ग्रैंड स्टेयर्स : जहाँ भी ताज होटल होगा, एक ऐसी सीढ़ी ज़रूर होगी। मुँबई वाले ताज की तर्ज पर दिल्ली में भी ये सीढ़ियाँ बनी हैं जबकि अब ज़्यादातार लोग इलेक्ट्रानिक सीढ़ी से आते जाते हैं। इस सीढ़ी पर आप जो क़ालीन देख रहे हैं, वो सिंगल पीस है। कश्मीर से बनकर आई है। इसके पहले जो क़ालीन थी वो अठारह साल तक बिछी रही।
मुझे कहानियाँ अच्छी लगती हैं। जो बता रहा था उसे ध्यान से सुन रहा था। बावन सीढ़ियों तक एक ही क़ालीन भव्यता को प्राप्त हो रही थी। ताज होटल के बैंक्वेट हॉल तक आने के लिए यह सीढ़ी काम आती है। रोज़ाना कोई दो हज़ार लोग बैंक्वेट हॉल में आते जाते होंगे। यह भी पता चला कि चार कबीना मंत्री और दो राज्यमंत्री तो हर दिन किसी न किसी बहाने यहाँ आते ही रहते हैं।
सीढ़ियों की एक और कहानी है। दोनों तरफ आप हाथ से पकड़ कर चलने के लिए पीले रंग की रेलिंग देख रहे होंगे। एक बार जे आर डी टाटा इस होटल में आए। बैंक्वेट हॉल में जाना था। उन्होंने कहा कि मैं कैसे सीढ़ियों से उतरूंगा तो कोई बेरी साहब हैं उन्होंने टाटा का हाथ पकड़ लिया ताकि वे उतर सकें। जे आप डी टाटा ने कहा कि बेरी मैं तो टाटा हूँ । मेरा हाथ थामने के लिए पचास लोग मिल जायेंगे लेकिन दूसरे लोगों का क्या होगा। जब टाटा तीन घंटे बाद बैंक्वेट हॉल से बाहर आए तो रेलिंग लग चुकी थी !
होटल मैनेजमेंट एक दूसरी विधा है। मुझे होटल के के लोग बहुत अच्छे लगते हैं। आध्यात्मिक से। फल की चिंता से दूर काम किये जाते हैं। हिंसक नहीं लगते हैं। प्यार से बातें करते हैं। उनका असर मुझे पर ये होता है कि मेरा भी विचलित होना कम हो जाता है। होटल का माहौल भले भव्य होता है मगर पैसा हो तो सात्विक भी होता है! मुझे सबसे बातें करना अच्छा लगता है। तभी तो चलते फिरते आपके लिए एक कहानी मिल गई।