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सच्ची इबादत

10 अक्टूबर 2021

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🌷🌹"सच्ची इबादत"🌹🌷

लोग बुतपरस्ती में होकर मतवाले, इतने आगे निकल गए हैं।
असलियत को गर्तों में खो चुके हैं, बनाबट में ही ढल गए हैं।
इंसान के बनाए हुए बुतों को ही, नित्य करते हैं सज़दा 'मोहन'।
खुदा के बनाए असल बुतों को तो, ये नफ़रत में निगल गए हैं।

खूब करते हैं व्रत पूजा इबादत, खूब करते हैं यह रोज़ा रमज़ान।
खुश होता ना परवरदिगार इनसे, फिर जीवन का कैसे  कल्याण।
सच्ची इबादत तो वही है 'मोहन', जो रब को गुरू से जानके होती।
रमे राम की रमज़ में बीते हरपल, वही तो भक्ति होती परवान।

गीता क़ुरआन वेद पुराण को पढ़ लें, सभी एक ही बात बताते हैं।
जिसने भी जाना खुदा सत्गुरू से, फ़क़त वही भक्ति मुक्ति पाते हैं।
कर्मकांड या उपराले से 'मोहन', कभी अल्लाह या राम रीझा नहीं।
जो सहज़ सरल समर्पित होते हैं, वे रब में इकमिक हो जाते हैं।

हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई यहूदी, सब इक सांझे पिता की हैं संतान।
रब ने तो फ़क़त इंसां ही बनाया, मज़हब में बंट गए ये खुद नादान।
व्यर्थ की राढ़ मन में पाली 'मोहन', बने बहुत कुछ पर ना बने इंसान।
महक मानवता वाली आए किस विधि, यूँ कैसे खुश होवे भगवान।

भगवान तो खुशी तभी होता है, जब हम हरइक से ही प्यार करें।
सज संवर जाए जग यह सारा, हम सब भक्ति भरे किरदार करें।
आदर-सत्कार करें सबका 'मोहन', सबमें रब का हम दीदार करें।
हरमन हरजन के प्यारे रह कर, हम सब भवसागर को पार करें।

पूरे सत्गुरू ने ऐसी कृपा करी है, जो अंगसंग रमा राम दिखाया है।
अब हरपल होती है पूजा इबादत, हर अल्फ़ाज़ से खुदा रिझाया है। 
समर्पित होते किरदार हैं 'मोहन', सारे ही कर्मफलों से बचाया है।
पाप-पुण्य स्वर्ग-नर्क के झंझट से, बचाके बेग़मपुर पहुंचाया है।

सत्गुरू तुमसे ये अरदास है मेरी, सदा सुमति में हरइक पल बीते।
ये रसना करे तेरी सिफ़्त श्लाघा, हर श्वास सिमर सिमर कर जीते।
नैन रहें शीतल तेरे दर्शन करके, 'मोहन' धड़कन सरगम गाए तेरी।
शुकर शुकर हरपल हो इक तेरा, तुझ बिन इकपल भी हो न रीते।

🌺शुकर ऐ मेरे रहबरां🌺
🙏धन निरंकार जी🙏
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