बैंक्वेट हॉल की शादियाँ एक सी होती है। फिल्म के सेट की तरह हमेशा तैयार।बस शादी करने वाले जोड़े बदलते रहते हैं। बैंक्वेट हाल भी महबूब और फ़िल्मिस्तान स्टुडियो की तरह हो गए हैं। अपनी कहानी लेकर आइये और फ़िल्मा कर चले जाइये। लेकिन नोएडा के राजमहल बैंक्वेट हाल में कुछ और भी बदला था।दुल्हन के आने के पहले अंबेडकर की तस्वीर रखी जा रही थी।वर तैयार हो रहा था उस वक्त फूले,शाहू जी महाराज और साबित्री बाई की तस्वीर लगाई जा रही थी। उस रोज़ की शाम भी अच्छी थी। हवा अपना मौज ले रही थी।
जरूर हमारे वहाँ से लौटने के बाद लोगों ने ख़ूब मस्ती की होगी।थोड़ा बहुत प्यार तो लेकर हम भी लौटे।जिसके पास जितना था,सब साझा कर रहे थे। इस शादी की एक और ख़ास बात थी।मिलने वाला किसी न किसी यूनिवर्सिटी से था।मैं तो बाराती आने के पहले गया था। मेहमानों का आना शुरू हुआ था। उतने में ही कई विश्वविद्यालयों का नाम लेकर परिचय देते कई छात्र और शिक्षक मिले।मज़ाक में किसी से कह दिया कि आप लोग बारात छोड़िये, यहीं बैठकर वाइस चांसलर चुन लीजिये! बातचीत थोड़ी देर के लिए यूपी चुनाव की तरफ मुड़ी,तभी लगा कि चलना चाहिए। मगर कहीं से भी रामजस कॉलेज की घटना के बारे में कुछ सुनाई नहीं दिया। पंद्रह मिनट की मुलाकात में व्हाईट हाउस पर भी चर्चा बाकी रह गई! ठहरने का मौका मिलता तो हैदराबाद से लेकर चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी के ही किस्से सुनते रहता।
चूँकि मिलने वाले सभी राजनीति क रूप से सजग और जुझारू लोग थे,तो सवाल किया भी कि फिर सत्ता क्यों नहीं बदली या बदलती। लगा नहीं कि इनमें से कोई बसपा में सक्रिय है या किसी और दल में।कहीं सेमिनार वाली बीमारी तो नहीं फैल रही है। इनमें से कोई नेता क्यों नहीं है।अब क्या कीजियेगा।शादी भी तो शादी जैसी नहीं थी। मंच पर अंबेडकर की तस्वीर होगी तो खाने पर भी राजनीति की चर्चा होगी।
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सुनील कुमार सुमन और पूजा गौतम की शादी थी। यह तस्वीर फेसबुक से डाउनलोड की है। वहां इनसे मुलाकात नहीं हुई तो इस तरीके से दोनों को देख लिया। सुनील अच्छे शिक्षक हैं।बाल कहानियाँ लिखते हैं।हम शादियों में कम बुलाये जाते हैं और बुलाने पर न के बराबर जाते हैं।मुझे अकेला चलना अच्छा लगता है।भीड़ के सहारे रहने से आप हमेशा अपनी ताकत दूसरों में गिनने लगते हैं।आत्मबल का संबंध संख्या से नहीं होता। संख्या बाद की चीज़ होती है। मुझे शादी ब्याह के जुटान से घबराहट होती है। उस दिन मन कहीं और भी उलझा था। काम दिमाग़ से निकलता ही नहीं है। दोपहर तक सोच लिया था कि नहीं जायेंगे।सुनील को मैसेज भी किया कि दोस्त माफ कर दो।नहीं आ सकूँगा।फिर शाम होते ही अपने आप चला गया।जिस शादी के लिए यूपी कवर करने नहीं गया,पूरा हफ्ता दिल्ली में रूका,उसमें गया भी तो बारात आने से पहले निकल आया।इतना ही वक्त मिला,नियति को यही मंज़ूर था और शाम को भी। जो देर से आए और देर तक रुके,मुझे न जलायें कि उन्होंने ज़्यादा मौज की है। सुनील और पूजा को बधाई।कभी दोनों से एकांत में मुलाक़ात होगी। उसके बारे में नहीं लिखूँगा। जो पर्सनल है वो पर्सनल है।