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शब्दनगरी

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शब्दनगरी द्वारा बढ़ाए गए उत्साह और सहयोग के कारण  ही 25 मई 2016 से 29जून 2016 के मध्य 100 रचनाओं का शतक पूर्ण हुआ। शब्दनगरी  के  सभी  सदस्यों एवं मित्रों के सहयोग व प्यार ने ही  इसे पूर्ण करने की प्रेरणा दी। शब्दनगरी के सभी सदस्यों एवं मित्रों का बहुत बहुत धन्यवाद। आप सबके प्यार के कारण ही ऐसा हुआ। 

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आदित्याद्वायुर्जायते। आदित्याद्भूमिर्जायते। आदित्यादापो जायन्ते।आदित्याज्ज्योतिर्जायते।आदित्याद्व्योम दिशो जायन्ते।आदित्याद्देवा जायन्ते। आदित्याद्वेदाजायन्ते। आदित्यो वा एष एतन्मंडलं तपति । असावादित्यो ब्रह्म।आदित्योऽन्तःकरणमनोबुद्धिचित्ताहंकाराः।आदित्यो वै व्यानः समा- नोदानोऽपानः प्राणः। आदित्यो व

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     आपको निज ज्ञान की नींव को मजबूत बनाना चाहिए। सामान्यतः ज्ञान स्वाध्याय अर्थात्‌ अध्ययन से बढ़ता है। प्रत्येक व्यक्ति को स्कूल व कॉलेज में पढ़ते हुए अपने ज्ञान को पूर्ण समर्पण भावना से अर्जित करना चाहिए। जो ज्ञान बढ़ाने में सक्रिय रहते हैं वे कठोर परिश्रम एवं सतत प्रयास से शेष सबकुछ पा लेते हैं।

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    महाभारत में विजयी होकर युधिष्ठिर ने राज्य सत्ता संभाली। सबको समान न्याय मिले, उनके राज्य में कोई दुःखी नह हो इसके लिए उन्होंने ‘न्याय घंटा’ लगवा दिया ताकि प्रत्येक व्यक्ति की फरियाद सुन सकें।    एक बार एक निर्धन व्यक्ति ने न्याय मांगने के लिए घंटा बजाया। युधिष्ठर राजकाज में व्यस्त थे, उन्होंने

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रात सिर्फ रात नहींएक मंजिल भी है।      सुबह की  लगन की      दोपहर के सफर की      शाम  की कथन की। ख्वाब सिर्फ ख्वाब नहीं एक   तस्कीन   भी   है      जख्म पर मरहम सी      अजनबी   चुभन-सी      बांहों   में   दुल्हन-सी। गीत सिर्फ गीत नहीं एक  सहारा  भी  है।      तन्हाई में साथी-सा             कश्ती में म

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सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च। सूर्याद्वै खल्विमानि भूतानि जायन्ते। सूर्याद्यज्ञः  पर्जन्योऽन्नमात्मा।।3।।  सूर्यदेव समस्त जड़ और चेतन जगत् की आत्मा हैं। सूर्य से सभी प्राणियों की उत्पत्ति होती है। सूर्य से ही यज्ञ, पर्जन्य, अन्न एवं आत्मा(चेतना) का  प्रादुर्भाव  होता  है।  नमस्त आदित्य। त्वमेव प्रत्यक

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जिंदगी   है   इक  झरोखा झांकते रहिये।लक्ष्य  से  भी  अपनी  दूरी  नापते  रहिये। साथ-साथ  चलेंगे तो पा ही लेंगे  मंजिलें। बस एक दूजे के दु:खों को  बांटते रहिये।

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    ॐ भूर्भुवः सुवः। ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमिहि। धियो यो नः प्रचोदयात् ।।2।।    जो प्रणव रूप में सच्चिदानन्द परमात्मा भूः, भुवः, स्वः रूप त्रिलोक में संव्याप्त है। समस्त सृष्टि के उत्पादन करने  वाले उन  सवितादेव  के सर्वोत्तम  तेज का  हम ध्यान करते हैं, जो(वे सविता देवता)हमारी बुद्धियों

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     यह वेद वाक्य है-उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत्‌।      जीवन की कर्मभूमि पर कर्म की निरन्तरता ही हमें लक्ष्य की ओर ले जाती है। पहली आवश्यकता लक्ष्य सदैव मन व नेत्रों के समक्ष रहना चाहिए अर्थात्‌ उसके प्रति सदैव जागरूक रहें। जब तक आप स्वयं के प्रति जागरूक नहीं हैं तब तक आप लक्ष्य के प्रति ज

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     कालचक्र को कौन रोक सका है, वह तो अपनी नियत गति से गतिमान है। कई बसन्‍त बीत चुके हैं। अपनी मधुर स्‍मृतियों के झरोखे में से उस पार देखूं तो लगता है अभी कल की ही बात है। बात उन दिनों की है कि जब मैंने शिक्षा के रूप में एम.ए. हिन्‍दी के बाद पीएच. डी. तक शिक्षा पायी थी। मेरी उच्‍च शिक्षा पूर्ण होते

300 करोड़ का यमुना पर पुल बनाकर यूपी को दिल्ली के और करीब लाएंगे केजरीवाल #शब्दनगरी 

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यूँ ही बैठी थी मैं..सोचा चलो देखते हैं शब्दनगरी ने एप्प कैसा बनाया है ।सो चल पड़ी खोजने...सच कहूँ तो अंतरजाल से बेहतर और सुविधाजनक है ये । यहाँ लिखना और पढ़ना दोनों ही सहज हैं ।और अन्य मित्रों से जुड़ाव भी सहज है ।मेरा अपना विचार है क़ि कई बार किसी कार्य में अधिक दुरूहता और जटिलता उससे विमुख होने के ल

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शब्दनगरी यूज़र्स के लिए सुनहरा मौका, इस मंच पर आयोजित कविता प्रतियोगिता में भाग लीजिये| इस कविता प्रतियोगिता का विषय, "हमारी मातृ-भाषा: हिंदी" है|प्रतियोगिता के लिए २-४ पंक्तियों में कविता लिखे|चुनी गयी, सर्वेष्ठ् कविताओं को रचनाकार के नाम के साथ शब्दनगरी मंच पर, प्रकाशित किया जायेगा|

शब्दनगरी वेबसाइट तथा मोबाइल एप पर, आप असंख्य लोगों को अपने साथ जोड़ सकते हैं| सिर्फ़ एक क्लिक में, उन तक अपनी रचनायें एवं संदेश पहुँचा सकते हैं, मित्र तथा अनुयायी बना सकते हैं और आयाम के अनेक सदस्यों से जुड़ सकते हैं| इस मंच के माध्यम से, आप विभिन्न लोगों से जुड़कर उन तक अपनी विचारों को लेखों के माध्य

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