डियर काव्यांक्षी
कैसी हो प्यारी🥰 मैं कैसी हूं?आज मन अच्छा नही प्यारी अब क्यों नही है तो क्या ही बताऊं तुम्हे, और आज विषय भी ऐसा मिला शर्मसार होती इंसानियत
अब क्या कहूं काव्यांक्षी इस विषय में इंसानियत को शर्मसार करने में कोई कमी रह नही गई है क्या और किस किस बारे में कहे , एक औरत की अस्मिता के साथ हो रहे खिलवाड़ के बारे में ही कहना चाहूंगी , आज जो सलूक औरत हो या छोटी बच्चियां कोई तो नही बचा इस कहर से इस तूफान ने हर उम्र की लड़की या औरत के अस्तित्व को निगला है, बलात्कार जैसे कुकर्म ने किसी मासूम की जिंदगी को तबाह करने में कोई कसर नहीं छोड़ी अब ज्यादा क्या कहूं इस बारे में जब सुनकर बोलकर इतना दर्द होता है उस पीड़िता का क्या कहे जिसने सहा है ।इस दर्द और जख्मों को किसी तरह बयां तो नही कर सकते फिर भी शब्द देने की एक कोशिश की है जानती हूं हर शब्द कम होगा इस दर्द के आगे और शर्मसार होती इंसानियत को शब्द देना भी कहा आसान है ।😔😔
एक तूफान बनकर
वो लम्हा था आया
ताउम्र का जख्म था पाया
एक मासूम कली को
वो कुचल गया
सिर्फ इसलिए कि
उसका मन था मचल गया
हैवानियत उसने अपनाई
हंसती खेलती जिंदगी को
उसने
दिल बहलाने के लिए
दरिंदगी की आग में जलाई
क्या गलती थी उसकी
वहशी नज़र उस पड़ गई
एक पल उस मासूम की दुनिया उजड़ गई
इंसानियत हुई शर्मसार
जब जब हुआ ये अत्याचार
दाग़ जिस्म पर नहीं रूह मे उतर गए
बेजान हुआ मन अरमान सारे बिखर गए
इंसान की सूरत में हैवान मिल गए
वासना में चाह में आत्मा को उसकी बेजान कर गए
झोंक कर उसे अंगारो मे
बलात्कारी रहते आजाद
उस पर जख्म बढ़ाने का क्या खूब
होता अंदाज़
उस मासूम पर ही आरोप लगाने
आ जाता है ये समाज
मोमबत्तीया तुम चाहे ना जलाओ
बलात्कारी को सजा जरूर दिलाओ
देख ये नज़ारा ईश्वर भी शरमाया होगा
इंसान को जब हैवान कि सूरत में पाया होगा
बुरे सपने की ये परछाई
ना कोई दूर कर पाए
रूह तो मर चुकी
बेजान जिस्म अब क्या मुस्कुराए