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स्पर्श (यादों का) मैं खेल रही हूं तेरे आंगन में, क्योंकि मैं आज भी तुम्हारी मुस्कान हूं। तुम ही कहते थे ना,तुम मेरे होंठों की मुस्कुराहट में हों। जब मेरे अंतर्मन में कोई बात लगती है मैं आज भी तुम्हारी मुस्कान को ले आती हूं अपने होंठो पर, तुम अपनी गिलगिली उंगलियों को मेरे होंठों पर रख देते थे ना, जब

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