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लहरें और तरंगें - विविधा

5 नवम्बर 2021

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🌷🌹"लहरें और तरंगें - विविधा"🌹🌷

मौज़ है समुद्री ऊंची लहरों की,जल का अपना संसार है।
प्यास बुझाता है बरसके जल, करता सदा ही उपकार है।
ज्वार-भाटा सुख-दुःख के सम है, चढ़ता-उतरता 'मोहन'।
हर हालात का लुत्फ़ उठाएं तो, हरपल ही मौज़-बहार है।

प्रदूषण फैलाने के लिए इंसान नहीं, फ़क्त प्रभु जिम्मेदार है।
न बनाता गर किसी इंसां को रब,न होता गर्द धुंआ गुबार है।
जना है इंसां तो भुगतोगे 'मोहन', वन का किया बंटाधार है।
ढेरों ही कारखाने लगाए हैं यहां, प्रदूषण हुआ बेशुमार है।

(प्रदूषण के बारे में यह लेख तो हम इंसानों के लिए एक तीखा व्यंग्य है। भगवान ने इंसान को अपनी छवि देकर श्रेष्ठ कर्मयोनि प्रदान की, तो श्रेष्ठता के अनुरूप ही मानवीय गुणों से युक्त किरदार भी होने चाहिए थे जिससे कि सृष्टि का श्रृंगार होता रहे लेकिन इंसान के हर एक कृत्य ही इसके एकदम से विपरीत कर रहे हैं तो फिर श्रेष्ठता किस बात..और फिर काहे के हम श्रेष्ठ इंसान??? इतने कुकृत्य करने के बाद भी हम भगवान को आंखें तरेरने के अलावा, सारा दोष भी ईश्वर पर ही मढ़ देते हैं तो इस प्रकार ओछी मानवता के ऊपर यह एक करारा व्यंग्य है।)

वन है तो ही ये जीवन है, वन से ही सुरक्षित पर्यावरण है।
बिना सुरक्षित पर्यावरण के, जीव-जंतु का केवल मरण है।
Oneness वन के तहत 'मोहन', पौधे लगाएं वृक्ष बचाएं।
पेंड़-पौधे खुशहाली देते हैं, प्रदूषण का भी होता क्षरण है।

पतझड़ आने पर घबराना कैसा, बाद में बहार भी आती है।
दुःख उलझन में सब्र हो 'मोहन',फिर ये ज़िंदगी मुस्काती है।

ज़िंदगी फूलों की सेज़ नहीं, फूल और कांटो का मुज़सम्मा है।
सुख-दुःख दो पहलू हैं इसके, शीतल छाया है जलती शमा है।
उतार-चढ़ाव में सम रहें जो, जिंदगी उन्हें मधुमास है 'मोहन'।
ज़िंदगी खूबसूरत रब्बी प्रेम है,दो पल ये ज़िंदगी सुंदर समा है।

गर ज़िंदगी का साथी गुलाब है, तो इसके संग उगे तीखे कांटे हैं।
खुशबू के संग चुभन भी मिलती, सुख-दुःख निरंकार ने बांटे हैं।
यूं तो फूल व कांटों का 'मोहन', अज़ब गज़ब अलौकिक साथ है।
फूल कभी न इतराते हैं फ़ितरत पे,तो भक्त ने भी सद्गुण छांटे हैं।

फ़र्श-अर्श अनंत तलक, ये तेरा ही जहान है।
यहां प्रेम की खुश्बू है, यह तेरा ही बागान है।
घृणा-वैर है ना कहीं, 'मोहन' फ़क़त प्यार है।
सारे ही यहां एक हैं, मकां यह आलीशान है।

जन्म-मरण के बीच में, निर्मल धारा बन पाएं।
आप भी रहें शीतल, औरों को शीतल कर पाएं।
फूलों की फ़ितरत है 'मोहन',महक सदा फैलाना।
कुछ ऐसी महक हम भी,निज किरदारों से लुटाएं।

🌺शुकर ऐ मेरे रहबरां🌺
🙏धन निरंकार जी🙏

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