काफी मनो मंथन करने के बाद सलिल अपनी शीट से उठ खड़ा हुआ और कलाईं घड़ी पर नजर दौड़ाई। शाम के पांच बजने बाले थे और अब इस तरह से बैठे रहने पर काम नहीं चलने बाला था,.....इसलिये आँफिस से बाहर निकला। उसे बाहर निकलता देखकर रोमील ने उसका अनुसरण किया और उसके पीछे लगभग दौड़ पड़ा। जबकि सलिल,.....उसने इस पर ध्यान नहीं दिया। वह तो चलता हुआ गेस्ट रूम में पहुंचा और वहां पहुंचते ही बैठ गया और फिर रोमील को उस युवक को लाने के लिए आदेश सुना दिया। रोमील अभी गेस्ट रूम के अंदर पहुंचा भी नहीं था कि उलटे पांव लौट गया।
अप्रैल का लास्ट महीना होने के कारण वातावरण में उमस थी और ढलती हुई संध्या के कारण शायद और भी बढ गई थी। इसलिये सलिल ने ए. सी. को चालू कर दिया,....तब तक रोमील उस युवक को लेकर आ चुका था। उसे आते देखकर सलिल संभलकर बैठ गया और उस युवक को सामने बाली कुर्सी पर बैठाया और उसकी आँखों में देखने लगा। परन्तु आश्चर्य की बात थी कि "उस युवक ने भी समान प्रतिक्रिया दी"। वह भी सलिल की आँखों में उसी तरह से झांकने लगा। ऐसे में उसकी प्रतिक्रिया देखकर सलिल चौंके बिना नहीं रह सका था......क्योंकि एक तो पुलिस, दूसरे जब वो खुद हो सामने, अच्छे-अच्छे घबरा जाते थे।.....तो फिर उस युवक में इतनी निडरता कैसे?.....या फिर उसका मानसिक संतुलन ठीक नहीं है?.....खैर जो भी हो, इतनी जल्दी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता था, इसलिये वो उस युवक को संबोधित करके बोला।
अच्छा!....तो तुम अपना नाम बतलाओ?
नाम से आपको क्या लेना है आँफिसर?....आप तो पुलिस बाले हो, खुद ही पता कर लो और फिर मुझे जरूरत ही क्या है कि अपना नाम तुम्हें बताऊँ?.....फिर ये अच्छा- अच्छा का संबोधन करके तुम क्या प्रदर्शित करना चाहते हो आँफिसर?.....सलिल की बातें सुनकर वह युवक तनिक ऊँचे स्वर में बोला। जबकि उसकी बातें सुनकर सलिल मुस्कराया भी और उसे गुस्सा भी आया। क्रोधित तो रोमील भी हो रहा था, उसकी तो इच्छा हो रही थी कि युवक के चेहरे पर दो-चार घूसे जमाए, जिससे कि उसकी बत्तीसी निकल आए। परन्तु सलिल ने उसे शांत रहने के लिए इशारा किया और युवक से बोला।
माना कि हम लोग पुलिस बाले है, परन्तु....जब तक तुम अपना नाम नहीं बताओगे, हमें तुम्हारे बारे में जानकारी कैसे मिलेगी?....अतः तुम अपना नाम बतला दो, तभी न तुम्हारे बारे में जान सकूंगा और फिर तुम्हें यहां से आजादी मिल पाएगी। सलिल ने जान बुझ कर अपने अंतिम शब्दों पर जोर दिया और युवक के चेहरे को देखने लगा। जबकि युवक ने जैसे ही उसकी बात सुनी, चीखने- चिल्लाने लगा और धमकीयां देने लगा।
तुम लोग अपने-आप को दादा समझते हो?....क्या तुम मुझे मार दोगे, जो मैं तुमसे डर जाऊँ और तुम्हें अपना नाम बतला दूं और क्यों मैं नाम बतला दूं?....मुझे यहां से निकल तो जाने दो, एक-एक कर तुम सभी को देख लूंगा और चुन-चुन कर मारूंगा।
और भी न जाने, जो भी उसके जी में आया,....युवक बोलता चला गया। जबकि उसकी बदतमीजी भरी बातों को सुनकर रोमील के तन-बदन में आग लग गई। वह तो उस युवक को पीटने ही बाला था कि सलिल ने उसे इशारे से मना किया और उस युवक को ले जाने को कहा। रोमील उस युवक को लेकर गया और उसे लाँकअप में बंद करके लौटा, तब तक सलिल वही पर बैठा रहा, उस युवक के बारे में ही सोचता हुआ।...आखिर उस युवक के इस प्रकार के हरकत का मतलब क्या हो सकता है?....इस तरह की हरकत मानसिक रुप से विक्षिप्त लोग ही करते है, तो क्या वह मानसिक रुप से अस्वस्थ है?....सलिल को गुस्सा भी आ रहा था अपने स्टाफ पर, जो कि किसी भी व्यक्ति को पुलिस स्टेशन में बिना जाँचे-परखे उठा लाते है। यह भी जानने की कोशिश नहीं करते कि वह कैसा है?....लेकिन अब उसे ऐसे तो छोड़ा भी नहीं जा सकता था, बिना उसके बारे में जाने- परखे हुए।
सलिल सोच ही रहा था, तभी रोमील लौट आया और फिर दोनों वहां से निकले और पुलिस स्टेशन से बाहर निकल कर अपनी कार की ओर बढे। कार में बैठे और रोमील ने कार श्टार्ट की और आगे बढा। कार बंदूक से निकले गोली की भांति प्रांगण से निकली और सड़क पर सरपट दौड़ने लगी। रोमील तो कार ड्राइव में ध्यान पिरोने लगा, जबकि सलिल तो विचारों में खो गया। वैसे तो बहुत दिनों बाद उसके सामने इस प्रकार का मामला आया था कि उसके दिमाग के नट-बोल्ट को कस दिया था। वैसे तो....पहली नजर में उसे यह मामला बहुत ही बेकार लग रहा था,.....उसे लग रहा था कि पुलिस बाले ने बैठे-बिठाए पंगा मोल ले लिया है।
बात सही भी था, उस युवक की हरकत ही ऐसी थी कि पहली नजर में ही मानसिक रुप से विक्षिप्त नजर आ रहा था। लेकिन कहीं....उसके मन के किसी कोने में से आवाज आ रही थी कि कुछ तो है,....... कुछ तो ऐसा है, जो उलझा हुआ है, लेकिन क्या?...बस प्रश्न ही था, जो उसके दिमाग में आकर बार-बार घंटी बजा रहा था। बात सही भी था, उस युवक को टोकने पर ही वो प्रतिक्रिया देता था और इस तरह से प्रतिक्रिया देता था, जैसे कि.....उसके हृदय में कहीं खौफ छिपा हुआ हो। वह सामने बाले पर हावी होने की कोशिश करता था और इस प्रकार की हरकत वही लोग करते है, जो अंदर से भयभीत होते है।
वैसे अभी कुछ अस्पष्ट कहना मुमकिन नहीं था,....क्योंकि अभी तो उस युवक की किसी प्रकार की जानकारी उसके पास नहीं थी। ऐसे में किसी प्रकार की धारणा बनाना अभी जल्दी होगा, उसका यही सोचना था, तभी तो उसने सिर को जुंबिस दी और विचारों को त्याग कर बाहर देखा। उसकी कार पुलिस मूख्यालय पहुंच चुकी थी और पार्किंग में खड़ी हो गई थी। इसके बाद वो रोमील के साथ बाहर निकला और आँफिस की ओर बढ गया। गलियारों से गुजरते हुए जैसे ही एस. पी. आँफिस में पहुंचा, एस. पी. विनय त्यागी ने उसका स्वागत किया। एस. पी. विनय त्यागी, लंबा और हट्टा-कट्ठा शरीर, करक मूँछें और बिल्लौरी आँखें। गौर वर्ण और गोल चेहरा, उसपर उसके घूरमें हुए बाल उनके व्यक्तित्व को अधिक प्रभावशाली बना रहे थे।
सलिल एवं रोमील ने उनको सैल्यूट दिया और सामने बाली कुर्सी पर बैठ गए। एस. पी. साहब ने उन दोनों के चेहरे को इस तरह से देखा, मानो कि पुछ रहे हो कि कैसे आना हुआ। वैसे एस. पी. साहब दोनों से बचकर ही रहना चाहते थे और चाहते थे कि ऐसा मौका ही नहीं मिले कि दोनों यहां आए। विभाग ने पहले ही उन्हें चेतावनी दे-दी थी कि जहां तक संभव हो सके, उन दोनों से बचकर रहे और कभी नहीं उलझे। उन्हें मालूम हो चुका था कि एस. पी. मृदुल शाहा दोनों से उलझ कर अपनी नौकरी गंवा चुके थे। ऐसे में उन्होंने अपने शब्दों में शहद घोला और बोले।
कोई बात है क्या?.....जो अचानक ही तुम दोनों का यहां आना हुआ। एस. पी. साहब ने कहा और फिर नजर उन दोनों पर टिका दी। जबकि उसकी बातें सुनकर सलिल तुरंत ही बोला।
हां सर!....बात ही कुछ इस प्रकार की है।
इसके बाद सलिल उनको आज दोपहर में घटित घटना को बतलाने लगा। एस. पी. साहब ध्यान पूर्वक इस बात को सुन रहे थे,....परन्तु बीच में एक शब्द नहीं बोला। जानते थे कि इस मामले में अपना दिमाग चलाना, मतलब कि मुसीबत को निमंत्रण देना था। जबकि सलिल ने अपनी बात खतम की और उनके चेहरे की ओर देखने लगा। बस इसी इंतजार में कि एस. पी. साहब क्या बोलते है?....क्या आदेश देते है?...जबकि एस. पी. साहब जल्द ही किसी निर्णय पर पहुंचना नहीं चाहते थे। उन्हें अभी इस मामले को अच्छी तरह से समझना चाहते थे , तभी प्रतिक्रिया देना चाहते थे। ऐसे में वहां पर सन्नाटा पसर गया, इस प्रकार से कि सुई भी गिरे, तो धमाका हो।
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