नई दिल्ली : 1963 में देश को सुचिता कृपलानी जैसी महिला मुख्यमंत्री देने वाले राज्य उत्तरप्रदेश में क्या अब महिला राजनेताओं का बर्चस्व घट रहा है। क्योंकि राज्य में आज भी बड़ी संख्या में राज्य में महिलाओं के चुनाव जीतने से संभावना नही दिखती है। इंडियास्पेंड’ और ‘स्वनीति इनिश्यटिव’ ने अपने एक सर्वे में इस बात का खुलासा किया है कि साल 2002 के बाद से उत्तरप्रदेश में तीन विधानसभा चुनावों में महिलाएं चुनाव जीतने में न के बराबर रही।
सर्वे में कहा कहा गया है कि चुनावों में ज्यादातर महिलाओं की जमानत जब्त हो जाती है। हालाँकि सामान्य सीटों की तुलना में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर महिलाओं की जीत का प्रतिशत दोगुना है। इंडिया स्पेंड की रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन राज्यों में सबसे बद्तर लिंग अनुपात है, वहां विधानसभा में अधिक महिला सदस्य हैं।
जबकि यूपी को लेकर किये गए आंकलन में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश में महिला साक्षरता वर्ष 2001 में 42.2 फीसदी से बढ़ कर वर्ष वर्ष 2011 में 59.3 फीसदी हुआ है। लिंग अनुपात 898 से सुधर कर 908 हुआ। यह जानकारी नीति आयोग द्वारा संकलित जनगणना के आंकड़ों में भी सामने आई है।
अधिक महिलाएं लड़ रहीं है चुनाव, अधिक महिलाओं का जमानत भी हो रहा है जब्त
सामान्य रुप में, चुनाव में महिला प्रतियोगियों की संख्या में वृद्धि हुई है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने मई 2016 में बताया है, लेकिन हमने उत्तर प्रदेश में जमानत जब्त होने के ज्यादा मामले भी पाए हैं। जिसका मतलब है कि उम्मीदवार अपने निर्वाचन क्षेत्रों में हुए चुनाव में कुल दिए गए मत का छठा हिस्सा भी प्राप्त नहीं कर पाई। राजनीति क पार्टियां इसी बहाने के आधार पर कम महिला उम्मीदवारों को टिकट देती हैं, जिससे आगे उनके लिए राजनीतिक अवसर कम होते चले जाते हैं।
अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर ज्यादा महिलाओं की जमानत सुरक्षित
जैसा कि दिए गए ग्राफ से पता चलता है, कि ऐसी महिला उम्मीदवारों का अनुपात, जो चुनाव में जमानत जब्त होने से बचा पाई हैं या दूसरे शब्दों में कहें तो इतने वोट पाए कि राजनीतिक परिदृश्य पर उनकी मौजूदगी को गंभीरता से लिया जाए, अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर अधिक रहा है।
अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित सीटों पर महिलाओं का बेहतर प्रदर्शन
वर्ष 2002 में, सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए 314 सीटों में से महिलाओं ने 11 सीटों (3.5 फीसदी) पर जीत हासिल की है। जबकि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 89 सीटों में से 15 सीटों (16.9 फीसदी) पर महिलाओं ने जीत हासिल की है। वर्ष 2012 तक 318 सामान्य सीटों में से महिलाओं ने 22 सीटें (6.9 फीसदी ) जीती हैं जबकि आरक्षित 85 सीटों में से 13 ( 15.3 फीसदी ) महिलाओं के नाम रही है। अनुसूचित-जाति की सीटों से चुनाव लड़ने वाली महिलाओं को पास जीतने का मौका दोगुना था।