नई दिल्ली: भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का निर्माता कौन हैं? यह बात कोई जानता हो या नहीं मगर भारत सरकार तो ज़ाहिर तौर पर इसे नहीं जानती। क्योंकि खुद भारत सरकार की आधिकारिक वेबसाइट (india.gov.in) पर जाकर तिरंगे का इतिहास पढ़ेंगे तो वहां आपको लिखा मिलेगा कि “आंध्र प्रदेश के एक युवक ने” 1921 में लाल और हरे रंग के झंडे को महात्मा गांधी के सामने प्रस्तुत किया। आपने कई सरकारी प्रपत्रों में पढ़ा होगा कि विवाद की स्थिति में अंग्रेजी संस्करण को ही मान्य माना जाएगा। किसी को लग सकता है कि “तिरंगे के जनक” का नाम अनुवाद में खो गया है। लेकिन ऐसा भी नहीं है, वेबसाइट के अंग्रेजी संस्करण पर भी गांधीजी के सामने झंडा प्रस्तुत करने वाले को “अ आंध्रा यूथ” (आंध्रा का एक युवक) लिखा गया है।
Courtsey: Fully India dot Com पिंगली वेंकैया- जिन्होनें देश को दिया ध्वज
गांधी जी के सामने आधुनिक तिरंगे का पहला प्रारूप पेश करने वाले युवक का नाम पिंगली वेंकैया था। देश के अलग-अलग हिस्सों में आजादी की लड़ाई लड़ने वाले सेनानी भिन्न-भिन्न तरह के ध्वज का इस्तेमाल करते थे। 1921 में आंध्र प्रदेश के रहने वाले पिंगली वेंकैया ने बेजवाड़ा (अब विजयवाड़ा) में हुए कांग्रेस कार्य समिति के सत्र में महात्मा गांधी के सामने भारत के राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर लाल हरे रंग को पेश किया। वेंकैया ने लाल और हरे रंग को भारत के दो बड़े समुदायों हिन्दू और मुसलमान के प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल किया था। पिंगली वेंकैया ने ध्वज का आरंभिक स्वरूप गांधीजी के सामने पेश करने से पहले करीब 30 देशों के राष्ट्रीय ध्वजों का विश्लेषण किया था। जिसके बाद गांधी ने वेंकैया के दो रंगों के ध्वज में अन्य समुदायों के प्रतीक के तौर पर सफेद रंग का भी इस्तेमाल करने के लिए कहा। वहीं लाला हरदयाल ने वेंकैया को देश के प्रगति के सूचक चरखे के प्रयोग की भी राय दी। वेंकैया ने इन दोनों बड़े नेताओं के सुझाव को सम्मान देते हुए तिरंगा झंडा बनाया जिसके बीच में चरखा था। कांग्रेस ने 1921 में भारत के ध्वज के रूप में इस तिरंगे को अनौपचारिक तौर पर ध्वज स्वीकार कर लिया। देखते ही देखते ये झंडा पूरे देश के आजादी के सिपाहियों का ध्वज बन गया। हर कोई इस झंडे को लेकर अपने अपने तरीके से इंकलाब के लिए निकल पड़ा।
कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज की घोषणा 26 जनवरी 1930 को की। 1931 में तिरंगे में लाल रंग की जगह केसरिया को जगह देते हुए कांग्रेस ने इसे अपना आधिकारिक ध्वज स्वीकार कर लिया। तब तिरंगे का लोकप्रिय नाम “स्वराज ध्वज” था। आजादी से पहले देश के संविधान निर्माण के लिए गठित संविधान सभा के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में जून 1946 में एक समिति का गठन हुआ जिसे भारत के भावी ध्वज का निर्धारण करना था। इस समिति में मौलाना अब्दुल कलाम आजाद, सरोजनी नायडू, सी राजागोपालचारी, केएम मुंशी और बीआर आंबेडकर भी शामिल थे।
समिति के सुझाव के बाद कांग्रेस के वर्तमान तिरंगे झंडे को ही मामूली परिवर्तन के साथ भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार करने की बात कही और समिति ने यह भी कहा कि चरखे की जगह अशोक स्तम्भ के धम्म चक्र को ध्वज पर जगह देनी चाहिए। भारत के भावी प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 22 जुलाई 1947 को नए तिरंगे को देश के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार करने का प्रस्ताव रखा। नेहरू के प्रस्ताव को संविधान सभा ने सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया।