाप को लगा कि मेरी बेटी किसी के साँथ भाग गई है.,उन्होने उसकी खोज खबर लेना भी जरूरी न समझा ।
एक दिन स्नेहा दर्द से बेचैन होकर सडक पर गिर गई । कुछ लोगों को दया आगई उसे हास्पिटल पहुँचा दिया ।जहाँ उसनें एक बेटे को जन्म दिया ,जो हूबहू अंकल की परछाई था ।
एक जख्म जो नासूर बन कर उसके साँथ था ।
वह बस यही सोच रही थी अब क्या होगा?