नाम से यह उपन्यास है, तो स्वाभाविक ही है कि चरित्र विशेष होगा। कहते है न कि युवा अवस्था जीवन का वह पड़ाव है, जहां पहुंचने के बाद मन की इच्छा पंख लगा कर उड़ने की होती है।....वह भले-बुरे के भेद को न तो समझना चाहता है और न ही समझ पाता है। फिर तो उसका जो हश्र होता है, वह इतना भयावह होता है कि.... वह संभल ही नहीं पाता। अनियंत्रित इच्छाएँ जब उसपर हावी होती है, वह बस उलझ कर रह जाता है।
मदन मोहन "मैत्रेय
दोपहर के दो बजे।
रोहिणी पुलिस स्टेशन में हरकंप मचा हुआ था और हरकंप मचता भी तो कैसे नहीं,.....आखिर अभी-अभी तो पुलिस बाले ने एक युवक को गिरफ्तार किया था और उसे लेकर पुलिस स्टेशन आए थे।
वैसे तो युवक छ फीट लंबा छरहरा शरीर का स्वामी था। उसके घने जुल्फ जैसे बाल, गोल चेहरा, सुर्ख गुलाबी ओंठ, काली-काली आँखें और कमानी दार भँवें। सब कुछ तो था, जो उसे सुंदर और स्मार्ट घोषित कर रहा था।.....उसपर उसके शरीर पर महंगे ब्रांड के कपड़े और उसके महंगे जुते। परन्तु कुछ तो था, जो अलग था। भले ही वो संभ्रांत परिवार का दिख रहा था,...परन्तु उसकी हरकतें सामान्य नहीं थी। ऐसे में पुलिस बाले ने उसे शक के आधार पर गिरफ्तार कर लिया था और लेकर पुलिस स्टेशन में आ गए थे।
बस मानो कि पुलिस बालों से कोई भूल हो गई हो। वह लड़का तूफान मचाए हुए था। वैसे तो उसके चेहरे की मासूमियत से लग रहा था कि..... उसकी उम्र यही कोई अठारह उन्नीस के करीब होगा। पर उसके बात करने का अंदाज कुछ अलग था, जिससे कभी तो वो विक्षिप्त, तो कभी एक नंबर का बदमाश प्रतीत हो रहा था। उसपर उसका पुलिस बालों को धमकी देना और जोर- जोर से चिल्लाना, पुलिस बालों को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। उसपर आलम ये कि अभी सलिल एवं रोमील पुलिस स्टेशन से बाहर गश्त पर थे। ऐसे में उसको संभालना.....पुलिस बालों को टेढी खीर जैसा प्रतीत हो रहा था।
वैसे तो पुलिस स्टेशन में अभी राम माधवन मौजूद था, परन्तु उसे इतनी समझ नहीं थी कि इस तरह के मामले को संभाल सके। उसपर उस युवक की चीख पुकार और बेवजह दिए जा रहे धमकी ने तो राम माधवन के दिमाग की बत्ती जला दी थी।.....वह तो उलझ ही गया था उस युवक में। इतना सुंदर व्यक्तित्व और कम उमर, लेकिन इतना बदजबान। आखिर किस तरह का पालन- पोषण पाया है इसने। कपड़े से तो अच्छे घर का प्रतीत हो रहा है, लेकिन इस प्रकार की बातें। जरूर उसकी शिक्षा- दीक्षा इसी प्रकार की होगी। राम माधवन सोच रहा था। वैसे उस युवक की बदजबानी सुन-सुन कर वो पक चुका था और चाहता था कि "सलिल जल्द से जल्द यहां आ जाए और इसे संभाले"।
बीतते समय के साथ ही पुलिस स्टेशन में हलचल बढने लगी, क्योंकि उस युवक ने तूफान ही इतना मचा दिया। परन्तु तभी पुलिस स्टेशन के प्रांगण में इनोवा कार आकर रुकी और कार रुकते ही उसमें से सलिल और रोमील बाहर निकले। फिर दोनों ने अंदर की ओर कदम बढाया और जब उन्होंने अंदर कदम रखा। चौंके बिना नहीं रह सके, क्योंकि परेशान पुलिस बाले और बदतमीजी पर उतरे युवक को जो उन्होंने देखा था। सहसा ही उस युवक पर नजर पड़ते ही सलिल चौंके बिना नहीं रह सका था,....कारण कि उसने युवक को कहीं देखा था। लेकिन कहां,....बस यही याद नहीं कर सका, बस परेशान नजरों से युवक को देखने लगा। बस हैरान नजरें वो उस युवक पर टिकाए था, तभी राम माधवन उसे बतलाने लगा कि "वह युवक" गोलंबर के पास अजीब-अजीब हरकतें कर रहा था। बस हम लोगों को शंका हुई और हम लोग इसे उठा कर ले आए।
सलिल ने उसकी बात सुनी और फिर आदेश सुनाया कि "इसे लाँकअप में डाल दो। फिर रोमील के साथ अपने आँफिस की ओर बढ गया और आँफिस में पहुंच कर कुर्सी पर ढेर हो गया। जबकि रोमील फ्रीजर से ठंढे पानी का बोतल उठा लाया और टेबुल पर रखने के बाद बैठ गया और अपनी नजर सलिल के चेहरे पर टिका दी। रोमील समझ गया कि.....उसके बाँस किसी विचार में खोए हुए है। रोमील का सोचना सही ही था, सलिल वास्तव में विचार में खोया हुआ था। वैसे तो "रति संवाद" नाम के आपराधिक घटना को हुए करीब छ महीना हो चुके थे और उसके अपराधियों को सजा भी मिल गई थी। लेकिन वह घटना भी तो अचानक ही ऐसे उसके सामने आई थी।
अचानक ही सलिल बीते हुए छ महीने पहले के घटना क्रम पर चला गया। तब भी तो अचानक ही उसके सामने घटना घटित हुई थी और इस प्रकार से घटित हुई थी कि वह पूरी तरह से उलझ गया था। उसे अच्छी तरह से याद है कि "रति संवाद" नाम की घटना ने तो शहर में तूफान मचा दिया थी। बहुत ही विचित्र घटना थी वह और उसके क्रम। किस तरह से गर्वित नाम के युवक ने पुलिस के दांतो तले लोहे के चने चबबा दिए थे। तो यह भी तो युवक ही है, कमसिन उमर का। तो क्या यह भी कोई बड़ी घटना का संकेत है?.....नहीं-नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। सलिल अपने आप ही इन शब्दों को होंठों में बुदबुदाया और फिर संभल कर बैठ गया। फिर तो उसकी नजर पानी के ठंढे बोतल पर गई और उसने ढक्कन खोल कर होंठों से लगा लिया। जबकि रोमील से उसकी हालत देखी नहीं गई, तभी तो बोला।
सर!....आप कुछ बेचैन से दिख रहे है, क्या कोई बात हो गई है? रोमील ने अपनी नजर सलिल पर टिका दी और उसके चेहरे को देखने लगा। जबकि सलिल ने उसकी बातें सुनी, फिर गंभीर होकर बोला।
रोमील!....तुम्हें याद है वो वाकया, जो आज से ठीक छ महीने पहले घटित हुआ था, वही "रति संवाद" नाम की घटना?....सलिल ने प्रश्न पुछा और अपनी नजर रोमील के आँखों में गड़ा दी। जबकि उसके प्रश्न सुनकर रोमील का रोम-रोम सिहर उठा, फिर वो कंपित स्वर में बोला।
सर!....आप भी न, किस तरह की बातें करते है। भला उस वारदात को हम लोग किस प्रकार से भूल सकते है। क्योंकि उस वारदात ने तो हमारे जीवन में जलजला ला दिया था। हमें दिन में ही तारे के दर्शन हो गए थे उस घटना क्रम के दौरान। रोमील कांपते हुए स्वर में बोला, मानो कि "रति संवाद" नाम की वारदात आज ही घटित हुआ हो। जबकि सलिल ने उसकी प्रतिक्रिया देखी और उसने दूसरा प्रश्न पुछ लिया।
अब यह भी बतला दो रोमील....कि लाँकअप में बंद युवक के बारे में तुम्हारी क्या राय है?.....वैसे यह लड़का भी कमसिन उमर का है और इसके विहेवियर भी तो सामान्य नहीं है। तो तुम क्या सोचते हो उसके बारे में? प्रश्न पुछ कर सलिल उसकी प्रतिक्रिया जानने की कोशिश करने लगा। जबकि उसके प्रश्न सुनकर रोमील पहले तो चौंका, फिर सामान्य हो कर बोला।
सर!.....लिफाफा देख कर अंदर का मजमून पढ लूं, इतनी तो क्षमता मुझ में अभी तक विकसित नहीं हुई है। वैसे सर!.....जब तक हम उसके बारे में पूरी तरह जान नहीं लेते, उसके बारे में धारणा बनाना ठीक नहीं होगा।
शायद तुम ठीक कह रहे हो रोमील। सलिल ने उसकी बाते पूरी होते ही अपनी बात दुहरा दी।
फिर वो मौन होकर उसी युवक के बारे में सोचने लगा। उस युवक से किस प्रकार से पूछताछ करें?....प्रश्न गंभीर था, क्योंकि उसे अभी तक इस बात की भी जानकारी नहीं थी कि युवक की मानसिक स्थिति कैसी है?....फिर तो उसके उपर किसी प्रकार का अपराध भी सिद्ध नहीं होता, तो फिर पुलिसिया अंदाज में पूछताछ करने का तो कोई सवाल ही नहीं था। तो फिर,....सहसा ही उसके दिमाग में कौंधा कि उसने "युवक" को कहीं देखा है, लेकिन कहां?....यही तो उसे याद नहीं आ रहा था। इसी उलझन में उसे थकावट सी महसूस होने लगी, तो उसने काँफी के आँडर दे दिए।
*************
क्रमश:-