नई दिल्ली : केंद्र सरकार के तीन साल के कार्यकाल को लेकर पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने लिखा है कि सरकार की जो प्राथमिकताएं होनी चाहिए वह उससे दूसरे रास्ते पर चल रही है। उन्होंने लिखा है अख़बारों और टीवी चैनलों का देखकर पता अंदाजा लगाया जा सकता है कि अवैध बूचड़खाने, कथित गौरक्षकों का उत्पात, शराब की दुकानों की बंदी, एंटी रोमियो दस्ते, विश्व विद्द्यालयों परिसरों में टकराव जैसे मुद्दों का जिक्र इस दौर में ज्यादा हो रहा है।
चिदंबरम का कहना है कि सरकार रोजगार देने के मामले में पीछे रही। अंग्रेजी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस में चिदंबरम ने लिखा, 'हमारे पास महत्वपूर्ण रिपोर्टें और आरबीआई के आंकड़े है जो कहते हैं कि जनवरी 2015 से जनवरी 2017 में चौबीस महीने की अवधि में उद्योगों के लिए बैंक ऋण में महज 7413 करोड़ रूपये या 0.29 फीसदी की वृद्धि हुई। इसमें सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्योग शामिल हैं। चिदंबरम ने लिखा, ''यही कारण है कि मैन्युफैक्चरिंग और रोजगार में वृद्धि नहीं दिख रही है।
चिदंबरम के अनुसार इसकी वृद्धि आईआईपी के आंकड़ों से होती है। जनवरी 2015 और 2017 के बीच औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में महज 1.1 फीसदी की वृद्धि हुई। यानी 189.2 फीसदी से 191.3 ही बढ़ पाया। चिदंबरम ने राष्ट्रीय आय और व्यय जे पूर्वानुमान के आंकड़ों का जिक्र करते हुए लिखा है कि 2015-16 के बीच कुल निश्चित पूँजी निर्माण 6.11 फीसदी था जो 2016-17 में लुढ़कते होते 0.57 पर आ गया। चिदंबरम ने श्रम ब्यूरो की रिपोर्ट के आधार पर लिखा है कि सरकार मेक इन इंडिया और स्किल इंडिया के बावजूद 1,09,000 नए रोजगार दे पायी है।