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साप्ताहिक_प्रतियोगिता

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टूटे न कोई और सितारा, आओ प्रार्थना करें. बिछड़े न कोई हमसे हमारा आओ प्रार्थना करेंतूफाँ है तेज़, कश्तियाँ सबकी भँवर में हैं,मिल जाये हर किसी को किनारा,आओ प्रार्थना करें शरारत किसी

तीन पहर तो बीत गये,बस एक पहर ही बाकी है।जीवन हाथों से फि जयसल गया,बस खाली मुट्ठी बाकी है।सब कुछ पाया इस जीवन में,फिर भी इच्छाएं बाकी हैं*दुनिया से हमने क्या पाया,यह लेखा - जोखा बहुत हुआ,इस जग ने हमसे

डायरी दिनांक १४/०४/२०२२   शाम के चार बजकर चालीस मिनट हो रहे हैं ।   आज छुट्टी का दिन लगभग गुजर गया और पता ही नहीं चला। वैसे आज के अवकाश के दो कारण हैं। एक तो आज महावीर जयंती है। दूसरा आज बाब

    भारतीय सभ्यता के नाम..    हमारे द्वारा ही हमारी      भारतीय सभ्यता का साथ छूट रहा हैगाय हमारी  काऊ बन गयी,           &nbs

मैं तुमसे बेहतर लिखता हूं     पर जज़्बात तुम्हारे अच्छे हैंमैं तुमसे बेहतर दिखता हूं      पर अदा तुम्हारी अच्छी हैमैं खुश हरदम रहता हूं     पर मुस्कान तुम्

प्रेम से वो जिगर मांगे,वो भी दे दूंगा ।       कैसे भी हो,मैं जिन्दगी को, उन पर कुर्बान कर दूंगा ।दिल से चाहने की, इक मिशाल दे दूंगा ।       मानता हूं, छल-कपट मे

साप्ताहिक लेखन प्रतियोगिता के सभी नियमों के अनुसार वीक 26(4 अप्रैल 2022 से 10 अप्रैल 2022) के सबसे सक्रिय लेखक हैं Kanchan Shukla  आपको शब्द.इन टीम की ओर से बधाइयां 🎊 सम्बंधित पुरस्कार आपको 1

 *केवल मनुष्य ही एक मात्र ऐसा प्राणी है, जिसका व्यक्तित्व निर्माण प्रकृति से ज्यादा उसकी स्वयं की प्रवृत्ति पर निर्भर होता है।**मनुष्य अपने विचारों से निर्मित एक प्राणी है, वह जैसा सोचता है वैसा

मां का महकता आंचल, वहीं सौगात थी मेरी,           आज उन स्मृति श्रृंखलाओं में, जुड़कर,ही कुछ महक रहा हूं, मैं ।            आज स्मृतियां ही,सज

  जो सबसे पहले क्षमा माँगता है,वह सबसे बहादुर होता है।जो सबसे पहले क्षमा कर देता है,वह सबसे शक्तिशाली होता है।औरजो सबसे पहले भूल जाता है,वह सबसे अधिक सुखी व्यक्ति है।सब दुःख दूर होने के बाद

बात अगर किसी बड़े से शहर की हो तो छोटी सी खबर भी तमाशा बन जातीं हैं... पर वो ही बात किसी छोटे से गाँव या कस्बे में हो तो...? ग्रामीण बाल सुधार गृह, करौली, राजस्थान.. ( काल्पनिक) अक्सर ऐसे बा

बन के मोबाइल मैं, तुम्हारे साथ रहूँ। वक्त, बेवक्त, हर वक्त, तुम्हारे पास रहूँ।। ढूंढ़े नजर तुम्हारी, तरसे दीदार को मेरे। एक पल की भी दूरी, तुम्हारी ना सहूँ।। सुनकर आवाज मेरी, दौड़कर तुम आओ। तुम चुपचाप

हाँ मैं डरपोक हूँ, डरती हूँ जमाने से। खुद को कैद कर लिया है, बचती हूँ बाहर जाने से। लेकिन घर के अंदर भी, रह ना पाती सुरक्षित। रिश्तों का नकाब ओढ़े, दरिंदों से होती भक्षित। घूरतीं हुईं निगाहें, हर जगह

दोपहर का समय था, दरवाजे पर आवाज आई। दरवाजा खोल के बोली, क्या काम है भाई।। दस बारह साल का लड़का, हाथ जोड़कर बोला। दस रुपये दे दो, शक्ल से दिख रहा था भोला।। मैंने कहा तुम, स्कूल क्यूँ नहीं जाते। पढ़ने

सुबह सबेरे छः बजे, छत पर टहल रही थी मैं। प्राकृतिक नजारों का, लुफ्त उठा रही थी मैं। चिड़ियाँ चहचहा रहीं थीं, कौआ कर रहे थे कांव-कांव। किट किट करती हुई गिलहरी, बैठी थी टंकी की छांव। मैं यह सब देखकर उनक

कोरोना के समय पर, लगा था लॉकडाउन। बंद हो गए थे, क्या शहर क्या टाउन। कारखाने हो गए थे बंद, रुक गए थे वाहन चलना। घरों में सब कैद हुए, बंद हुआ बाहर निकलना। चारों तरफ हाहाकार मचा था, हर आदमी डरा हुआ था।

जिस देवी मां को, ढूंढते फिरते हैं, मन्दिरों में ।       वह तो घर में ही, रहती, विराजमान हैं ।फिर क्यूं, मानव को हो गया, इतना अज्ञान है ?        मां की कभी सेवा

कोशिश सफलता की कुंजी होती है ।एक छोटी सी कोशिश भी सफलता की तरफ कदम बढ़ाती है । कोशिश करना कभी नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि कोशिशें इंसान को सफलता की सीढ़ी पर पहुंचाता है ।

अगर आप से कोई गलती हो जाए तो बहुत देर तक उस का रोना रोते न रहिए, उस का कारण जान लीजिए और फिर आगे की फ़िक्र कीजिए. धीरज से कमजोर आदमी को भी बल मिलता है, बेसब्री से शक्ति बरबाद होती है।जैस

 जिंदगी में भी बहुत तुफान ओर झोंकें आते हैं,और जिंदगी में पेड़ से कमजोर रिश्ते और कमजोर साथी इन झोन्कौ में विलीन हो जाते हैं...!कुछ लोग अपनी अकड़ ओर वैअक्ल की वजह से कीमती रिश्ते खो देते हैं ,और

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