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सौतिया डाह

11 फरवरी 2022

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ईश्वरदास ने अजमेर के हाकिम और किलेदार से लड़ाई की तैयारियों का इन्तजाम करने के लिए कहा। इसी बीच जोधपुर से सरूपदेई और दूसरी रानियों ने उसके पास एक बड़ी रिश्वत भेजी और प्रार्थना की कि जिस तरह मुमकिन हो इस बला को वहीं रहने दो, वह किसी तरह जोधपुर न आने पाए। अजमेर से चलते वक्त हमने आपसे यही बात कही थी और अब तक आपने इस बात का ख्याल भी रखा है। अब भी तुम्हारे ही रोके रुक सकती है। दूसरा उसे कोई नहीं रोक सकता। आप राव जी को समझाइए कि ऐसा हरगिज न करें। हम इस इनायत के लिए आपके बहुत एहसानमंद होंगे। चारण जी रिश्वत पाकर निन्यानवे के फेर में पड गए। कहां तो रोज तैयारी की बहुत ताकीद करते थे कहां अब ढीले पड़ गए और तैयारी में भी देर होने लगी।
एक और गुल खिला। हुमायूं शेरशाह से शिकस्त खाकर सिंध भाग गया था, उसने जब यह सुना कि राव जी लड़ाई की तैयारी कर रहे हैं तो उनके पास अपना एक दूत यह संदेश देकर भेजा कि आप अकेले शेरशाह से हरगिज मत लड़िएगा। मैं भी आपका साथ देने को आ रहा हूं। हम दोनों मिलकर उसे हराएंगे। इस मदद के बदले में आपको गुजरात फतेह करवा दूंगा। राव जी ने यह बात मान ली और बादशाह को लिखा कि आप जैसलमेर होकर तशरीफ लाइएगा। वहां वाले हमारे रिश्तेदार हैं। वह आपका जरूर साथ देंगे। उधर ईश्वरदास को ताकीद की– रानी को लेकर जल्द आओ, हम तुम्हें कुछ जरूरी काम के लिए रावल जी के पास जैसलमेर भेजेंगे। राव जी का इरादा था कि इस तरह हुमायूं की मदद करके उसे तख्त पर बिठा दें और उसके नाम से सारा देश अपने आधीन कर लें।
ईश्वरदास ने इस आवश्यक कर्त्तव्यों को पूरा करने में अपना ज्यादा फायदा देखा। जल्द हाकिम शहर और किलेदार से सवारी का इंतजाम करा लिया और रूठी रानी को बड़ी शान के साथ जोधपुर रवाना कर दिया। दूसरी रानियों ने जब यह खबर सुनी तो हाथ-पैर फूल गए कि अब यह बला आ पहुंची। नहीं मालूम इसके पास क्या जादू है कि राव जी इसके बात न पूछने पर भी खुशामद में लगे रहते हैं। अब उसे किला सौंपकर आप लड़ने जाएंगे। खूब, औरत क्या है जादू की पुड़िया है। भला जब किला उसके इशारे पर चलेगा तो हमारी जिन्दगी दूभर कर देगी। हमसे उसकी हुकूमत बर्दाश्त न होगी। उसमें क्या सुर्खाब के पर लगे है कि किला उसको सौंपा जा रहा है। वह जादूगरनी है। जादूगरनी ने साठ कोस से भी वह मन्तर मारा कि जिसका उतार नहीं। जालिम दगाबाज ईश्वरदास भी अपनी तरफ आकर फिर उधर हो गया।
एक खवास ने रानी की यह बातचीत सुनकर कहा कि ईश्वरदास फूट गया तो क्या हुआ, उसका चाचा आसा जी तो यहीं मौजूद हैं, उससे काम लीजिए। वह ईश्वरदास से बहुत ज्यादा होशियार है। रानियों को यह सलाह पसंद आई। झाली रानी ने उसी खवास को आसा जी के पास भेजा और कहलवाया कि तुम्हारा भतीजा वहां बैठे-बैठे बड़ी बेइन्साफी कर रहा है, हमें अब आपके सिवा कोई दूसरा नजर नहीं आता। आप ही हमारा काम कर सकते हैं। किसी तरह इस बला को रोकिए वर्ना हम कहीं के न रहेंगे। आसा जी ने आकर कहा– ‘‘वह नालायक मेरे कहने में नहीं है, और जो हुक्म हो उसे बजा लाऊं।’’
झाली रानी– ‘‘भट्टानी यहां हरगिज न आने पाए।’’
आसा जी– ‘‘बहुत अच्छा, ऐसा ही होगा। न आने पाएंगी।’’
झाली रानी– ‘‘न कैसे आएंगी, वह तो चल दी हैं। कल-परसों तक आ पहुंचेंगी।’’
आसा जी– ‘‘आप खातिर जमा रखिए, मैं उसे रास्ते में रोक लूंगा।’’
रानियों ने धन-दौलत से आसा जी को मालामाल कर दिया और कहा, अगर आप हमारा काम कर देंगे तो हीरे-जवाहरात से आपका घर भर दिया जाएगा।
आसा जी ने राव जी से यह बहाना किया कि एक जरूरी काम से घर जा रहा हूं और इजाजत पाते ही अजमेर की तरफ चला। जब जोधपुर से पन्द्रह कोस पूरब को साना गांव के करीब पहुंचा तो उसे दूर से निशान का हाथी दिखाई दिया और नक्कारे की आवाज कान में आई। समझ गया कि रूठी रानी की आवाज कान में आ रही है।
सवारी का दूर तक तांता लगा था। हाथी के पीछे ऊंटों का नौबतखाना था। उसके पीछे घोड़ों का नक्कारा बज रहा था। जरा और पीछे सजे हुए ऊंट और फिर चीलों (जोधपुर के निशान या झण्डे में चील की तस्वीर बनी होती है। यह राठौरों का कौमी निशान है।) का झुंड हवा में लहराता दिखाई दिया। झंडे के पीछे लड़ैत बहादुर राठौरों का एक रिसाला था, फिर एक बन्दूकचियों की कतार, उनके पीछे तीरंदाज और उसके बाद ढाल-तलवार वाले राजपूत थे। जरा और पीछे हट कर कोतल हाथी और घोड़े सोने-चांदी में डूबे हुए जर्दी और जर्बफ्त के सामान से लैस धीमे-धीमे चलते थे। उसके बाद नकीब और चोबदार सोने-चांदी के डंडे लिए रास्ता साफ करते चलते थे। चारण ईश्वरदास जी भी पांचों हथियार लगाए, उदंची बने, एक धीमे-धीमे चलने वाले घोड़े पर अकड़े बैठे थे। ज्योंही उनकी नजर अपने चाचा आसा जी पर पड़ी, घोड़े से उतरकर मुजरा किया और पूछा– ‘‘आप यहां कहां?’’ आसा जी बोले– ‘‘बाई जी की अगवानी करने आया हूं।’’ दोनों वहीं खड़े होकर बातें करने लगे। जुलूस बढ़ता चला गया।
नकीबों के पीछे एक जमात सशस्त्र स्त्रियों की आई जो तीर-कमान और खंजर लगाए हुए थीं उन्हीं के झुरमुट में रानी उमादे का सुनहरा सुखपाल था। उस पर जरी का गहरा गुलाबी पर्दा पड़ा था। जगह-जगह अनमोल जवाहरात और नगीने जड़े हुए थे जिन पर निगाह नहीं ठहरती थी। कहात अतलस और कमखाब के लिबास पहने हुए थे। इस सजे हुए सुखपाल के पीछे नंगी तलवारों का पहरा था फिर कई जनानी सवारियां पालकियों, पीनसों और रथों में थी। उसके बाद राठौरों का एक रिसाला और रिसाले के पीछे जुलूस के बाकी कोतल हाथी-घोड़े और ऊंट थे। सबसे पीछे फराशखाना, तोखाखाना, रसदखाना और फौज की दूसरी जरूरी चीजों की गाड़ियां थीं।
आसा जी के हमराही कहते थे कि देखें आसा जी कैसे इस धूम-धड़ाके से चलती हुई राजसी सवारी को रोक देंगे जिसके आगे कोई चूं नहीं कर सकता। इतने में रूठी रानी का सुखपाल आसा जी के बराबर आ पहुंचा। उसने बड़े अदब से चोबदार को आवाज देकर कहा– ‘‘बाई जी से अर्ज करो कि आसा चारण मुजरा करता है और कुछ अर्ज भी करना चाहता है।’’ उसके साथ ही यह दोहा पढ़ा-

मान रखे तो पीव तज पीव रखे तज मान
दोमी हाथी बंधिए एकड़ खतमों ठान

यानी, अगर मान रखना चाहती हैं तो पति को तज दें और पति को रखना चाहती हैं तो मान को तज दें, क्योंकि एक ही थान में दो हाथी नहीं बांधे जा सकते।
यह दोहा सुनते ही रूठी रानी का जोश फिर ताजा हो गया और दिल काबू में न रहा। फौरन हुक्म दिया कि अभी सवारी लौटे, जो एक कदम भी आगे रक्खे उसकी गर्दन उड़ा दी जाएगी। सब लोग हैरत में आ गए कि यह क्या हुआ। एकाएक यह कायापलट क्यों कर हुई। ईश्वरदास ने बहुत जोर मारा, हाथ जोड़े, पैरों पडा, सारी वाकशक्ति खर्च कर डाली मगर आसा जी के जादूभरे शब्दों के सामने उसकी कुछ न चली। सरदार-सिपहसालार बहुत-बहुत आरजू मिन्नत करते रहे मगर उसने किसी की न सुनी। उसी कोसाना गांव में डेरे डलवा दिए।
आसा जी को भी तक संशय था कि कहीं लोगों के कहने-सुनने से रानी का इरादा फिर न पलट जाए। लिहाजा ज्योंही डेरे पर गए वह उनकी ड्योढ़ी पर हाजिर हुआ और मुजरा करके कहा– ‘‘बाई जी, आपकी जितनी स्तुति की जाए थोड़ी है। आपने जो ठान ठानी है वह आप ही का काम है।’
रानी– ‘‘बाबा जी, वह दोहा फिर पढ़िए। बहुत अच्छा और सच्चा है। मैं अपनी टेक कभी न छोड़ूंगी।
आसा जी– (दोहा पढ़कर) ‘‘बाई जी, राजाओं में सच्चा मानी दुर्योधन हुआ। उसी कुल में आप हैं। रानियों में आपका-सा अपनी बात पर कायम रहने वाला कोई और नहीं है।
रानी– ‘‘बाबा जी, दुर्योधन नाम का तो एक ही राजा हुआ है पर अभागी उमा के नाम की तो कई रानियां हुई। उनमें एक के नाम का यह दोहा मशहूर है–

हार दियो छन्दो कियो, मोक्यो मान मरम
उमा पीउ न चख्यो, आड़ो लेख करम।’’

यानी, हार दिया, छिपाया, इज्जत खोई फिर भी उमा को पति का सुख न नसीब हुआ। उसकी किस्मत की लकीर आड़ी पड़ गई।
आसा जी– ‘‘बाई जी, यह तो उमा१ सांखेली थी और तुम उमा भट्टानी हो। दोनों का घराना भी एक नहीं।’’ (1. उमादेई सांखेली गाधरों के राजा अचलदास की रानी थी। उसकी सौत सोढ़ी रानी राजा के मुंह लगी थी कि राजा उसके डर से सांखेली के पास नहीं जाता था। जब इस तरह बहुत साल गुजर गए तो एक दिन सोढ़ी रानी ने सांखेली के पास एक अनमोल हार देखकर एक रात के लिए मांगा। उसने इस शर्त पर वह हार दिया कि सोढ़ी राजा को एक रात उसके पास आने दे। सोढ़ी ने यह बात मंजूर कर ली मगर राजा को समझा दिया कि जाना, मगर चुपचाप रात काटकर चले आना। राजा ने वैसा ही किया। सवेरे सांखेली रानी ने बड़ी व्यथा के स्वर में यह दोहा पढ़ा। मगर जनमुरीद राजा को जरा भी तरस न आया। राजपूताना के लोग निराशा के लिए ये यह दोहा पढ़ा करते हैं।)
रानी– (रोकर) ‘‘बाबा जी, दोहे में सिर्फ उमा कहा है, सांखेली और भट्ठानी कौन जाने।’’
आसा जी– ‘‘क्यों न जानें? यह दोहा अचलदास का कहा हुआ है। उमा देई सांखेली उसकी रानी थी। उसे सब जानते हैं, क्या तुम नहीं जानतीं?’’
रानी– ‘‘मेरे और तुम्हारे जानने से क्या होता है? दोहे में तो कोई व्याख्या नहीं की। मेरे और तुम्हारे पीछे कौन जानेगा?’’
आसा जी– ‘‘तुम्हारे पीछे तक अगर जीता रहा तो तुम्हारे नाम को अमर बना जाऊंगा।’’
रानी– ‘‘बड़ी खैरियत हुई कि आप आ गए। अगर आप न आते तो न जाने क्या होता। आपके भतीजे के दमधागों में आकर मैं अपनी मरजाद छोड़ देती तो सौंते मुझ पर हंसती और कहतीं कि बस इतना ही पानी था।’’
इतने में चोबदार ने आकर अर्ज किया कि ईश्वरदास हाजिर है। आसा जी यह सुनते ही खटक गए। ईश्वरदास ने आकर कहा– ‘‘बाई जी, आपने यह क्या जुल्म किया, चलती सवारी राह में ही ठहरा दी। राव जी आपका रास्ता देख रहे हैं। कुमार रामसिंह रायमल, उदयसिंह और चन्द्रसेन आदि आपकी अगवानी के लिए तैयार हैं। सारे शहर में जश्न हो रहा है कि रूठी रानी तशरीफ लाती हैं और राव जी उन्हें किला सौंपकर लड़ने जाते हैं। भला यहां रुक जाने से लोग अपने दिल में क्या समझेंगे?
रानी– ‘‘इंतजाम जो हो वह मेरे सुपर्द करें और खुद शौक से लड़ने जाएं।
राजपूतों को दुश्मनों से लड़ने में ढील-ढाल न करनी चाहिए।’’
ईश्वरदास– ‘‘क्या अंधेर करती हो, यहां रहकर क्या करोगी? राव जी ने अपने-पराए सबसे दुश्मनी पैदा कर रक्खी है, सारे खानदान में फूट फैली हुई है। ब्रह्मदेव मेड़तिया और मारवाड़ के दूसरे ठाकुर और जागीरदार, जिनकी जमीन राव जी ने छीन ली है, शेरशाह के पास फरियाद करने गए हैं। एक तरफ से शेरशाह और दूसरी तरफ से हुमायूं के आने की खबरें उड़ रही हैं। ऐसी हालत में तो यही मुनासिब है कि आप जोधपुर चलकर किले की निगरानी कीजिए।’’
रानी– ‘‘बादशाह आते हैं तो आने दो, मुझे उनका क्या डर पड़ा है। मैंने तो तुमसे जो बात अजमेर में कही थी, वही यहां भी कहती हूं। राव जी अगर कोई काम मेरे सुपर्द करेंगे तो मैं यहां बैठे-बैठे जोधपुर सम्भाल लूंगी। राव जी जहां चाहें जाएं, मैं अब जोधपुर न जाऊंगी। हां, अगर राव जी की मर्जी हो तो रावसर में जा रहूं।’’
ईश्वरदास कह-सुनकर हार गए। जब कुछ बस न चला तो जोधपुर जाकर राव जी से अर्ज की कि मैंने तो बाई जी को यहां आने पर राजी कर लिया था मगर आसा जी ने बनी बात बिगाड़ दी, सारी मेहनत पर पानी फेर दिया। आपने उसे क्यों भेजा ! रानी उमादे को तो आप जानते ही हैं। आसा जी ने जाते ही मान-मरजाद का जिक्र छेड़ दिया, बस वह मचल गयीं और कोसाने में डेरा डाल दिया। मैंने बहुत आरजू-मिन्नत की मगर उन्होंने एक न सुनी। किसी ने पागल से पूछा– पांव क्यों जलाया? उसने कहा– खूब याद दिलाया, अब जलाता हूं।
राव जी– ‘‘फिर अब क्या करना चाहिए? किसे भेजूं?’’
ईश्वरदास– ‘‘मुझे तो ऐसा कोई नजर नहीं आता, जो उन्हें जाकर मनाए और वह भी आसा जी के होते।’’
राव जी– ‘‘आसा जी तो मुझसे घर जाने की छुट्टी ले गए थे?’’
ईश्वरदास– ‘‘बस इसी में कुछ चाल हुई।’’
राव जी– ‘‘चाल कैसी?’’
ईश्वरदास– ‘‘फिलहाल आसा जी को हुक्म मिलना चाहिए कि यहां से चले जाएं, फिर देखा जाएगा।’’
इतने में हुमायूं सिंध से मारवाड़ में आ गया और आगरा में शेरशाह के दूत राव जी के पास यह पैगाम लेकर पहुंचे कि हुमायूं को पकड़ना, हरगिज न जाने देना। इसके बदले में गुजरात फतेह करके तुम्हें दिया जाएगा। यह सुनकर राव जी दुविधा में पड़ गए। यह खबर हुमायूं ने भी सुनी। इधर न आया। ऊपर ही ऊपर लौट गया। उसके साथ के लोगों ने मारवाड़ में गोकुशी की थी। राव जी ने इस अपमान का बदला लेने के लिए और कुछ शेरशाह की नजरों में वफादार बनने की गरज से अपनी फौज हुमायूं के पीछे रवाना की मगर वह बचकर निकल गया। 

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