एक बड़े साहित्यकार कृष्ण कुमार के जयंती के अवसर पर वह जीवित मिल जाते हैं ,पर विछिप्त अवस्था में ,और मिलने के कुछ ही क्षण बाद ही उनकी मृत्यु भी हो जाती है ,
मन के भावों को शब्दों में पिरोकर सृजन करने का एक अलग ही आनंद है। सामान्यतः यह मानी जाती है कि रचनाएं कवि की कल्पना मात्र होती है, लेकिन सच तो ये है कि कवि अपनी कल्पनाओं में भी उसी हकीकत का जिक्र करता है , जो वो जीता है अर्थात् जो वह अपनी रोजमर्रा की
ये कहानी एक ऐसे डॉक्टर कि है जिस के साथ ऐसा डरावना वाक्या पेश आया जिस ने उस कि जिंदिगी को बदल कर रख दिया.. हमारी दुनिया मे कुछ ऐसा भी होता है जिस पर कभी कभी यकीन करना बहुत मुश्किल हो जाता है..
कई बार कह देना कठिन लगता है और लिख देना सहज। मेरे लिए कविता एक मध्यम है भावों को सरलता से अभिव्यक्त कर देने का। आशा करती हूं अपने प्रयास में सफल हो सकूं।
माया एक 20 साल की हस्ती खेलती लड़की , जिसकी पूरी दुनिया उसके पिता के चारो ओर घूमती है , मां तो माया की बचपन में ही गुजर गई थी किसी बीमारी के कारणवश, सौतेली मां थी जो अच्छी थी बुरी ये आगे जानेंगे ..... माया की जिंदगी बिलकुल अच्छी चल रही थी अपने परिवार
हम सब के मन में कुछ इच्छाएँ सुप्त अवस्था में रहती हैं लेकिन कोई एक पल ऐसा आता है जब हमारी सोई हुई इच्छा फिर से जाग जाती है और सारे बाँध तोड़ कर उन्मुक्त नदी की तरह बहने लगती है यानि की उसे हर हाल में अपने सपनों को साकार
सुबह की पहली झंकार हो तुम वो बारिश की सुहानी शाम हो तुम मेरी उलझनों भारी ज़िन्दगी में किसी सुलझे धागे समान हो तुम... अश्क भले हो नैन में पर मेरे चेहरे की मुस्कान हो तुम यूं तो चल देती मैं कब के यहां से पर मेरे रुकने का एक ठहराव हो तुम मेरी इस खाली-सु
चार टपोरी गुंडे लोगो को परेशान करते रहते हैं एक बार एक बुजुर्ग से टकरा जाते हैं!!
स्वतंत्रता दिवस हमारे देश मे 15 अगस्त 1947 से मनाया जाता है।इसी दिन हम स्वतन्त्र हुए थे। या ये कहें की हमें पूर्ण आजादी मिली थी। लेकिन क्या वास्तव मे हम स्वतन्त्र है...? देश की दशा, देश मे बढ़ रही गरीबी, बेरोजगार युवा क्या इन्हें देश से प्यार नहीं है।
यह किताब जीवन के विभिन्न रंगों का एक सुंदर गुलदस्ता है, जिसमें अलग-अलग रंग के फूल हैं......जैसे करुण रस, हास्य, प्रेम, इत्यादि।ये मेरी स्वरचित रचनाएं हैं, जो वैचारिक,आनंदित, भावुक.....अनुभूति देती हैं।
रक्षाबंधन का त्यौहार सावन माह मे शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।ये त्यौहार हमारे देश मे युगो युगो से मनाया जा रहा है । ये त्यौहार भाई-बहन के प्यार और उनके अटूट रिश्ते को दिखाता है। इस दिन बहने अपने भाई की कलाई पर राखी के प्रेमभरा बंधन बा
हम भारत के जिस समाज में रहते है उस समाज में अनेकों जाती और धर्म के लोग भी रहते है. और इन धर्मों के अलग अलग रीती रीवाज भी होते है कुछ रीती रीवाज़ कुरीतियों के साए में आज भी जीवित है मेरा इस कहानी के माध्यम सें किसी एक धर्म विशेष को टारगेट करना नहीं है.
खुशियों का खजाना.... कुछ बंटा... कुछ गुमा... कुछ छूटा... कुछ जमाने ने लूटा.... खुशियों का खजाना.... पास था... जब कुछ अपनों का साथ था... कैसा बेखबर.... नादान था.... सहेज कर रख नहीं पाया इस बेजोड़ थाती को... इसके अनमोल मोतियों को मन मंजूषा में.... सुरक्
यह कहानी हमारे आस पास के लोगों के और बदलते हुए समय से आयी लोगों के जीवन मे खालीपन,अकेलापन,अनिश्चितताएं और कठिनाइयो का सामना करने मे अक्षमता के ऊपर है आप इस कहानी को पढ़े और अपना प्यार दें।
बनारस में बंगालियों और हिन्दुस्तानियों ने मिलकर एक छोटा सा नाटक समाज दशाश्वमेध घाट पर नियत किया है, जिसका नाम हिंदू नैशनल थिएटर है। दक्षिण में पारसी और महाराष्ट्र नाटक वाले प्रायः अन्धेर नगरी का प्रहसन खेला करते हैं, किन्तु उन लोगों की भाषा और प्रक्र