युगों युगों से लोग झेल रहे हैं
दबंगों की मनचाही परिपाटी
भैंस उसी के कब्जे में रहती
है जिसकी मजबूत हो लाठी
लोकतंत्र में सत्ता भी हो गई
बिल्कुल भैंस के ही समान
जिसकी लाठी में जोर वो हो
जाता सत्ता पर विराजमान
भारत की संसद में हो गई है
करोड़पतियों की ही भरमार
सो संसद को सुनाई नहीं पड़
रही असंख्य किसानों की गुहार
बड़ा सवाल यही कि अब कौन
करेगा किसानों की सही सुनवाई
जब संसद और विधानसभाओं
में बैठे करोड़पतियों के अनुयायी
दुनियाभर में बिल्कुल एक
जैसा ही है सत्ता का चरित्र
वह खुद को भाग्यविधाता
समझता दूसरों को भृत्य
सत्ताधीशों की सदा मौज
आम जन का जीवन दुश्वार
सत्ताधीशों को सुनाई नहीं देती
आम जनता की करुण पुकार