कई जूते औ चप्पल घिस गए
पर जनता को मिले न न्याय
तंत्र के पुर्जे को कहीं दिखती
नहीं लोगों की पीड़ा या हाय
राजनीति और तंत्र में अजब
सी हो जाती है दुरभि संधि
अंधे गुरु और बहरे चेले का
जैसे विधि ने किया हो प्रबंध
मौलिक प्रश्नों पर होता नहीं
अब संसद के भीतर विमर्श
सत्तारूढ़ नेताओं ने भुला दिए
अब लोकतंत्र के सभी आदर्श
निज सत्ता और छवि की ही अब
बस सब नेताओं को होती फिक्र
भूलकर भी वो कभी नहीं करते हैं
जनता की समस्याओं का जिक्र