उमड़ घुमड़कर जैसे कभी
कभी नभ पे छा जाते हैं मेघ
वैसे भावनाओं के ज्वार भी
बढ़ाया करते मन के उद्वेग
बिल्कुल मेघों सा ही होता है
उद्वेग का आखिरी अंजाम
ऊर्जा क्षरण के बाद धरातल
ही बन जाता उसका मुकाम
22 अक्टूबर 2021
उमड़ घुमड़कर जैसे कभी
कभी नभ पे छा जाते हैं मेघ
वैसे भावनाओं के ज्वार भी
बढ़ाया करते मन के उद्वेग
बिल्कुल मेघों सा ही होता है
उद्वेग का आखिरी अंजाम
ऊर्जा क्षरण के बाद धरातल
ही बन जाता उसका मुकाम
कविता के माध्यम से बहुत अच्छी सीख दी है आपने।🙏🙏
23 अक्टूबर 2021