shabd-logo

शादी की तैयारी

11 फरवरी 2022

98 बार देखा गया 98

(रूठी रानी एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें राजाओं की वीरता और देश भक्ति को कलम के आदर्श सिपाही प्रेमचन्द ने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है। उपन्यास में राजाओं की पारस्परिक फूट और ईर्ष्या के ऐसे सजीव चित्र प्रस्तुत किये गये हैं कि पाठक दंग रह जाता है। ‘रूठी रानी’ में बहुविवाह के कुपरिणामों, राजदरबार के षड़्यंत्रों और उनसे होने वाले शक्तिह्रास के साथ-साथ राजपूती सामन्ती व्यवस्था के अन्तर्गत स्त्री की हीन दशा के सूक्ष्म चित्र हैं।
दूसरी कृति प्रेमा में प्रेमचन्द ने देश की स्वतन्त्रता के प्रेमियों का आह्वान करते हुए कहा है कि साहस एवं शौर्य के साथ एकता और संगठन भी आवश्यक हैं।)

उमादे जैसलमेर के रावल लोनकरन की बेटी थी जो सन् १५८६ में राजगद्दी पर सुशोभित था। बेटी के पैदा होने से पहले तो दिल जरा टूटा मगर जब उसके सौन्दर्य की खबर आयी तो आंसू पुंछ गए। थोड़े ही दिनों में उस लड़की के सौन्दर्य की धूम राजपूताने में मच गयी। सखियां सोचती थीं कि देखें यह युवती किस भाग्यवान को मिलती है। वे उसके आगे देश देश के राजों-महाराजों के गुणों का बखान किया करतीं और उसके जी की थाह लेतीं लेकिन उमादे अपने सौन्दर्य के गर्व से किसी को खयाल में न लाती थी। उसे सिर्फ अपने बाहरी गुणों पर गर्व न था, अपने दिल की मजबूती, हौसले की बुलन्दी और उदारता में भी वह बेजोड़ थी। उसकी आदतें सारी दुनिया से निराली थीं। छुई-मुई की तरह जहाँ किसी ने उंगली दिखायी और यह कुम्हलायी। मां कहती– बेटी, पराये घर जाना है, तुम्हारा निबाह क्योंकर होगा? बाप कहता– बेटा, छोटी-छोटी बातों पर बुरा नहीं मानना चाहिए। पर वह अपनी धुन में किसी की न सुनती थी। सबका जवाब उसके पास खामोशी थी कोई कितना ही भूंके, जब वह किसी बात पर अड़ जाती तो अड़ी ही रहती थी।
आखिर लड़की शादी करने के काबिल हुई। रानी ने रावल से कहा– ‘‘बेखबर कैसे बैठे हो, लड़की सयानी हुई, उसके लिए वर ढूंढ़ों, बेटी के हाथों में मेंहदी रचाओ।’’
रावल ने जवाब दिया– ‘‘जल्दी क्या है, राजा लोगों में चर्चा हो रही है, आजकल में शादी के पैगाम आया चाहते हैं। अगर मैं अपनी तरफ से किसी के पास पैगाम भेजूंगा तो उसका मिजाज आसमान पर चढ़ जाएगा।’’
मारवाड़ के बहादुर राजा मालदेव ने भी उमादे के संसारदाहक सौन्दर्य की ख्याति सुनी और बिना देखे ही उसका प्रेमी हो गया। उसने रावल से कहला भेजा कि मुझे अपना बेटा बना लीजिए, हमारे और आपके बीच पुराने जमाने से रिश्ते होते चले आए हैं। आज कोई नयी बात नहीं है।
रावल ने यह पैगाम पाकर दिल में कहा वाह– मेरा सारा राज तो तहस-नहस कर डाला अब शादी का पैगाम देते हैं ! मगर फिर सोचा कि शेर पिंजरे में ही फंसता है, ऐसा मौका फिर न मिलेगा। हरगिज न चूकना चाहिए। यह सोचकर रावल ने सोने-चांदी के नारियल भेजे। राव मालदेव जी बारात सजाकर जैसलमेर ब्याह करने आए। चेता और कोंपा जो उसके सूरमा सरदार थे, उसके दाएं-बाएं चलते थे।
रावल ने अपनी रानी को बुलाया और किले के झरोखे से राव मालदेव की सवारी दिखाकर कहा– ‘‘यह वही आदमी है जिसके डर से न मुझे रात को नींद आयी है और न तुझे कल पड़ती है। यह अब इसी दरवाजे पर तोरन बांधेगा जो अक्सर उसी के डर के मारे बन्द रहता है। मगर देख मैं भी क्या करता हूं। अगर चंवरी में से बचकर चला गया तो मुझे केवल रावल मत कहना। बेटी तो विधवा हो जाएगी पर तेरे दिल का कांटा जन्म भर के लिए निकल जाएगा, बल्कि सारे राजपूताने को अमन-चैन हासिल हो जाएगा।’’
रानी यह सुनकर रोने लगी। रावल ने डांटकर कहा– ‘‘चुप ! रोने लगी तो बात फूट जाएगी, फिर खैरियत नहीं, यह जालिम सभी को खा जाएगा। देख जरा, शादी करने आया है मगर फौज साथ लाया है कि जैसे किसी से लड़ने जा रहा हो इतनी फौज तो गढ़सोलर (जैसलमेर की एक झील) का सारा पानी एक ही दिन में पी जाएगी। हम तुम और सब शहर के बाशिन्दे प्यासे मर जाएंगे।’’
रानी को बेटी के विधवा हो जाने के डर से शोक तो बहुत हुआ मगर पति की बात मान गयी और छाती पर पत्थर रखकर चुप ही रही। उसकी घबड़ाहट और परेशानी छिपाए नहीं छिपती थी।
बेटी, मां को घबरायी हुई देखकर, समझ गयी कि दाल में कुछ काला है, मगर कुछ पूछने की हिम्मत न पड़ी। बेटी की जात, इतनी ढिठाई कैसे करती? मां का रोना मुहब्बत का रोना न था। जब उसने मां की बेचैनी हर क्षण बढ़ते हुए देखी तो ताड़ गयी कि आज सुहाग और रंडापा साथ मिलने वाला है। जी में बहुत तड़पी, तिलमिलायी, मगर कलेजा मसोसकर रह गयी। क्या करती? हमारे यहां बेटी बिन सींगों की गाय है। मां बाप उसके रखवाले हैं। मगर जब मां बाप ही उसकी जान के गाहक हो जाएं तो कौन किससे कहे। सखी सहेलियां फूली-फूली फिरती थीं। राजमहल में शादियाने बज रहे थे, चारों तरफ खुशी के जलवे नजर आते थे। मगर अफसोस, किसी को क्या मालूम कि जिस दुल्हन के लिए यह सब हो रहा है, वह अन्दर ही अन्दर घुली जा रही है। सखियां उसे दुल्हन बना रही हैं, कोई उसके हाथ-पांव में मेंहदी रचाती है, कोई मोतियों से मांग भरती है, कोई चोटी में फूल गूंथती है, कोई आइना दिखाकर कहती है– खूब बन्नी। पर यह कोई नहीं जानता कि बन्नी की जान पर आ बनी है। ज्यों-ज्यों दिन ढलता है, उसके चेहरे का रंग उड़ता जाता है। सखियां और ही ध्यान में हैं, यहां बात ही और है।
उमादे यकायक सखियों के झुरमुट से उठ गयी और भारीली नाम की एक सुघड़ सहेली को इशारे से अलग बुलाकर कुछ बातें करने लगी।
भारीली रूप बदलकर चुपके से राघोजी ज्योतिषी के पास गयी और पूछने लगी– ‘क्या आपने किसी कुंवारी कन्या के ब्याह का मुहूर्त निकाला है?’’ उन्होंने जवाब दिया– ‘‘और किसी का तो नहीं, रावल जी की बाई के ब्याह का मुहूर्त अलबत्ता निकाला है।’’
भारीली– ‘‘क्या आप फेरों के वक्त भी जाएंगे?’’
ज्योतिषी– ‘‘न जाऊँगा तो मुहूर्त की खबर कैसे होगी?’’
भारीली– क्या  इस शहर में आप और भी कहीं मुहूर्त बताते और शादियां करवाते हैं?’’
ज्योतिषी– ‘‘सारे शहर में मेरे सिवा और है ही कौन। राजा प्रजा सब मुझी को बुलाते हैं।’’
भारीली– ‘‘ज्योतिषी जी, नाराज न होना, जिन लड़कियों की शादियां आप करवाते हैं वह कितनी देर तक सुहागिन रहती हैं?’’
ज्योतिषी– (चौंककर) ‘‘हैं, यह तूने क्या कहा? क्या मुझ से दिल्लगी करती है?’’
भारीली– ‘‘नहीं ज्योतिषी जी, दिल्लगी तो नहीं करती, सचमुच कहती हूं।’’
ज्योतिषी– ‘‘इन बातों का जवाब मेरे पास नहीं। तेरा मतलब जो कुछ हो साफ-साफ कह।’’
भारीली– ‘‘कुछ नहीं, आप अपने मुहूर्त को एक बार और जांच लीजिए।’
ज्योतिषी– ‘‘कुछ कहेगी भी?’’
भारीली– ‘‘आप अपनी साइत फिर से देख लीजिए तो कहूं।’’
ज्योतिषी– ‘‘चल दूर हो, बूढ़ों से खेल नहीं करते।’’
यह कहकर ज्योतिषी जी अन्दर चले गए, मगर फिर सोच-विचारकर पट्टी निकाली, साइत को खूब अच्छी तरह जांचा और उंगलियों पर गिन-गिनकर बोले, मुहूर्त में कोई दोष नहीं है।
भारीली– (उदास स्वर में) ‘‘तो फिर किस्मत की फूटी होगी।’’
ज्योतिषी– (भौचक होकर) ‘‘नहीं मैंने जन्मपत्री देखकर मुहूर्त निकाला था।’’
भारीली– ‘‘अजी करमपत्री भी देखी है। तुम्हारे मुहूर्त में तो बाई जी को दुःख भोगना लिखा है।’’
ज्योतिषी– (तह को पहुंचकर) ‘‘तो क्या रावल जी दगा फरेब करने वाले हैं?’’
भारीली– ‘‘उहां रावल मालदेव को यों तो मारने से रहे, अब सलाह हुई है कि शादी के वक्त चंवरी में उन्हें मार डालें।’’
ज्योतिषी– ‘‘अरे, राम-राम ! ऐसे राजाओं को धिक्कार है।’’
भारीली– ‘‘महाराज, इस वक्त इन बातों को तो रक्खो, अगर रिहाई की कोई तदबीर हो तो बतलाओ।’’
ज्योतिषी– ‘‘जब रावल जी ही को बेटी पर रहम नहीं आता तो मैं गरीब ब्राह्मण क्या कर सकता हूं।’’
भारीली– ‘‘इंसान चाहे तो सब कुछ कर सकता है।’’
ज्योतिषी– ‘‘तू ही बता मैं क्या करूं?’’
भारीली– ‘‘अच्छे ज्योतिषी हो ! राजदरबारी होकर मुझसे पूछते हो कि मैं क्या करूं।’’
ज्योतिषी– ‘‘राजदरबारी होने से क्या होता है। तूने सुना नहीं, गुरु विद्या और सिर सिर बुद्धि।’’
भारीली– ‘‘तो फिर मेरी तो यही सलाह है कि राव मालदेव को सावधान कर देना चाहिए।’’
ज्योतिषी– ‘‘हां, ऐसा हो सकता है।’’
भारीली– ‘‘तो क्या मैं बाई जी से जाकर कह दूं कि तुम्हारा काम हो गया?’’
ज्योतिषी– ‘‘हां, ऐसा हो सकता है।’’
भारीली– ‘‘जी हां !’’
ज्योतिषी– ‘‘अच्छा, मैं जाता हूं।’’ 

10
रचनाएँ
रूठी रानी
0.0
प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। यों तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था पर बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं। 'रूठी रानी' एक ऐतिहासिक उपन्यास है, उपन्यास में राजाओं की पारस्परिक फूट और ईर्ष्या के ऐसे सजीव चित्र प्रस्तुत किये गये हैं कि पाठक दंग रह जाता है। ‘रूठी रानी’ में बहुविवाह के कुपरिणामों, राजदरबार के षड़्यंत्रों और उनसे होने वाले शक्तिह्रास के साथ-साथ राजपूती सामन्ती व्यवस्था के अन्तर्गत स्त्री की हीन दशा के सूक्ष्म चित्र हैं।
1

शादी की तैयारी

11 फरवरी 2022
2
1
0

(रूठी रानी एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें राजाओं की वीरता और देश भक्ति को कलम के आदर्श सिपाही प्रेमचन्द ने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है। उपन्यास में राजाओं की पारस्परिक फूट और ईर्ष्या के ऐसे सजीव च

2

शादी

11 फरवरी 2022
1
1
0

दिन ढल गया। बाजार में छिड़काव हो गया। लोग बारात देखने के लिए घरों से उमड़े चले आते हैं। ज्योतिषी ने दरबार में जाकर राव से कहा– ‘‘अब अगवानी करने का समय पास आ गया है। अब सवारी की तैयारी का हुक्म दीजिए।’

3

रंग में भंग

11 फरवरी 2022
1
1
0

शादी हो जाने के बाद लड़की अपने महल में चली गई। बूढ़ी औरतें इधर-उधर खिसक गयीं। बहू की सहेलियां राव जी को उसके महल की तरफ ले चलीं। रास्ते में एक जगह गाना हो रहा था। कितनी ही चन्द्रवनी सुन्दरियां सुहाग क

4

रानी की हठ

11 फरवरी 2022
1
0
0

रानी उमादे अपनी जिद पर कायम रही। राव जी से न बोलती है, न उन्हें अपने पास बैठने देती है। राव जी आते हैं तो वह उनका बड़े अदब से स्वागत करती है मगर फिर अलग जा बैठती है। उसके माशूकाना अंदाज और शक्लसूरत से

5

मनाने की कोशिशें

11 फरवरी 2022
1
0
0

दूसरे साल राव मालदेव ने अपने राज्य में दौरा करना शुरू किया और घूमते हुए अजमेर जा पहुंचे। वहां कुछ दिनों तक किले में उनका कयाम रहा जो किसी जमाने में बीसलदेव और पृथ्वीराज जैसे प्रतापी महाराजों के स्वर्ण

6

रानी फिर रूठ गई

11 फरवरी 2022
1
0
0

राव जी मारे खुशी के फूले नहीं समाते। प्रेमिका के इंतजार में घड़ियां गिन रहे हैं। राजमहल सजाया जा रहा है। नाचने-गानेवालियां जमा हो गईं। गाना हो रहा है। शराब का दौर चल रहा है। उमादे को बुलाने के लिए लौं

7

सौतिया डाह

11 फरवरी 2022
1
0
0

ईश्वरदास ने अजमेर के हाकिम और किलेदार से लड़ाई की तैयारियों का इन्तजाम करने के लिए कहा। इसी बीच जोधपुर से सरूपदेई और दूसरी रानियों ने उसके पास एक बड़ी रिश्वत भेजी और प्रार्थना की कि जिस तरह मुमकिन हो

8

राजपूतों की बहादुरी

11 फरवरी 2022
1
0
0

शेरशाह ने जब सुना कि हुमायूं साफ बचकर निकल गया तो उसे शक हुई कि राव जी की जरूर उससे सांठ-गांठ है। बिगड़ गया और फौरन मारवाड़ पर चढ़ दौडा़। राव जी अजमेर जाने को तो पहले से ही तैयार थे, अब मेड़ते का रास्

9

राव जी का देहांत

11 फरवरी 2022
0
0
0

सवंत् १६०२ में शेरशाह इस दुनिया से सिधारा। उसने सल्तनत का बंदोबस्त बड़ी धूमधाम से किया था और उसकी न्यायप्रियता हिन्दोस्तान के इतिहास में हमेशा याद ही की जाएगी। राजा टोडरमल इसी बादशाह के दरबार में पहले

10

रूठी रानी का सती होना

11 फरवरी 2022
0
0
0

रानियां सती होने की तैयारियां करने लगीं। झाला रानी को उसके बेटे चन्द्रसेन ने सती होने से रोक लिया और कहा कि दो-चार दिन में सब सरदार आ जाएंगे, उनसे मेरी मदद का वादा कराके तब सती होना। झाला रानी ने चन्द

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए