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पुरानी यादें

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पुरानी यादें दिल से इसलिए नहीं जाते क्यूंकि हम रोज उस घटना को याद करते हैं। इसका अर्थ उस घटना रूपी पौधे को हम रोज याद करके, याद रूपी पानी,खाद देते हैं जो उस पौधा (पुरानी घटना/यादें) को हरा भरा रखता है । जितना हम अपने दिमाग को रिकॉल कराएंगे उतना वो याद रखेगा।


छू लेता शायद मैं भी उचक कर चांद कोखुदा ने ख्वाहिशें तो दी मगर हाथ छोटे रखे

संजय की दुनिया का सूरज राहुल के रूप में ढल गया था। उसका बड़ा भाई, उसका सबसे अच्छा दोस्त, चला गया था। एक सड़क हादसा, एक पल में सब कुछ बदल गया था। संजय के लिए, जीवन एक खाली पन्ने जैसा हो गया था, जिस पर

मैंने लिखा कि, अब तुम मेरे नहीं हो,, और ये लिखते हुए, मेरे हाथ थरथरा उठे। मानो ! मेरे पैरों तले ज़मी निकल गया हो , निकल गया हो जैसे, जिस्म से जान,, शरीर सुना पड़ा और मन व्याकुल था । जैसे प्यास से

मैंने लिखा कि, अब तुम मेरे नहीं हो,, और ये लिखते हुए, मेरे हाथ थरथरा उठे। मानो ! मेरे पैरों तले ज़मी निकल गया हो , निकल गया हो जैसे, जिस्म से जान,, शरीर सुना पड़ा और मन व्याकुल था । जैसे प्यास से

मैंने लिखा कि, अब तुम मेरे नहीं हो,, और ये लिखते हुए, मेरे हाथ थरथरा उठे। मानो ! मेरे पैरों तले ज़मी निकल गया हो , निकल गया हो जैसे, जिस्म से जान,, शरीर सुना पड़ा और मन व्याकुल था । जैसे प्यास से

मैंने लिखा कि, अब तुम मेरे नहीं हो,, और ये लिखते हुए, मेरे हाथ थरथरा उठे। मानो ! मेरे पैरों तले ज़मी निकल गया हो , निकल गया हो जैसे, जिस्म से जान,, शरीर सुना पड़ा और मन व्याकुल था । जैसे प्यास से

मैंने लिखा कि, अब तुम मेरे नहीं हो,, और ये लिखते हुए, मेरे हाथ थरथरा उठे। मानो ! मेरे पैरों तले ज़मी निकल गया हो , निकल गया हो जैसे, जिस्म से जान,, शरीर सुना पड़ा और मन व्याकुल था । जैसे प्यास से

मैंने लिखा कि, अब तुम मेरे नहीं हो,, और ये लिखते हुए, मेरे हाथ थरथरा उठे। मानो ! मेरे पैरों तले ज़मी निकल गया हो , निकल गया हो जैसे, जिस्म से जान,, शरीर सुना पड़ा और मन व्याकुल था । जैसे प्यास से

मैंने लिखा कि, अब तुम मेरे नहीं हो,, और ये लिखते हुए, मेरे हाथ थरथरा उठे। मानो ! मेरे पैरों तले ज़मी निकल गया हो , निकल गया हो जैसे, जिस्म से जान,, शरीर सुना पड़ा और मन व्याकुल था । जैसे प्यास से

मैंने लिखा कि, अब तुम मेरे नहीं हो,, और ये लिखते हुए, मेरे हाथ थरथरा उठे। मानो ! मेरे पैरों तले ज़मी निकल गया हो , निकल गया हो जैसे, जिस्म से जान,, शरीर सुना पड़ा और मन व्याकुल था । जैसे प्यास से

कागज की नाव  लेखक : प्रिन्स सिंहल  बरसात का मौसम यानी रिमझिम गिरता सावन और होने लगती है दिल में एक अजीब सी गुदगुदी। मिट्टी की सौंधी सौंधी सुगंध सांसो में महकने लगती है। और मन डूबने लगता है पुरानी

पुरानी यादें आ दोस्त फिर से वही पूरानी यादें ताज़ा करेंगे,  फिर से वही स्कूल के बैंच पर सबसे पीछे बैठने की होड़ लगायेंगे। आ दोस्त फिर से वही टैस्ट में सबसे ज्यादा नम्बर लाने की ज़िद

पुरानी यादें, दिखें जैसे धुंधली तस्वीरेंसमय की पर्तों में छुपी,सजीव तदवीरें हृदय के किसी कोने में गढ़ी हुयी नींवमौका पाकर जेहन में हो उठती सजीवचिर-परिचित , मनभावन, अनुभूतीयस्मृतियों की गलियों में

 कभी हमें भी याद किया तो होता,हमारे भी जज़्बात को पढ़ा तो होता।तुमसे है यह शिकायत शिकवा हमें,हमसे कभी बात करके देखा तो होता।वो गुजरी पुरानी यादें मोहब्बत की,कभी प्यार का इज़हार किया तो होता।आके द

विषय:- पुरानी यादें पुरानी यादें, वो मीठी बातें, जिनमें छुपे हैं दिल के खज़ाने। वो गलियां, वो आंगन, वो बचपन के खेल, जिनमें बसता है हंसी का मेला। माँ की गोदी, बाबा की सीख, छोटे-छोटे ख्वाबों में बसी थी

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