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मित्रता और प्यार

16 सितम्बर 2021

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🌷🌹"मित्रता और प्यार"🌹🌷

सच्ची मित्रता का यह उसूल है, वो कभी नहीं मुरझाती है।
न शिकवे शिकायत की गुंजाइश, सदा कली रूप मुस्काती है।
निभती सदा ही समर्पितपन में, परहित निस्वार्थ होते "मोहन"।
दुनियावी रिश्ते तो मुंह फेरते, फ़क़त सच्ची मित्रता  काम आती है।

अपने प्यारे दिल के सागर में, खुद गहरे गोते तो लगाइए...
यह हैं अमोलक प्रेम के मोती, इन्हें दोस्ती पे बारते जाइए...
इस जहां में सबसे ही प्यारा है, 'मोहन' अपना यह याराना...
अपनी दोस्ती की कस्तूरी से,इस जहाँ को महकाते जाइए...

वो दोस्ती भी तो यारा दोस्ती, जिसमें कि रब्बी शरूर न हो।
रब्बी शरूर में सभी प्यारे लगें, दिलों में भी कोई फ़ितूर न हो।
गुरमत ही वो पवित्र दोस्ती है, जो एकत्वपूर्ण होती है 'मोहन'।
महक उठती है ये प्यारी ज़िंदगी, गरूर से कोई दिल चूर न हो।

जीवन में गर लुत्फ उठाना है, तो मैं खुद से बेहद प्यार करूं।
इस जीवन को गर महकाना है, तो मित्रता पर ऐतवार करूं।
हर श्वास ही मधुरिम रखनी है, तो शुभचिंतन होवे 'मोहन'।
सम्मान देते ही सम्मान मिले है, प्यार पाने को प्यार करूं।

रिश्ते निभते हैं दोस्ती में बखूबी, गर आपसी सोंच इकसार हो...
प्यार भी तो महक उठता है गर, दिल में प्रेम हो ऐतवार हो...
मित्रता को गर समझें 'मोहन', तो न कभी रार हो तकरार हो...
महकते खुशनुमा होते हैं हरपल, गर आपस में प्रेम इकसार हो...

आओ मिलकर ऊंची पेंग उड़ा लें, हम दोस्ती के मस्त पवन में।
खिलकर महकें हम फूल मांनिद, विकारों को भस्म करें हवन में।
दोस्ती की प्यारी सी सरगम, दिल को तरंगित कर देती "मोहन"।
निष्काम निरिच्छित निस्वार्थ दोस्ती, होती बुलंद नील गगन में।

सीरत-ए-इश्क़ है जिन्हें बेइंतहां क़दर भी है, झूठी खूबसूरती को न वो गिनते न वे फंसते हैं।
दिव्य प्रेम सहज खुद ही छलकता है तब, वो बनाबटी सजावट में यूँही कभी भी न खिंचते हैं।
दिव्य प्रेम एकदम ही अलहदा है अनुपम है "मोहन",बिन किसी शर्त के यह तो कोसों दूर है।
ऐसे सान्निध्य को सदैव तरसती है ये दुनियां, जिन्हें भी यह मिला वेही तो बेबाकी से हंसते हैं।

बेहद कठिन है प्यार का, इकरार-ए-इजहार...
इसीलिए तो भावों में ही, होती है सिर्फ़ मनुहार..
अनकहे भावों की क़दर, जो करता है 'मोहन'...
उनके जीवन में रहता है, सदा महकता प्यार...

सच्ची दोस्ती तो वही है जिसमें कोई स्वार्थ न हो।
वो मनुष्यत्व ही क्या है जिसमें छुपा परमार्थ न हो।
यूं तो जान-पहचान होती है हजारों से ही "मोहन"।
सही दोस्ती तो वही है जहां अहंयुक्त पुरुषार्थ न हो।

दोस्त ही प्यारा सखा है, दोस्त ही होता मन का मीत।
दुःख उलझन हर्ता होता, दोस्त से खुश होता है चीत।
दूर हो या नजदीक हो ये, पर साथ निभाता है 'मोहन'।
सच्चा दोस्त मकरंद सम है, दोस्त ही होता है सुरजीत।

दोस्ती गुलकंद है कस्तूरी है यह, 'मोहन' यही तो संजीवनी है।
आवे-ज़मज़म मकरंद है दोस्ती, दिव्य शरूर इलाही सुरंगनी है।
प्यार भरी मनुहार है दोस्ती, मधुरिम स्नेह से ही तो यह बनी है।
मन का मयूरा मित्रता में नाचे, दोस्ती प्यार भरी तरंगनी है।

🌺सच्ची दोस्ती रहे बरकरार🌺
🙏अपनी दोस्ती अपना प्यार🙏
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