यह जान लें कि सन्धिकाल सदैव से ही अशुभ, हानिकारक, कष्टदायी व असमंजस युक्त होता है। सन्धि से तात्पर्य एक की समाप्ति और दूसरे का प्रारम्भ, अब चाहे वह समय हो या स्थान हो या परिस्थिति हो। ऋतुओं की सन्धि रोगकारक होती है। ज्योतिष में अनेक प्रकार की सन्धि है, ज
हमारे शरीर में नेत्रों का स्थान सर्वोपरि होने के कारण ही इसे अनमोल कहा जाता है। आगे पढ़ें- चाक्षुषोपनिषत् स्वस्थ नेत्रों के लिए रामबाण है हमारे शरीर में नेत्रों का स्थान सर्वोपरि होने के कारण ही इसे अनमोल कहा जाता है। नेत्रों में पीड़ा हो या उसमें रोशनी न हो तो वे व्यर्थ हैं। नेत्र नीरोग रहें उसमे
1. जरा क-थोड़ा ख-क्षीणता ग-बुढ़ापा 2. जलद क-जल ख-बादल ग-छाता 3. जलधि क-समुद्र ख-जल सदृश ग-बादल 4. जलवाह क-तालाब ख-पोखर ग-मेघ उत्तर1. ग 2. ख 3. क 4. ग
1. चितेरा क-चित्त ख-चित्र ग-चित्रकार 2. चिरायु क-आयु ख-दीर्घायु ग-विनती 3. चिलका क-नवजात शिशु ख-टुकड़ा ग-क्षणिक 4.
1. जांगलू क-पशु ख-जंगल ग-जंगली 2. जांगुल क-जंगली ख-विष ग-तेज 3. जाता क-कन्या ख-शिशु ग-बच्चा 4. जित्वर
1. चांपना क-चतुर ख-ठगना ग-दबाना 2. चाम क-चमकना ख-खाल ग-चेहरा 3. चासना क-जोतना ख-खेतिहर ग-हलवाहा 4. चिंदी क-बिंदी ख-छोटा टुकड़ा ग
1. जिमनार क-व्यायामशाला ख-कसरत ग-भोज 2. जिष्णु क-शारीरिक ख-विजयी ग-विषाणु 3. जील क-हल्की, धीमी ख-उत्साह ग-जला हुआ 4. जीवेश क-जीता हुआ ख-जीवन ग-ईश्वर उत्तर 1. ग 2. ख 3.
1. चलावा क-विचलित ख-छलना ग-रीति 2. चला क-चलना ख-बिजली ग-अस्थिर 3. चवाई क-निंदक ख-चपल ग-चाल 4. चांइयां क-चहक ख-चहकना ग-धूर्त उत्तर 1. ग 2. ख 3. क 4. ग
सूर्य को जल चढ़ाने के लिए एक तांबे का लोटा ले लें। उसमें शुद्ध जल ले लें, थोड़े चावल के दाने डाल लें, थोड़ी रौली डाल लें एवं थोड़ा सा गुड़ का टुकड़ा डाल लें। तदोपरान्त सूर्य को जल चढ़ाते समय अर्थात् जल का लोटा खाली होने तक अधोलिखित सूर्य के द्वादश नामों का जाप करें- ॐ मित्राय नमः aum mit
क्या हमें, बच्चों या पशु-पक्षियों को पूर्वाभास हो जाता है? भविष्य में घटने वाली घटनाओं का पूर्व में ज्ञान हो जाना ही पूर्वाभास है। कुछ लोगों को अपनी मृत्यु से पूर्व ही ऐसा लगने लगता है कि मेरी मृत्यु समीप है। इसी को पूर्वाभास कहते हैं। कुछ लोग पूर्वाभास को दैवीय संकेत कहते हैं। पूर्वाभास स्वप्न
अवसर का सदुपयोग ही भाग्य है।भाग्य का सदुपयोग सफलता है। जीवन को सफल वही बना पाता है जो प्राप्त अवसरों का उपयोग करने हेतु पूर्ण तत्परता सहित प्रस्तुत रहता है। प्रायः अवसर सभी के समक्ष आते हैं पर हम उन अवसरों को पकड़कर उपयोग में लाने के लिए सजग नहीं होते हैं। सच्चाई से कार्य करने वाले, पूर्ण समर्पण भाव
हमारे देश में प्रत्येक मन्दिर में पीपल की पूजा होती है। पीपल की पूजा क्यों होती है? यह प्रश्न ऐसा है जिसका उत्तर सभी जानना चाहते हैं। आज इस बात की चर्चा करेंगे जिससे कि आप यह जान सकें कि पीपल की पूजा क्यों होती है। एक कथा लोक चर्चित हैं जो इस प्रश्न का उत्तर स्वतः बता देती है। अगस्त्य ऋषि