यह भी कहा जाता है कि शरतचंद्र का उपन्यास 'श्रीकांत' मुजफ्फरपुर में उस स्त्री से उनके मिलन की घटना पर आधारित है जिसका नाम उपन्यास में राजलक्ष्मी उर्फ़ प्यारी है. उसे एक तवायफ के रूप में दिखाया गया है. उपन्यास में एक प्रसंग आता है जिसमें श्रीकांत एक जमींदार के साथ तवायफ की महफ़िल में भाग लेता है. श्रीकान्त वर्मा ने सारी परिस्थितियों के संयोजन में अपनी और युग - जीवन की विसंगतियों को एक साथ प्रस्तुत कर यथार्थ के साथ तीव्र और तीखी उत्तेजना को व्यंजित किया है। अनेक स्थलों पर उनका अनुभव आक्रोश की उत्तेजनाओं से मुक्त होकर कहीं अधिक गहरे स्तर पर व्यंजित हुआ है। श्रीकान्त वर्मा ने आज की स्थिति से टकराने की कोशिश की है। उससे न केवल कविता के मुहावरे में परिवर्तन आया है बल्कि भाषा और शिल्प की दृष्टि से कविता जनसामान्य की कविता का रूप धारण करती है।
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