ये किस्सा उनके लिए जो उड़ी हमले के बाद आजकल बड़े ज़ोर शोर से ये मुद्दा उठा रहे हैं कि हिंदुस्तान-पाकिस्तान के बीच जंग के माहौल में दोनों देशों में सांस्कृतिक रिश्ते बनाये रखने की बात फ़िज़ूल है और पाकिस्तानी कलाकारों पर भारत में पाबन्दी लग जानी चाहिए.
1971 की भारत-पाकिस्तान जंग में पाकिस्तान की करारी शिकस्त के बाद भारत - पाक रिश्तों के मद्देनज़र 1972 की बात है. पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो भारत आये हुए थे, भारत - पाकिस्तान द्विपक्षीय वार्ता के लिए - शिमला समझौते का मामला था . भुट्टो के स्वागत में आयोजित कार्यक्रम में बेगम अख्तर को गाना था.
बेग़म अख्तर दिल्ली में अपनी शागिर्द रीता गांगुली के घर पर ठहरी हुई थीं. अपनी दर्द भरी ग़ज़ल अदायगी के लिए मशहूर बेगम अख्तर इस औपचारिक मौके के लिए कोई मुनासिब सा गाना तैयार करने की उधेड़ बुन में लगी हुई थीं. एक दिन रीता गांगुली ने अपनी धोबन को कुछ गाते सुना और उससे कहा - इसे अम्मी (रीता गांगुली बेगम अख्तर को अम्मी कहती थीं ) को सुनाओ.
धोबन का गाना सुनते ही जैसे बेगम अख्तर को अपने प्रोग्राम के लिए एकदम सटीक बंदिश मिल गयी.
शिमला के उस प्रोग्राम में सामने भुट्टो बैठे थे, भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी बैठी थीं.
मंच से बेगम ने अपनी गहरी, गूंजती जादुई आवाज़ में गाना शुरू किया -
हमारी अटरिया पे आओ संवरिया, देखा -देखी तनिक हुइ जाए
आओ सजन तुम हमरे द्वारे , सारा झगड़ा ख़तम हुइ जाए
मौके और माहौल के हिसाब से ये दादरा और उसके बोल इतने मानीखेज़ थे कि ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो तमाम तनाव भूल कर मंत्रमुग्ध होकर सुनते रहे और कार्यक्रम ख़त्म होने के बाद बेगम अख्तर से एक मुलाकात की ख्वाहिश फरमाई.
मुलाकात हुई. भुट्टो ने बेगम अख्तर से कहा- आपने बहुत खूबसूरत गाया. इंशाअल्लाह , उम्मीद है सब ठीक होगा .
भारत और पाकिस्तान ने शिमला समझौते पर दस्तखत कर दिए.
इससे हड़बड़ी के विश्लेषण के चलते ये न समझा जाए की बेगम अख्तर के चलते समझौता हुआ. लेकिन इससे ये ज़रूर समझा जा सकता है कि तनाव के माहौल में कला और संस्कृति की दुनिया के लोगों के लिए सकारात्मक भूमिका निकाली जा सकती है बशर्ते राजनैतिक नेतृत्व में इतनी समझदारी, संवेदनशीलता और दूरदर्शिता हो.
आज उन्ही बेगम अख्तर की सालगिरह है. उन्हें बहज़ाद लखनवी की इस ग़ज़ल से याद करते हुए :
आखिर कोई सूरत भी तो हो खाना-ए- दिल की
काबा नहीं बनता है तो बुतख़ाना बना दे
दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे
वर्ना कहीं तक़दीर तमाशा न बना दे
ऐ देखने वालों मुझे हंस हंस के न देखो
तुमको भी मुहब्बत कहीं मुझसा न बना दे
मैं ढूंढ रहा हूँ मेरी वो शम्मा कहाँ है
जो बज़्म की हर चीज़ को परवाना बना दे
बहज़ाद हर एक गाम पे एक सजदा ए- मस्ती
हर ज़र्रे को संगे-दरे-जाना ना बना दे