नई दिल्ली : यह संयोग ही है कि जिस अपोलो अस्पताल में जयललिता ने अपनी अंतिम सांस ली उसी अस्पताल में आज से 29 बरस पहले, 24 दिसंबर 1987 को उनके मार्गदर्शक एमजी रामचंद्रन भी ज़िन्दगी की लड़ाई लड़ रहे थे। कल से पूरा तमिलनाडु अम्मा के अंतिम दर्शन करने के लिए चेन्नई के राजाजी हॉल में रखे उमड़ेगा। लेकिन आपको यह जानकार शायद हैरानी होगी कि एक वक़्त जयललिता को अपने मार्गदर्शक एमजी रामचंद्रन के अंतिम दर्शन के लिए बड़ा अपमान सहना पड़ा था।
तो कहानी यहां से शुरू होती है....
...'एमजीआर नही रहे' वह दिवंगत हो चुके थे। यह उसके लिये चौंकाने वाला बड़ा झटका था। जया ने तुरंत ड्राइवर को बुलाया और 'रामवरम गार्डन' पहुँच गई। जहाँ एमजीआर का घर था। लेकिन जब वह घर पहुंची तो उसे घर में दाखिल होने से रोक दिया गया। वह दरवाजे को लगातार अपनी मुट्ठी से पीटने लगी। आखिकार जब जयललिता के लिए एमजी रामचंद्रन के घर के दरवाजे खुले तो उसे नही बताया गया कि एमजीआर का पार्थिव शरीर कहाँ रखा गया है। जो व्यक्ति उसके लिए न सिर्फ संरक्षक था बल्कि वह उससे भावात्मक तौर पर भी जुडी हुई थी। आज उसके अंतिम दर्शन के लिए तरस रही थी।
आखिरकार उससे कहा गया कि एमजीआर का पार्थिव शरीर पीछे के दरवाजे से 'राजा जी हॉल' में ले जाया गया है। उसने एक पल भी देरी नहीं की, ड्राइवर को बुलाया और राजाजी हॉल पहुँच गई। जहाँ एमजीआर अपनी फुल बाजू वाली शर्ट, टोपी और काले चश्मे में लेटे हुए थे। यह एमजीआर की ट्रेडमार्क पोशाक थी। उस वक़्त की भावनाओं की कल्पना नही की जा सकती जिसमे वह वह डूबी हुई थी। जब एमजीआर का बिना प्राण वाला शरीर उसके सामने मृत अवस्था लेटा हो। यह वही व्यक्ति था जिसने उसकी माँ संध्या ने वादा किया था कि वह उसकी प्रिय 'अम्मू' (जाया) का पूरा ख़याल रखेगा।
उसने एक आंसू नही बहाया, उसने जरा सा भी विलाप नही किया। वह एमजीआर के मृत शरीर के सामने उन लगातार दो दिन तक खड़ी रही। जब लोग एमजीआर के अंतिम दर्शनों के लिए आ रहे थे। तब वह एक सुरक्षाकर्मी थी। उसे वहां लगातार दो दिन तक खड़ा देखकर हर कोई हैरान था कि वह कैसे दो दिन तक वहां खड़ी रही। जब वह वहां से हटी नही तो उसे मानसिक और शारीरिक यातनाएं भी दी गई। एमजीआर की पत्नी जानकी के समर्थकों ने उसे वहां से हटाने के लिए उसके पैरों को कुचला और महिलाओं ने नाखून उसके पैरों गड़ाए। वह निडर खड़ी रही।
एमजीआर और जयललिता का अभिनय
उसने अपने अपमान को गर्व बना लिया लिया। उसे अपने आसपास सबकुछ अनजान सा लग रहा था, और वह अपने दिमाग से लगातार सवाल पूछ रही थी। 'जो व्यक्ति उसे महान बनाने का वादा कर राजनीति में लाया था, वह अब बेजान पड़ा था, क्या उसने झूठ बोला था। वह तो खुद को एमजीआर के उत्तराधिकारी के रूप में देख रही थी लेकिन आज उसे ही हेय दृष्टि से देखा जा रहा था। वह अब एक गैर थी। जबकि लोग एमजीआर के दर्शनों के लिए लड़ रहे थे। उसने एमजीआर के पार्थिव शरीर को छोड़ा नही। गन कैरिज में रखे एमजीआर के शरीर को अंतिम संस्कार के लिए जाया जा रहा था। ड्यूटी पर तैनात सैनिकों ने उसे गाड़ी में लाने के लिए एक हाथ देकर उसकी मदद की।
उस वक़्त एक व्यक्ति पीछे से गुस्से में चिल्ला रहा था उसने मुड़कर देख तो वह विधायक डॉ के.पी. रामलिंगम था। तभी अचानक किसी ने पीछे से उसके सिर पर हमला किया गया। यह जानकी का भारीजा दीपान था, जो उसे गाड़ी से बाहर करने के लिए धक्का दे रहा था, दोनों उसे वैश्या तक पुकार रहे रहे थे। अंत में जया ने अंतिम संस्कार में भाग न लेने का फैसला किया। सैनिकों ने उसे घर पहुंचाया। वह एकदम अकेली हो गई थी। यह खबर जंगल की आग की तरह फ़ैल गई।
इसके बाद जया को पार्टी के विधायकों ने यह कहकर स्वीकार किया कि एमजीआर के उत्तराधिकारी के लिए जयललिता से ज्यादा करिश्माई नेता कोई हो नही सकता। उसके बाद जो पहचान जयललिता ने पार्टी में बनाई उसने उसे एमजीआर के उत्तराधिकारी की पहचान नही बल्कि उससे कई आगे ऐसा खड़ा किया। आज तक AIDMK में नंबर दो कोई है ही नही था। उनके ज़िंदा रहते किसी की सीएम की गद्दी पर बैठने की हिम्मत नही हुई। विधायक अपने पास अम्मा की तस्वीर रखते हैं।
एक बार जयललिता ने कहा था, "मेरी ज़िंदगी का एक तिहाई हिस्से पर मेरी माँ का प्रभाव रहा। ज़िंदगी के दूसरी तिहाई हिस्से पर एमजीआर का. मेरी ज़िंदगी का सिर्फ़ एक तिहाई हिस्सा ही मेरा है। मुझे इसी में बहुत सारी ज़िम्मेदारियों और कर्तव्यों को पूरा करना है। साल 1988 में एम जी रामचंद्रन के निधन के बाद अन्ना द्रमुक दो हिस्सों में बंट गया। एक हिस्से का नेतृत्व एमजीआर की पत्नी जानकी कर रहीं थी तो दूसरे का जयललिता। जयललिता ख़ुद को एमजीआर का राजनीतिक उत्तराधिकारी मानने लगीं। उस वक़्त तमिलनाडु विधानसभा के अध्यक्ष पी एच पांडियन ने जयललिता के गुट के 6 सदस्यों को अयोग्य क़रार दिया. जानकी रामचंद्रन तमिलनाडु की पहली महिला मुख्यमंत्री बन गईं।