ललितपुर से लौटकरः सूखापीड़ित बुंदेलखंड में भूख और प्यास से अकुलाए एक से एक बढकर दर्दनाक अजीबोगरीब बातें सुनने को मिली हैं। इनमें ललितपरु जिले की तालबेहट तहसील के तहत ग्राम लडवारी में भूख से पीडितों का घास की रोटी और खरपतवार की बनी सब्जी खाने की विवशता की भी बड़ी अदभुत एक दास्तांन है। लेकिन, सरकारी अमला इसे मानने को तैयार नहीं है। माने भी कैसे? इससे उसके निकम्मापन और संवेदनहीनता का सच तो उजागर हो जाता है।
क्या है हकीकत
इस संबंध में एक न्यूज चैनल ने जब इस सच का ऑखों देखा हाल दिखाया, तो उसके बाद सरकारी अमले ने यहां दौडकर आने में देर नहीं लगाई। लेकिन, ग्रामीणों से रूबरू और उनकी आपबीती सुनने के बाद भी वह इस सच को मानने के लिये किसी भी कीमत पर तैयार नहीं हुआ। उसकी दलील रही है कि इस इलाके के सहरिया जनजाति समुदाय के लोगों का तो यह स्वाभाविक भोजन है, जिसे वे बड़े चाव से खाते हैं। सिर्फ, इतना ही नहीं, सरकारी अमले ने इन पीडितों के मुंह से यह बात उगलवाने की बड़ी पुरजोर कोशिश भी की कि सरकार ने उनके लिये सारे माकूल बंदोबस्त कर रखे हैं और उन्हें किसी भी प्रकार की कोई तकलीफ नहीं होने दे रही है। लेकिन, पीड़ितों ने उनके दबाव में आकर सच को झूठ कहने से साफ मना कर दिया।
क्या कहते हैं ग्रामीण
इसी गांव के सीमांत किसान भैरोसिंह और रणवीर सिंह ने इस बात पर खुशी जतायी कि चलो कम से कम इसी बहाने उनके गांव में इन अफसरों और कर्मचारियों का आना तो हुआ। इससे ज्यादा और कुछ नहीं। लेकिन, कि उनके गलत दबाव में आकर वे किसी भी कीमत पर घास की रोटी को खाने की मजबूरी को नकार नहीं सकते है। उनका सरकारी अमले से दो टूक शब्दों में यही कहना रहा है कि लगातार कई सालों से पड रहे सूखे के कारण भूख से व्याकुल होने के बाद उनके सामने अपने परिवार को जिंदा रखने के लिये जब कोई और रास्ता नहीं बचा, तो उन्हे मजबूर होकर इसे खाना पड रहा है। लेकिन इसके बावजूद, सरकारी अमले ने यह कहते हुए उनकी इस बात मानने से साफ इन्कार कर दिया कि इस इलाके में पहले से ही घास की बनी रोठी आदतन खायी जाती रही है। इसलिये यह कोई नई बात नहीं है। इसे भूुखमरी से नहीं जोडा जाना चाहिये। सरकारी कर्मचारियों ने किसी भी रूप में भुखमरी की स्थिति होने से साफ इन्कार कर दिया था। इस संबंध में किसानों ने इंडिया संवाद से कहा कि जब उनके पास जीने के लिये और कोई रास्ता ही नहीं बचा, तो उन्हें घास की ही रोटियां खाने को मजबूर होना पडा है। लेकिन तहसीलदार उबार बार अपनी इसी बात को दुहराते रह गये कि वे घास इसलिये खा रहे हैं कि यह इस इलाके के जनजातीय लोगों का परंपरागत भोजन है। लडवारी गॉव में सहरिया जनजाति समुदाय के लोगों की खासी आबादी है।