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शादी

11 फरवरी 2022

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दिन ढल गया। बाजार में छिड़काव हो गया। लोग बारात देखने के लिए घरों से उमड़े चले आते हैं। ज्योतिषी ने दरबार में जाकर राव से कहा– ‘‘अब अगवानी करने का समय पास आ गया है। अब सवारी की तैयारी का हुक्म दीजिए।’’
रावल– ‘‘बहुत अच्छा। बारात वालों को भी इसकी खबर कर दो।’’
ज्योतिषी– ‘‘हाँ, खूब याद आया, एक बात मुझे मारवाड़ के ज्योतिषियों से पूछनी है।’’
रावल– ‘‘क्या?’’
ज्योतिषी– ‘‘जन्मपत्री से तो नहीं, पर बोलते नाम से राव जी को आज चौथा चन्द्रमा और आठवां सूरज है।’’
रावल– ‘‘तो इससे क्या, मुहूर्त तो आपने जन्मपत्री से ही निकाला है।’’
ज्योतिषी– ‘‘महाराज पुकारने के नाम से भी ग्रह देखे जाते हैं। चौथा चन्द्रमा और आठवां सूरज अशगुन होता है। कोई ग्रह बारहवां नहीं है, तो...’’
रावल (जी में) क्या अच्छा होता जो कोई बारहवां ग्रह भी होता ताकि तीनों असगुन एक जगह हो जाते। (प्रकट) मारवाड़ बड़ा राज्य है। वहां ज्योतिषियों की कमी नहीं है। उन्होंने जरूर सब बातों को विचार लिया होगा। आप कुछ न कहिएगा नहीं तो उन्हें खामखाह शक हो जाएगा।
ज्योतिषी– ‘‘उन्हें सचेत कर देना मेरा धर्म है। मैं आपके खानदान का हित चाहने वाला हूं। मैं अभी जाकर उनसे कहता हूं कि विपत्ति को काटने की कोई युक्ति कीजिए।’’
रावल– क्या युक्ति हो सकती है?’’
ज्योतिषी– ‘‘यही दान-पुण्य आदि।’’
रावल– ‘‘यह सब मैं अपनी तरफ से करा दूंगा। उनसे कहने की क्या जरूरत है।’’
ज्योतिषी– ‘‘नहीं, यह दान उन्हीं की तरफ से होना चाहिए।’’
रावल– ‘‘क्या मेरी तरफ से होने में कुछ बुराई है?’’
ज्योतिषी– ‘‘अपनी तरफ से तो तब दान कराया जाता जब बाई के ग्रह खराब होते।’’
रावल– ‘‘आज बाई जी का ग्रह कैसा है?’’
ज्योतिषी– ‘‘बहुत अच्छा, बहुत शुभ। फिर औरत के ग्रहों का अच्छा या बुरा होना अधिकतर उसके पति के ग्रहों पर आधारित होता है। इसलिए बाई जी का भी वही ग्रह समझना चाहिए जो राव जी का है।’’
रावल– ‘‘अच्छा तो बारात में हो आइए। देर न कीजिएगा, यहां भी काम है।’’
ज्योतिषी– (चुटकी बजाकर) ‘‘गया और आया।’’
रावल से हुकुम पाकर ज्योतिषी जी खुश-खुश वहां से चले। राव मालदेवजी को खबर हुई कि ज्योतिषी राघो जी आते हैं। राव जी ने कहा– ‘‘उनका बड़े सम्मान से स्वागत करो। वे बड़े नामी ज्योतिषी हैं। वे क्या, उनके बेटे चण्डो भी ज्योतिषी विद्या के बड़े पण्डित हैं।’’
चोबदार और ड्योढ़ीदार दौड़े और ज्योतिषी जी को हाथों हाथ ले आए। ज्योतिषीजी आशीर्वाद देकर बैठ गए। राव जी ने कुशल-मंगल पूछकर कहा आपने कैसे आने का कष्ट किया?
ज्योतिषी– (इधर-उधर देखकर) ‘‘कुछ साइत विचारनी है।’’
यह सुनते ही लोग हट गए। ज्योतिषी जी राव साहब से दो-दो बातें कर चल दिए। राव जी को बड़ी चिन्ता हुई, फौरन सरदारों को बुलाकर सलाह-मशविरा किया कि ऐसी हालत में क्या करना चाहिए।
इतने में नक्कारों की आवाज आयी, चौतरफा शोर मचने लगा कि रावल जी की सवारी आई। तब राव जी भी सिर पर मौर और माथे पर सेहरा बांधकर अपने डेरे से बाहर निकले और घोड़े की पूजा करके उस पर सवार हुए। बारात चढ़ी, कुछ दूर जाकर सब जुलूस थम गया। फर्श-फरूश तकिया-मसनद लगा दिए गए। रावल और राव दोनों अपने-अपने घोड़ों से उतरे और गले मिले। फिर निशान का हाथी आगे की तरफ बढ़ा और उसके साथ दोनों महाराजे किले की तरफ चले। दरवाजे पर पहुँचकर रावल जी तो अन्दर तशरीफ ले गए और राव जी तोरन बांधने की रसम अदा करके पीछे पहुंचे। रनिवास में फिर दोनों मिलकर एक साथ मसनद पर बैठे।
राजमहल में शादी की तैयारी हो गई। नाजिर राव जी को बुलाने आया। राव जी के साथ रावल जी भी उठे मगर राव के सरदारों ने उन्हें रोका कि आप हमें अकेला छोड़कर कहां जा रहे हैं। रावल ने झांसा देकर कहा कि यहां से चला जाऊं, मगर कौन जाने देता है। राव के सरदारों ने उनका हाथ पकड़कर बीच में बिठा लिया। अब तो लेने के देने पड़ गए। जाते थे राव को मारने, अब अपनी ही जान के लाले पड़ गए। उनके सरदार भी सब सिट्टी-पिट्टी भूल गए। इधर राव जी बेखटके धीरे से रनिवास में दाखिल हो गए।
जनानी ड्योढ़ी में पहुंचते ही उम्मादे की मां ने राव जी की आरती उतारी, उनके माथे पर दही का टीका लगाया और जी में कहा कि ऐसे ही मेरा कलेजा ठंडा रहे। इसके बाद नाक खींचकर (जैसे वर की रवाना होने से पहले उसे दूध पिलाती है, वैसे ही सास उसके माथे पर दही लगाती है, यानि उसे अपनी लड़की का पति मान लेती है। कहावत है, दही की बात सही) अपना दुपट्टा उनके गले में डालकर उन्हें चंवरी में ले आयीं।
ब्राह्मण बड़े मधुर स्वर में वेद-मंत्र पढ़ने लगे। आग में आहुति पड़ी। हवन होने लगा। राव जी का हाथ उमादे के हाथ से मिलाया गया। उमादे आगे हुई और राव जी पीछे-पीछे चले। तीन बार हवन-कुण्ड की परिक्रमा की। नव औरतें यह गीत गाने लगीं—

पहले फेरे बाई काकारी भतीजी
दूजे फेरे बाई मामारी भतीजी
तीजे फेरे बाई बुआरी भतीजी

गीत का मतलब यह है कि बाप लकड़ी उस वक्त दे चुकता है जब दामाद से गले मिलता है, मां उस वक्त जब वह दामाद के माथे पर दही का टीका लगाती है। उसके बाद वेद और शास्त्र के अनुसार लड़की का विवाह होता है। उस वक्त उस पर चाचा, मामा, और बुआ का थोड़ा-बहुत हक रह जाता है। अगर चाचा को कुछ कहना हो या आपत्ति करनी हो तो पहले फेरे तक कर सकता है, मामा दूसरे फेरे तक और बुआ तीसरे फेरे तक। चौथे फेरे में लड़की पराई हो जाती है, फिर किसी का उस पर कोई हक बाकी नहीं रह जाता। इसीलिए चौथे फेरे के पहले ही दूल्हा-दुल्हन के आगे आ जाता है। कि जैसे उस वक्त से वह उसका पति और स्वामी माना जाता है। इस गीत में यह भी प्रकट होता है कि बुआ का हक लड़की पर बहुत माना गया है।
चौथे फेरे में राव जी आगे हो गए और उमादे उनके पीछे चलने लगी। तब औरतों ने यह पिछला गाकर अपना गीत पूरा किया-

चौथे फेरे बाई हुई रे पराई।

गीत सुनते ही मां और बहनों के दिल भर आए। आंखों से आंसू टपकने लगे कि अब प्यारी उमादे पराई हो गई। इस तरह यह शादी बैशाख सुदी तीन संवत् १५९३ की रात को अच्छी तरह सम्पन्न हुई। 

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रचनाएँ
रूठी रानी
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प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। यों तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था पर बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं। 'रूठी रानी' एक ऐतिहासिक उपन्यास है, उपन्यास में राजाओं की पारस्परिक फूट और ईर्ष्या के ऐसे सजीव चित्र प्रस्तुत किये गये हैं कि पाठक दंग रह जाता है। ‘रूठी रानी’ में बहुविवाह के कुपरिणामों, राजदरबार के षड़्यंत्रों और उनसे होने वाले शक्तिह्रास के साथ-साथ राजपूती सामन्ती व्यवस्था के अन्तर्गत स्त्री की हीन दशा के सूक्ष्म चित्र हैं।
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शादी की तैयारी

11 फरवरी 2022
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(रूठी रानी एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें राजाओं की वीरता और देश भक्ति को कलम के आदर्श सिपाही प्रेमचन्द ने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है। उपन्यास में राजाओं की पारस्परिक फूट और ईर्ष्या के ऐसे सजीव च

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रंग में भंग

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शादी हो जाने के बाद लड़की अपने महल में चली गई। बूढ़ी औरतें इधर-उधर खिसक गयीं। बहू की सहेलियां राव जी को उसके महल की तरफ ले चलीं। रास्ते में एक जगह गाना हो रहा था। कितनी ही चन्द्रवनी सुन्दरियां सुहाग क

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रानी की हठ

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रानी उमादे अपनी जिद पर कायम रही। राव जी से न बोलती है, न उन्हें अपने पास बैठने देती है। राव जी आते हैं तो वह उनका बड़े अदब से स्वागत करती है मगर फिर अलग जा बैठती है। उसके माशूकाना अंदाज और शक्लसूरत से

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मनाने की कोशिशें

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दूसरे साल राव मालदेव ने अपने राज्य में दौरा करना शुरू किया और घूमते हुए अजमेर जा पहुंचे। वहां कुछ दिनों तक किले में उनका कयाम रहा जो किसी जमाने में बीसलदेव और पृथ्वीराज जैसे प्रतापी महाराजों के स्वर्ण

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रानी फिर रूठ गई

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राव जी मारे खुशी के फूले नहीं समाते। प्रेमिका के इंतजार में घड़ियां गिन रहे हैं। राजमहल सजाया जा रहा है। नाचने-गानेवालियां जमा हो गईं। गाना हो रहा है। शराब का दौर चल रहा है। उमादे को बुलाने के लिए लौं

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सौतिया डाह

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ईश्वरदास ने अजमेर के हाकिम और किलेदार से लड़ाई की तैयारियों का इन्तजाम करने के लिए कहा। इसी बीच जोधपुर से सरूपदेई और दूसरी रानियों ने उसके पास एक बड़ी रिश्वत भेजी और प्रार्थना की कि जिस तरह मुमकिन हो

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राजपूतों की बहादुरी

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शेरशाह ने जब सुना कि हुमायूं साफ बचकर निकल गया तो उसे शक हुई कि राव जी की जरूर उससे सांठ-गांठ है। बिगड़ गया और फौरन मारवाड़ पर चढ़ दौडा़। राव जी अजमेर जाने को तो पहले से ही तैयार थे, अब मेड़ते का रास्

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राव जी का देहांत

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सवंत् १६०२ में शेरशाह इस दुनिया से सिधारा। उसने सल्तनत का बंदोबस्त बड़ी धूमधाम से किया था और उसकी न्यायप्रियता हिन्दोस्तान के इतिहास में हमेशा याद ही की जाएगी। राजा टोडरमल इसी बादशाह के दरबार में पहले

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रूठी रानी का सती होना

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रानियां सती होने की तैयारियां करने लगीं। झाला रानी को उसके बेटे चन्द्रसेन ने सती होने से रोक लिया और कहा कि दो-चार दिन में सब सरदार आ जाएंगे, उनसे मेरी मदद का वादा कराके तब सती होना। झाला रानी ने चन्द

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