ज़िन्दगी की मुश्किलें ,दुशवारीयाँ,
कर रही हैं , मौत की तैयारीयां।
फासले बढ़ने लगे , हैं बे- बजह,
दे रहीं धोखा , मेरी परछाइयां।
हम संभाले बहुत दिन , तेरा जूनून ,
पर निभाने से ,मिली रुसबाइयां।
तुम समझ ना पाओगे जज्बात को,
रात - दिन डसने लगी,तन्हाइयां ।
खूबसूरत था , तेरा - मेरा मिलन,
खा गईं शायद , मुई खामोशीयाँ।
दिन पिघलकर,रोशनी में बह गए,
रात का दामन , भरी तारीकियाँ।
काश तुम रुख़ से , उठाते सलवटें,
माप लेते , पीर की गहराइयां।
हर लहर साहिल बनेगी , भूल जा,
ड़ूब जायेंगी तुम्हारी , किश्तीयाँ,
आदमीं तो हो गया है, वहिशियाना,
जंगलों में गुम गई हैं , बस्तियां ।
लौट जा चुपचाप , तू अपने वतन,
यूँ तो समझ ना आयेंगी , बारीकीयाँ।
बस नाम के रिश्ते निभा 'अनुराग'तू ,
पेशगी में मुफलिसी , मजबूरीयाँ ।