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स्मृति

22 दिसम्बर 2021

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"स्मृती जल्दी से तैयार हो जाओ "सासू माँ नें आवाज दी l
आज स्मृती के बच्ची के जन्म के उपलक्ष्य में घर  पर भोज रखा गया
हैंl
आज स्मृती ने जी भर के श्रृंगार किया, क्योंकि इस मातृत्व सुख के लिए वर्षों तक इंतजार किया था l यह उसके जीवन की सबसे बड़ी खुशी थींl इतनी खुश तो वह तब भी नहीं थीं, जब उसका विवाह हुआ था l
घरपर सभी  मेहमानआ चुके, महिलाएं ढ़ोलक की ताल पर गीत और नृत्य कर रहीं हैं lस्मृती जैसे ही अपने कमरे से बाहर आई सबकी  नि
गाहें उस पर ही टिक गईं l
आह !कितना सुंदर  रूप है "गौर वर्ण , मध्यम कद, छरहरी काया "उस पर ये लाल रंग का कुंदन जड़ित लहगां l
स्मृति ही सबका आकर्षण केंद्र बनी थीं l उसने बेटी को गोद में लिया और सबके बीच में बैठ गई l" बुआ जी ने कहा "बेटी बिल्कुल तुझ पर ही गई है स्मृतीlवही रूप -रंग, वही नैन-नक्स, तेरी ही परछाईं है ये l
जब सारे मेहमान चले गए, स्मृती बेटी को लेकर कमरें में आ गई, और उसे गोद में लेकर चूमा l
उसे देखते -देखते वह अतीत के पन्नों को देखने लगी......
जब वह पाँच वर्ष की थींl  गाँव के खेत में बनी झोपड़ी में वह अपने मम्मी-पापा के सांथ अपने हालत से बेखबर खेल  रहीं थींl
तभी वहाँ एक जीप आकर रुकी, पास जाकर देखा तो उसमें मामा और मामी  जी  थीं l वे सब अंदर आ गए  अपनी बहन की यह दशा देख कर मामा जी के आखों में आंसू  आगया l कुछ देर इधर -ऊधर की बातें करने के बाद मामा जी ने बहन से पूँछा, तुम लोगों ने खाना खा लिया l "बहन ने सकुचाते हुए कहा " नहीं ये कमाने गए हैं जब कुछ लेकर आएंगे तब बनाऊंगी l मामा जी घर के अंदर जाकर रसोईं देखीं, वहाँ खाली बर्तनों के अलावा कुछ भी न था l जिसे देख कर मामा, मामी रोने लगे l तभी स्मृती के पापा आ गए, उनके हाँथ में बग़ीचे से तोड़ी हुई अमरूद के सिवा कुछ भी न  था l
स्मृती के नाना की गिनती नगर सेठों में होती थीं, और पिता भी सम्पन्न घराने से थे l स्मृती के पिता लाइनमैन थे l
परन्तु भाग्य के खेल निराले ही होते हैं l स्मृती के पिता बिजली के तार जोड़ रहे थे अचानक से करंट लग गया l जिसका असर उनके दिमाग पर पड़ा  और उनका व्यवहार बदल गया, जिसकी वजह से उन्हें नौकरी से हाथ धोना पड़ा l इसी तरह वे परिवार से भी झगड़ कर खेत पर बने झोपडी  में रहने लगेl अब माँ बेटी का पालन पोसण की विकट समस्या आ गई l पर उनके स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं हुआI
स्मृती के मामा सोचने लगे, मेरे घर रहने वाले नौकर भी कभी भूखें नहीं रहते, और यहाँ मेरी बहन को एक वक्त की रोटी भी नही मिलती l
अब वह यहाँ नही रहेगी, हरगिज नही l
उन्होंने बहन से घर चलने के लिए कह दिया l
अब यहाँ से स्मृती के जीवन का नया अध्याय शुरू हुआ l स्मृती की परवरिस नाना के घर में हुई, स्मृती के छः मामा थे चार बड़े मामा अलग हो चुके थे l जो  स्मृती को घर में लेकर आये थे उनका नाम बिहारी था वे पाँचवे नंबर के थे l उनके छोटे भाई का नाम था शेखर, दोनों भाई साथं में ही पुश्तैनी मकान में रहते थे l बिहारी मामा के चार बेटियां और एक बेटा था l
सबसेछोटी बेटी का नाम पूर्णिमा था जिससे स्मृती की अच्छी बनती थीं l स्मृती के नाना तेंदू पत्ते के व्यापारी थे अतः घर धन धान्य से सम्पन्न था l स्मृती की शिक्षा मामा जी के बच्चों के साथं होने लगी l सब कुछ अच्छा चल रहा था, पर बुरे दिन बता कर नही आते l पारिवारिक विवाद के चलते बिहारी मामा ने घर छोड़ने का निशचय  किया l वे परिवार सहित अन्य गांव में चले गए l वे वकील थे,पुश्तैनी

व्यवसाय छोड़ने के बाद उन्होंने, वकालत करनी शुरू की प्रारंभ में घर खर्च चलना भी मुश्किल था l अतः बहन को साथ न ले जा सके, पर हर महीने आकर बहन को राशन व ख़र्च के लिए रूपये दे जाते थे l समय पँख लगाकर उड़ता गया और स्मृती ने युवा अवस्था में कदम रख दिया l
बिहारी मामा ने अपनी दो बेटियों की शादी कर दी, अब उन्हें स्मृती के विवाह की चिंता सताने लगी l उन्होंने स्मृती के लिए रिश्ते देखने लगे पर स्मृती के पिता का साथ न होना, बार -बार समस्या उत्तपन्न कर रहा था l
जयपुर में समाज का वैवाहिक परिचय सम्मेलन था l स्मृती के मामा मामी उसे लेकर वहाँ गए ताकि कोई रिस्ता तय हो जाय l और हुआ भी वही, वहाँ उन्हें एक रिस्ता समझ में आया वो स्मृती को लेकर उनके घर भी गए l वे मध्यम वर्ग से थे पर घर छोटा व सुव्यवस्थित थाl लड़का सामान्य नैन नक्स का व सांवला था lउसके एक भाई एक बहन थीं l स्मृती के मामा ने जब उससे इसके बारे में बात की उसने भी सहमति जता दी l  स्मृती मामा मामी को माता पिता समान इज्जत देती थीं l मामा जी को अब और न भटकना पड़े इस वजह से उसने लड़के के रगं रूप पर ज्यादा ध्यान न दिया लड़के का नाम था अनन्त वह मृदु भाषी भी था l रिस्ता तय हो गया l विवाह का समय भी आ गया l स्मृती दुल्हन के श्रृंगार में अप्सराओं को भी परास्त कर रही थीं l अद्वितीय सुंदरी लग रही थीं  वह l विवाह सम्पन्न हुआ, और वह ससुराल आ गई l वह सुहाग सेज पर नये जीवन के लिए सपनें सजा रही थीं l  तभी अनंत
कमरें में  आया , उसे आया देख स्मृती के मन में डर, प्र सन्नता, शर्म जैसी भावनाएं एक साथ उत्तपन्न होने लगी l
कुछ देर दोनों ने बातें की फिर दोनों सो गए l धीरे धीरे दिन बीतते गए, दिन सालों में बदल गए, पर स्मृती पति सुख से वंचित थीं lशुरू में घर के सभी सदस्य उसे मान देते थेl वह अपने नसीब पर रोने के बजाय, खुद को बुटीक, व पार्लर में व्यस्त रहने लगी l उसने किसी को भी इस विषय में कुछ भी नही बताया,डरती थीं वह  कहीं माँ की तरह ही उसे भी अपनी जिंदगी मायके में न काटनी पड़े l
कई साल बीतने पर भी जब वह माँ न बनी तब लोग तरह तरह की बातें करने लगें, वह सब सुन कर हस देती l
छोटे -छोटे बच्चों को देख उसका भी मन तरसता था, पर जब पति सुख ही नही, तो मातृत्व सुख कहाँ से मिले l
अब अनंत का स्वभाव भी बदल चुका था, वह हर समय उसे शक की निगाह से देखता था l
वह किसी से कुछ भी न कहती,  न ही मायके में ही किसी बात की भनक लगने दीl पर पूर्णिंमा से अपने मन की बात कह लेती थीं l
समय बीतता गया और उसने अपनी जवानी के आठ साल वहाँ बिता दिए l
लेकिन ससुराल वालों का नजरिया अब बदल गया था, वह उसे काम करने वाली नौकरानी समझने लगें थे l उनकी मंशा थीं की किसी तरह इसे बच्चा हो जाय तो यह यहाँ से कहीं न जा पाये l पति की कमी से पूरा परिवार अवगत था, अतः वे चाहते थे की ये देवर के साथ रह कर माँ बन जाये l
सबकी नियत बिगड़ चुकी थींl देवर भी अक्सर उसके कमरें में ताक झाँक  करता रहता था l
यह सब स्मृती के लिए असहनीय था, अतः उसने ये बातें पूर्णिंमा को बताईl पूर्णिंमा ने सारी बातें अपनी मम्मी से बता दी l यह जानकर उन्हें बहुत ही दुःख हुआ, और मामा मामी तुरंत ही जयपुर के लिए निकल दिए lस्मृती ने उन्हें जब वहाँ देखा, तो वह मामी से लिपट कर खूब रोइ l मामी ने ससुराल वालों को खूब सुनाया l
और स्मृती को लेकर घर आ गए, दुबारा वहाँ कभी न भेजने के लिएl
स्मृती जल्दबाजी में तैयार हुई थीं तो वह अपने गहने लेना भूल गई थीं, वह पछता रही थीं कम से कम वो साथ होते तो मामा जी का कुछ बोझ कम होता l
ईधर स्मृती का तलाक हो गया, स्मृती मामा -मामी के साथ रहने लगी उसकी माँ अब भी नाना जी के पुश्तैनी मकान में रहती थीं l जब उन्हें पता लगा तो उन्हें भी बहुत दुख हुआ l
अब स्मृती के मामा जी स्मृती के विवाह हेतु लड़का देखने लगें l
जल्द ही उन्हें एक रिश्ता मिल भी गया, पर स्मृती के मन में विवाह को लेकर कोई उत्साह नही था l
जब लड़का उसे देखने आया तो स्मृती ने अपने अतीत की सारी कहानी उससे बयां कर दी l उसने सब जानकर भी रिश्ते के लिए हा कर दी l
लड़के का नाम राज था, और जल्द ही स्मृती  और राज के विवाह की तैयारियां होने लगीं, जैसे जैसे विवाह की रस्में पूरी होती स्मृति अतीत के पन्नों को पुनः पलटती और  गहरी मायूसी उसके जीवन में छा जाती ।
अंततः विदाई की रस्म शुरू हुई, स्मृति मामा मामी से लिपटकर खूब रोई । भविष्य को लेकर सशंकितऔर  सहमी हुई दुल्हन बन नये ससुराल आगई  l स्मृती ने अतीत में इतने दुःख देखे थे सो वह अब नव वधु की भाति उत्साहित नही थीं l
ससुराल में भी सभी रस्मों के बाद जब स्मृति रात में अपने कमरे में बैठी थी वह अंदर से डर रही थी कि क्या उसके अतीत की परिछाईं, भविष्य को सुखमय बनने देगी?
क्या उसका और राज का रिश्ता विश्वास की अटूट डोर से बंध पाएगा?
तभी राज कमरे में आ जाता है और वो स्मृति के डर और घबराहट को महसूस कर लेता है। वह स्मृति के हाथों को अपने हाथों में लेकर उससे से बोलता है तुम्हारा अतीत मुझे पता नहीं ,तुम्हें भी पता नहीं और घर वालों को भी पता नहीं, बस ऐसा ही समझ कर नई जिंदगी की शुरुआत करो।
राज की बातें सुनकर स्मृति का डर और संदेह दूर हो जाता है और वह स्वयं को तन मन से राज  को समर्पित कर देती है।
समय के साथ राज के प्यार ने उसके सारे गम को धो दिया, और इसका प्रत्यक्ष प्रमाण उसकी गोद में किलकारी भर रहा हैं  l
स्मृती ने उसे बहुत चूमा, और प्यार से उसका नाम रखा "अहाना "l


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