नई दिल्लीः यूपी में किसी भी कीमत पर भाजपा को सत्ता से रोकने के लिए समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच महागठबंधन को मुकाम मिलने की खबर है। दोनों दलों के नेता दबी जुबान से बता रहे हैं कि समाजवादी पार्टी यूपी में कांग्रेस को कुल 403 में से केवल सवा सौ सीटें ही देने को राजी हुई है। कांग्रेस नेतृत्व भी अपनी हैसियत जानकर इस पर राजी हो गया है। वहीं पश्चिम यूपी की जाट बाहुल्य दो दर्जन सीटें राष्ट्रीय लोकदल मुखिया अजित सिंह को मिलेंगी। यह महागठबंधन इसलिए हो रहा है क्योंकि समाजवादी पार्टी को लग रहा है कि पिछले दो महीने से पार्टी के अंदर नेताजी मुलामय सिंह की विरासत को लेकर चाचा-भतीजे के बीच मची कलह के चलते जनता में गलत संदेश गया है। चुनाव में नुकसान होने पर सत्ता हाथ से फिसल सकती है। ऐसे में कांग्रेस से गठबंधन कर नुकसान से कम सीटों की भरपाई की जा सकती है। मकसद है कि किसी भी तरह से यूपी की सत्ता को भाजपा से बचाए रखना।
शीला नहीं अब अखिलेश होंगे महागठबंधन के चेहरा
कहा जा रहा है कि भले ही कांग्रेस ने शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री का दावेदार बना दिया मगर कांग्रेस को यूपी में अपनी हैसियत अच्छे से मालुम है। राहुल के दूत प्रशांत किशोर की सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के साथ हुई मीटिंग में तय हुआ कि महागठबंधन के मुख्यमंत्री चेहरे अखिलेश यादव ही होंगे। यहां बता दें कि इससे पहले मुलायम सिंह के निर्देश पर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव ने रालोद मुखिया चौधरी अजित सिंह और जनता दल यूनाइटेड नेता शरद यादव से मुलाकात कर उन्हें पांच नवंबर को पार्टी के लखनऊ में आयोजित रजत जयंती समारोह में भाग लेने का न्योता दिया था। दोनों नेताओं ने उस दौरान सपा के मंच को साझा करने पर हामी भर दी थी। उसी समय यह सियासी गलियारे में बात तेज हो चली कि समाजवादी पार्टी का रजत जयंती समारोह कई मायनों में खास होगा। इस पर मंच पर बिहार की तर्ज पर यूपी में महागठबंधन की छाप सपा के मंच पर दिख सकती है।
कांग्रेस से चुनाव लड़ने के दावेदार हुए नाराज, बोले जेब से खर्च कर हो गया कंगाल
महागठबंधन की बात लगभग तय होने पर कांग्रेस से इस बार चुनाव लड़ने की तैयारी करने वाले नेता परेशान हो गए हैं। उनमें कांग्रेस नेतृत्व के प्रति गुस्सा भी देखा जा रहा है। क्योंकि महागठबंधन की स्थिति में केवल एक तिहाई सीटों पर ही कांग्रेस उम्मीदवार उतारेगी। ऐसे में हर सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशियों के चुनाव लड़ने की संभावना ही खत्म हो जा रही है। जबकि हर सीट पर कांग्रेस को कम से दस से 15 दावेदारों के आवेदन मिले। कांग्रेस नेतृत्व की मंशा का हवाला देकर प्रशांत किशोर सभी दावेदारों से क्षेत्र में जनसंपर्क करने का निर्देश देते रहे। हर दावेदार खुद को सबसे मजबूत साबित करने के लिए पिछले छह महीने से प्रचार में पैसा फूंकता रहा। ऐसे में अब महागठबंधन की खबरों ने बेचैन कर दिया है। कहा जा रहा है कि अगर महागठबंधन के बाद जिन नेताओं को टिकट नहीं मिलेगा वे कांग्रेस को हराने के लिए भाजपा को सपोर्ट कर सकते हैं। जिससे कांग्रेस को लेने के देने पड़ जाएंगे।