🌷🌹"सतगुरु की महिमा"🌹🌷
अखंड मंडलाकारं, व्यापतं येन चराचरं।
ततपदं दर्शितं येन, तस्मै श्री गुरुवे नमः।
भारत के महान डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की शिक्षा विभाग में सुंदर देन के लिए शिक्षक दिवस मनाया जाता है। शिक्षक बनना अपने आप में ही सबसे बड़ा उत्तरदायित्व हैं, क्योंकि एक शिक्षक ही वह दिशासूचक है जो जिज्ञासा, ज्ञान और बुद्धिमानी के चुम्बक को सक्रिय बनाता है।
गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, काके लागों पाये।
बलिहारी गुरु आपकी, जो गोबिंद दियो बताये।
शिक्षक जहाँ शैक्षणिक योग्यता का प्रदाता है वहीं पूर्ण सत्गुरू आध्यात्मिक तत्वज्ञान एवं विचारधारा का स्रोत। अतः एक आम इंसान के लिए दोनों महान विभूतियों का ही विशेष योगदान होता है:
शिक्षक की गोद में उत्थान पलता है।
सारा जहां शिक्षक के पीछे ही चलता है।
शिक्षक द्वारा बोया बीज पेड़ बनता है।
वही पेड़ फिर हजारों ही बीज जनता है।
काल की गति को शिक्षक मोड़ सकता है।
शिक्षक धरा से अम्बर को जोड़ सकता है।
शिक्षक की महिमा इतनी महान होती है।
शिक्षक बिन अधूरी वसुन्धरा पर ज्योती है।
याद है न चाणक्य ने इतिहास बना डाला था।
क्रूर मगध राजा को मिट्टी में मिला डाला था।
बालक चन्द्रगुप्त चक्रवर्ती सम्राट बनाया था।
एक शिक्षक ने ही अपना लोहा मनवाया था।
संदीपनी से गुरु सदियों से होते आये हैं।
कृष्ण जैसे नन्हें-नन्हें बीज बोते आये हैं।
शिक्षक से ही अर्जुन व युधिष्ठिर जैसे नाम है।
शिक्षक की निंदा करने से दुर्योधन बदनाम है।
शिक्षक की दयादृष्टि से बालक राम बन जाते हैं।
शिक्षक की अनदेखी से रावण भी कहलाते हैं।
हम सबने शिक्षक बनने का सुअवसर पाया है।
बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी को हमने गले लगाया है।
अपने शिक्षकपन का हम हरपल सम्मान करेंगे।
सुंदर समाज की संरचना हित शिक्षादान करेंगे।
आज हम संकल्प करें अपना फ़र्ज निभायेंगे।
अपने दिव्य किरदारों से ये पूरा जग महकायेंगे।
हम सबमें ही छुपा हुआ है शिष्य गुरू का रूप।
शिक्षा-ज्ञान से जग रोशन हो खिले हमेशा धूप।
सदा सीखने से 'मोहन', खुद का ही कल्याण है।
सीखने की कला से ही, जीवन होता वरदान है।
हम सभी के अंदर शिष्य व गुरु या शिक्षक दोनों का ही रूप छिपा होता है और जीवन में कई बार हम शिष्य और शिक्षक या गुरु के रुप में होते हैं। जीवन में सफलता पाने के लिए परमावश्यक है सीखना व सिखाना और इससे भी अधिक आवश्यक यह जानना है कि क्या सीखना है और क्या सिखाना है। इसके अलावा यह भी जानना जरूरी है कि किससे क्या सीखना है और किसे क्या समझाना। देखा जाए तो इस संसार में आडम्बर, रूढ़िवादिता, अहम-वहम, विकार,ओछापन एवं दिखावटीपन भरा हुआ है जिनसे निज़ात इतनी आसानी से नहीं मिलती है। इन्सानी सोंच में उलझनों, ख्वाहिशों, लालच आदि के इतने दरवाजे हैं जो वक़्त बेवक़्त खुलते और बंद होते हैं लेकिन शिक्षक या गुरु का दर ही एक ऐसा दर है जो हर समय सभी के लिए खुला रहता है:-
सांसारिक दरवाजे ऐसे हैं,जो खुलते और बंद होते।
इक सत्गुरू दर ऐसा है 'मोहन', जो सदा खुले रहते।
कई बार ऐसा होता है कि हम खुद ही कुछ भी सीखे हुए नहीं होते हैं और खुद ही सीखने के जगह दूसरों को सिखाने लगते हैं जबकि खुद ही अनभिज्ञ हैं। अतः सीखना ही सर्वश्रेष्ठ कला है जिसकी कोई उम्र तय नहीं है। तो आज मेरी ईश्वर से यही प्रार्थना है कि पहले मैं स्वयं सबकुछ सीखूं, सही व्यक्ति से सीखूं और सही तरह से सीखूं।
अल्फ़ाज़ नहीं सत्गुरु महिमा के, जो सबकुछ ही सिखलाया है।
संसार के हर कण कण से हमें, इसने ही अवगत करवाया है।
सदा महकें खुद के किरदारों से, औरों को भी महकाएं हम।
उपवन रूपी इस सुंदर दुनिया के, महकते पुष्प बन जाएं हम।
अच्छे व्यवहार की बनें हम खुशबू, जन जन में फैलाएं हम।
जाएं बारी और बलिहारी 'मोहन', गुरुचरणों में शीश नवाएं हम।
एक अच्छा गुरु वही बन सकता है जो एक मर्यादित, अनुशासित एवं दिव्यता से परिपूर्ण निपुण शिष्य रहा हो। पूर्ण सत्गुरू ही निरंकार का साकार अवतार है, इसलिए कहा भी गया है कि:
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः, गुरूर्देवो महेश्वरः।
गुरू साक्षात परब्रहम, तस्मै श्री गुरवे नमः।
👏आप सभी के अन्दर उपस्थित गुरु या शिक्षक को मेरा हार्दिक❤️ अभिवादन व शुभकामनाएं।
🌺शुकर ऐ मेरे रहबरां🌺
🙏धन निरंकार जी🙏