नई दिल्ली : तीन बार तलाक के मुद्दे पर बहस तेज होती जा रही है। केंद्र सरकार इसके विरोध में है ओर कुछ महिला नेता इस प्रथा को खत्म करने की मांग कर रही हैं जबकि मुस्लिम संगठनों का आरोप है कि सत्तारूढ़ दल उनके व्यक्तिगत कानून के खिलाफ युद्ध छेड़ने पर आमादा है। वैसे तो महिला नेता केंद्र के हलफनामे के बारे में कुछ भी टिप्पणी करने से बच रही हैं लेकिन ‘तीन बार तलाक’ के जरिए संबंध विच्छेद किए जाने की प्रथा की कड़ी आलोचना भी कर रही हैं।
नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री रह चुकीं मणिपुर की राज्यपाल नजमा हेपतुल्ला ने केंद्र के रूख पर तो कोई टिप्पणी नहीं की लेकिन पर्सनल लॉ के बारे में कहा कि ‘तीन बार तलाक’ प्रथा की विवेचना ‘‘गैर इस्लामिक’’ ढंग से कर ली गई है। माकपा की वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद सुहासिनी अली ने भी तीन बार तलाक तथा बहुविवाह प्रथा का विरोध करते हुए इसे खत्म करने की मांग की है।
ऑल इंडिया ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड केंद्र के हलफनामे का विरोध कर रहा है। केंद्र का कहना है कि मुस्लिम समुदाय में तीन बार तलाक की प्रथा, निकाह हलाला हलाला और बहुविवाह प्रथा पर लैंगिक समानता और धर्म निरपेक्षता को ध्यान में रखते हुए फिर से विचार किए जाने की जरूरत है। बोर्ड के साथ ही अन्य मुस्लिम संगठनों ने कहा है कि वे इस मसले में विधि आयोग की कार्रवाई का बहिष्कार करेंगे। उनका कहना है कि समान नागरिक संहिता भारत के बहुलतावाद को खत्म कर देगी।
यह विवाद तब पैदा हुआ जब विधि आयोग ने हाल ही में तीन बार तलाक के मुद्दे पर जनता की राय मांगी थी और पूछा था कि क्या इस प्रथा को खत्म कर देना चाहिए और क्या समान नागरिक संहिता को वैकल्पिक बनाया जाना चाहिए। सामािजक कार्यकर्ता शबनम हाशमी ने भी तीन तलाक की प्रथा को खत्म करने की मांग की है। भारत के संवैधानिक इतिहास में केंद्र सरकार ने पहली बार सात अक्तूबर को उच्चतम न्यायालय में तीन बार तलाक, निकाह हलाल और बहुविवाह प्रथा का विरोध किया है।