28 अप्रैल 21 मेरी जिंदगी
की सबसे भयानक रात
इसी रात मेरे सिर से हटा
आदि संरक्षक का हाथ
माँ मेरी चली गई अनंत
यात्रा पर अकस्मात
ईश्वर ने चूर चूर कर दिए
मानस के सब जज्बात
भव सागर में आज खड़ा
मैं बिल्कुल ही असहाय
ईश्वर के अलावा और कोई
नहीं जो सुझाए सही राह
हाथ जोड़ दोनों प्रभु राम से
सदा करता यही एक अर्ज
सन्मति. सद्मार्ग यूँ देना कि
निभा सकूं अपने सारे फर्ज