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तीसरा रास्ता

20 अगस्त 2022

24 बार देखा गया 24

मगध में शोर है कि मगध में शासक नहीं रहे

जो थे

वे मदिरा, प्रमाद और आलस्य के कारण

इस लायक

       नहीं रहे

कि उन्हें हम

      मगध का शासक कह सकें


लगभग यही शोर है

     अवंती में

यही कोसल में

     यही

     विदर्भ में

कि शासक नहीं

     रहे


जो थे

उन्हें मदिरा, प्रमाद और आलस्य ने

इस

     लायक नहीं

     रखा


कि उन्हें हम अपना शासक कह सकें

तब हम क्या करें?


शासक नहीं होंगे

     तो कानून नहीं होगा


कानून नहीं होगा

     तो व्यवस्था नहीं होगी


व्यवस्था नहीं होगी

    तो धर्म नहीं होगा


धर्म नहीं होगा

     तो समाज नहीं होगा


समाज नहीं होगा

    तो व्यक्ति नहीं होगा


व्यक्ति नहीं होगा

    तो हम नहीं होंगे


हम क्या करें?


कानून को तोड़ दें?


     धर्म को छोड़ दें?


          व्यवस्था को भंग करें?

मित्रो-

दो ही

     रास्ते हैं :

          दुर्नीति पर चलें

               नीति पर बहस

                    बनाए रखें


दुराचरण करें

     सदाचार की

          चर्चा चलाए रखें


असत्य कहें

    असत्य करें

         असत्य जिएँ


सत्य के लिए

      मर-मिटने की आन नहीं छोड़ें


     अंत में,


    प्राण तो

           सभी छोड़ते हैं


व्यर्थ के लिए

    हम

          प्राण नहीं छोड़ें

मित्रो,

तीसरा रास्ता भी

      है -


     मगर वह

       मगध,

          अवन्ती

            कोसल

              या

                विदर्भ

                   होकर नहीं

                       जाता।

श्री कान्त वर्मा की अन्य किताबें

82
रचनाएँ
श्री कान्त वर्मा की प्रसिद्ध कविताएँ
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श्रीकान्त वर्मा की कविताओं में कवि के अनुभव आज के जीवित संस्कारों से सीधे टकरा रहे हैं। कवि को मालूम है कि राजनीति के घुसपैठियों ने शब्दावली बदल-बदल कर लम्बे-चौड़े वादों से जनता को बहकाया है और जनता मूर्खों की तरह उस तरफ आशा लगाए बैठी है। श्रीकान्त वर्मा ने सारी परिस्थितियों के संयोजन में अपनी और युग - जीवन की विसंगतियों को एक साथ प्रस्तुत कर यथार्थ के साथ तीव्र और तीखी उत्तेजना को व्यंजित किया है। अनेक स्थलों पर उनका अनुभव आक्रोश की उत्तेजनाओं से मुक्त होकर कहीं अधिक गहरे स्तर पर व्यंजित हुआ है।उनकी कविताएँ वामपन्थी थीं और व्यवस्था विरोधी हैं। श्रीकान्त वर्मा की कविताएँ कविता के प्रचलित रूप का सचेत अतिक्रमण है। द्वंद्व या टकराहट यहाँ केवल शाब्दिक वस्तु में नहीं है बल्कि उसके बाहर दूर तक है। दृश्य और श्रव्य दोनों तरह की संवेदन-क्षमता का विस्तार इन कविताओं में दरअसल अर्थ का ही विस्तार है।
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भटका मेघ

20 अगस्त 2022
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भटक गया हूँ- मैं असाढ़ का पहला बादल श्वेत फूल-सी अलका की मैं पंखुरियों तक छू न सका हूँ किसी शाप से शप्त हुआ दिग्भ्रमित हुआ हूँ। शताब्दियों के अंतराल में घुमड़ रहा हूँ, घूम रहा हूँ। कालिदास मैं

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अनपहचाना घाट

20 अगस्त 2022
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धूप से लिपटे हुए धुएँ सरीखे केश, सब लहरा रहे हैं प्राण तेरे स्कंध पर !! यह नदी, यह घाट, यह चढ़ती दुपहरी सब तुझे पहचानते हैं । सुबह से ही घाट तुझको जोहता है, नदी तक को पूछती है, दोपहर, उन प

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रत्नदीप

20 अगस्त 2022
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इस नीले सिंधु तीर, एक शाम गीला एकान्त देख आँख डबडबाई थी और व्यथा की नन्ही जल चिड़िया मुझसे कुछ बोली थी । मैंने इस सिंधु को आश्वासन का एक पाल दिया था, कहाँ है ? अब भी यह सिंधु सब दिशाओं के कानो

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सूर्य के लिए

20 अगस्त 2022
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गहरे अँधेरे में, मद्धिम आलोक का वृत्त खींचती हुई बैठी हो तुम ! चूल्हे की राख-से सपने सब शेष हुए । बच्चों की सिसकियाँ भीतों पर चढ़ती छिपकलियों से बिछल गईं । बाज़ारों के सौदे जैसे जीवन के

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संगठन का अंकुर

20 अगस्त 2022
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तुम मेरे शत्रु हो मेरी हर अड़चन की जड़ में तुम ज़िंदा हो । तुम मेरे शत्रु हो मेरे सपनों की राखड़ में तुम ज़िंदा हो । मेरे चूल्हे में जो राख का बवंडर है उसके आकार में तुम्हारा ही मुखड़ा है । म

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स्वरों का समर्पण

20 अगस्त 2022
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डबडब अँधेरे में, समय की नदी में अपने-अपने दिये सिरा दो; शायद कोई दिया क्षितिज तक जा, सूरज बन जाए!! हरसिंगार जैसे यदि चुए कहीं तारे, अगर कहीं शीश झुका बैठे हों मेड़ों पर पंथी पथहारे, अगर किसी

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मन की चिड़िया

20 अगस्त 2022
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वह चिड़िया जो मेरे आँगन में चिल्लाई, मेरे सब पिछले जन्मों की संगवारिनी-सी इस घर आई; मैं उसका उपकार चुकाऊँ किन धानों से !! हर गुलाब को जिसने मेरे गीत सुनाए, हर बादल को जिसने मेरा नाम बताया, हर

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आभास

20 अगस्त 2022
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दूर उस अँधेरे में कुछ है, जो बजता है शायद वह पीपल है । वहाँ नदी-घाटों पर थक कोई सोया है शायद वह यात्रा है दीप बाल कोई, रतजगा यहाँ करता है शायद वह निष्ठा है ।

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गली का सूर्यपुत्र

20 अगस्त 2022
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 इस कुहरा डूबी, अंधियारी गली में भाग्य ने, मुझे जन्म दिया है जैसे कोई भटकी हुई चील हड्डी का टुकड़ा, खाई में छोड़ जाए । इसी गली ने मुझको पोषा है, मोक्कड़ पर उग आए मुझ जैसे बौने को, सूर्यपुत्

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आस्था

20 अगस्त 2022
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यह सूनसान पगडंडी, झींगुर की चौकी। ये बेलें जंगल की दुबके ख़रगोश की ये चौकड़ियाँ। यह टहलू की जमुहाई लेती हाँक और फिर सन्नाटा! फिर पत्तों की खड़खड़ झाड़ी, झुरमुट, झंखड़ में बिंधी हुई मेरी छाया।

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सन्नाटा

20 अगस्त 2022
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यह सन्नाटा जो ढलती दुपहर के तट पर संध्या के पीले फूल अंजुली से बिखेर अस्ताचल के तट पर सिर धर सो जाता है। यह किसी नाव के पाल खोल कुहरे में डूबी नदिया की लहरों में गुम हो जाता है। वह सदा अ

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संख्या के बच्चे

20 अगस्त 2022
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सच है ये शून्य हैं और तुम एक हो। बड़े शक्तिशाली हो, क्योंकि शून्य के पहले उसके दुर्भाग्य-से खड़े हो। अपनी आकांक्षा के क़ुतुब बने सांख्य! मत भूलो तुम भी आँकड़े हो। मत भूलो तुम केवल एक हो शू

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मेरे मन!

20 अगस्त 2022
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सच है ये शून्य हैं और तुम एक हो। बड़े शक्तिशाली हो, क्योंकि शून्य के पहले उसके दुर्भाग्य-से खड़े हो। अपनी आकांक्षा के क़ुतुब बने सांख्य! मत भूलो तुम भी आँकड़े हो। मत भूलो तुम केवल एक हो शू

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प्रतीक्षा

20 अगस्त 2022
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दीख नहीं पड़ते हैं अश्वारोही लेकिन सुन पड़ती है टाप; झेल रहा हूँ शाप।

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नगरनिवासी

20 अगस्त 2022
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रोज़ शाम सड़कों पर फटे हुए उड़ते सुबह के अख़बार!

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स्व-धन

20 अगस्त 2022
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सबने देखी कच्ची, मटियाई, दूधभरी मूँगफली किसी ने नहीं, केवल तूने ही ओ मेरी साँवरी- तू ही बो आई थी- तूने ही देखा : पृथ्वी की नाक में झूलता बुलाक धन!

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घास

20 अगस्त 2022
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अन्धकार कछुए-सा बैठा है पृथ्वी पर कछुए पर बैठा है नीला आकाश- इतने बड़े बोझ के नीचे भी दबी नहीं, छोटी-सी घास!

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मैं

20 अगस्त 2022
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मैं एक भागता हुआ दिन हूँ और रुकती हुई रात- मैं नहीं जानता हूँ मैं ढूँढ़ रहा हूँ अपनी शाम या ढूँढ़ रहा हूँ अपना प्रात! 

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दिनारम्भ (कविता)

20 अगस्त 2022
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शहरों की छतों में ह-ल-च-ल हुई मक्खियाँ बैठ गईं मँ-ड-रा अपनी-अपनी मेज़ों पर।

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प्रीति-भेंट

20 अगस्त 2022
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इतने दिनों के बाद अकस्मात मिले तो आँसुओं ने उसके उसे, मेरे मुझे भरमा दिया, आँसू जब थमे तो मैं कुछ और था, वह कुछ और- वह मेरी आँखों में, मैं उसकी आँखों में ढूँढ़ रहा था शंका, अविश्वास और याचना से ठ

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माँ की आँखें

20 अगस्त 2022
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मेरी माँ की डबडब आँखें मुझे देखती हैं यों जलती फ़सलें, कटती शाखें। मेरी माँ की किसान आँखें! मेरी माँ की खोई आँखें मुझे देखती हैं यों शाम गिरे नगरों को फैलाकर पाँखें। मेरी माँ की उदास आँखें।

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एक मुर्दे का बयान

20 अगस्त 2022
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मैं एक अदृश्य दुनिया में, न जाने क्या कुछ कर रहा हूँ। मेरे पास कुछ भी नहीं है- न मेरी कविताएँ हैं, न मेरे पाठक हैं न मेरा अधिकार है यहाँ तक कि मेरी सिगरटें भी नहीं हैं। मैं ग़लत समय की कविताएँ लि

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धुन्ध

20 अगस्त 2022
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चक्कर खाकर स-ह-सा दुनिया के किसी एक कोने में गिरता है आ-द-मी दूसरे कोने से उभरता है ल-ड़ा-का धुँध में डू-बी हुई है जय- प-ता-का सी-ना फुलाकर क-ह-ता है वह अ-प-ने आप से-

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दिनचर्या

20 अगस्त 2022
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एक अदृश्य टाइपराइटर पर साफ़, सुथरे काग़ज-सा चढ़ता हुआ दिन, तेज़ी से छपते मकान, घर, मनुष्य और पूँछ हिला गली से बाहर आता कोई कुत्ता । एक टाइपराइटर पृथ्वी पर रोज़-रोज़ छापता है दिल्ली, बम्बई,

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दिनारंभ

20 अगस्त 2022
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एक मारवाड़ी मुनीम जमुहाई लेता हुआ कुंजी का गुच्छा खोंसे अपनी टेंट में चलता चला चलता है दुकान की ओर बही खोल लिखता है श्री गणेशाय नमः, शुभ-लाभ। जमुहाई लेकर फिर एक बार जोरसे कहता है- ऊँ नमः शिवाय

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घर-धाम

20 अगस्त 2022
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मैं अब हो गया हूँ निढाल अर्थहीन कार्यों में नष्ट कर दिए मैंने        साल-पर-साल              न जाने कितने साल!              - और अब भी              मैं नहीं जान पाया                   है कहाँ

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एक और ढंग

20 अगस्त 2022
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भागकर अकेलेपन से अपने   तुममें मैं गया।     सुविधा के कई वर्ष      तुमने व्यतीत किए।          कैसे?            कुछ स्मरण नहीं।  मैं और तुम! अपनी दिनचर्या के          पृष्ठ पर             अंक

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फिर जन्म लेता है नगर

20 अगस्त 2022
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पौ फटी; हटता कुहर अँधेरे के बाद भी कुछ बच गया, आता नज़र। साफ़ पश्चिम की सड़क पर भागती गुमनाम लड़की ने कहा, फिर जन्म लेता है नगर!

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समाधि-लेख

20 अगस्त 2022
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हवा में झूल रही है एक डाल: कुछ चिड़ियाँ कुछ और चिड़ियों से पूछती है हाल एक स्त्री आईने के सामने संवारती है बाल कई साल हुए मैंने लिखी थी कुछ कविताएँ तृष्णाएँ साल ख़त्म होने पर उठकर अबाबीलों क

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बुखार में कविता

20 अगस्त 2022
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मेरे जीवन में एक ऐसा वक्त आ गया है जब खोने को कुछ भी नहीं है मेरे पास  दिन, दोस्ती, रवैया, राजनीति, गपशप, घास और स्त्री हालाँकि वह बैठी हुई है मेरे पास कई साल से क्षमाप्रार्थी हूँ मैं काल से

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जलसाघर

20 अगस्त 2022
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-यही सोचते हुए गुज़र रहा हूँ मैं कि गुज़र गई बगल से गोली दनाक से । राहजनी हो या क्रान्ति ? जो भी हो, मुझको गुज़रना ही रहा है शेष । देश नक्शे में देखता रहा हूँ हर साल नक्शा बदलता है कच्छ हो या

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ट्राय का घोड़ा

20 अगस्त 2022
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पहला बड़ी तेज़ी से गुज़रता है, दूसरा बगटूट भागता है-- उसे दम मारने की फुर्सत नहीं, तीसरा बिजली की तरह गुज़र जाता है, चौथा सुपरसौनिक स्पीड से ! कहाँ जा रहे हैं, वे ? क्यों भाग रहे हैं ? क्या

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प्रक्रिया

20 अगस्त 2022
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मैं क्या कर रहा था जब सब जयकार कर रहे थे? मैं भी जयकार कर रहा था  डर रहा था जिस तरह              सब डर रहे थे। मैं क्या कर रहा था जब सब कह रहे थे, 'अजीज मेरा दुश्मन है?' मैं भी कह रहा था,

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महामहिम

20 अगस्त 2022
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महामहिम! चोर दरवाज़े से निकल चलिए ! बाहर हत्यारे हैं ! बहुक़्म आप खोल दिए मैनें जेल के दरवाज़े, तोड़ दिया था करोड़ वर्षों का सन्नाटा महामहिम ! डरिए ! निकल चलिए ! किसी की आँखों में हया

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कलिंग

20 अगस्त 2022
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केवल अशोक लौट रहा है और सब कलिंग का पता पूछ रहे हैं केवल अशोक सिर झुकाए हुए है और सब विजेता की तरह चल रहे हैं केवल अशोक के कानों में चीख़                      गूँज रही है और सब हँसते-हँसत

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कोसल में विचारों की कमी है

20 अगस्त 2022
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महाराज बधाई हो;  महाराज की जय हो ! युद्ध नहीं हुआ  लौट गये शत्रु । वैसे हमारी तैयारी पूरी थी ! चार अक्षौहिणी थीं सेनाएं दस सहस्र अश्व लगभग इतने ही हाथी । कोई कसर न थी । युद्ध होता भी

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हस्‍तक्षेप

20 अगस्त 2022
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कोई छींकता तक नहीं इस डर से कि मगध की शांति भंग न हो जाए, मगध को बनाए रखना है, तो, मगध में शांति रहनी ही चाहिए मगध है, तो शांति है कोई चीखता तक नहीं इस डर से कि मगध की व्‍यवस्‍था में दखल

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मगध

20 अगस्त 2022
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सुनो भई घुड़सवार, मगध किधर है मगध से आया हूँ मगध मुझे जाना है किधर मुड़ूँ उत्तर के दक्षिण या पूर्व के पश्चिम में? लो, वह दिखाई पड़ा मगध, लो, वह अदृश्य - कल ही तो मगध मैंने छोड़ा था

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काशी में शव

20 अगस्त 2022
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तुमने देखी है काशी? जहाँ, जिस रास्ते जाता है शव  उसी रास्ते आता है शव! शवों का क्या शव आएँगे, शव जाएँगे  पूछो तो, किसका है यह शव? रोहिताश्व का? नहीं, नहीं, हर शव रोहिताश्व नहीं हो सकता

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काशी का न्याय

20 अगस्त 2022
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सभा बरखास्त हो चुकी सभासद चलें जो होना था सो हुआ अब हम, मुँह क्यों लटकाए हुए हैं? क्या कशमकश है? किससे डर रहे हैं? फैसला हमने नहीं लिया - सिर हिलाने का मतलब फैसला लेना नहीं होता हमने तो सो

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तीसरा रास्ता

20 अगस्त 2022
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मगध में शोर है कि मगध में शासक नहीं रहे जो थे वे मदिरा, प्रमाद और आलस्य के कारण इस लायक        नहीं रहे कि उन्हें हम       मगध का शासक कह सकें लगभग यही शोर है      अवंती में यही कोसल में  

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कुछ का व्यवहार बदल गया

20 अगस्त 2022
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कुछ का व्यवहार बदल गया। कुछ का नहीं बदला। जिनसे उम्मीद थी, नहीं बदलेगा उनका बदल गया। जिनसे आशंका थी, नहीं बदला। जिन्हें कोयला मानता था हीरों की तरह चमक उठे। जिन्हें हीरा मानता था कोयलों की

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राजनीतिज्ञों ने मुझे

20 अगस्त 2022
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राजनीतिज्ञों ने मुझे पूरी तरह भुला दिया। अच्छा ही हुआ। मुझे भी उन्हें भुला देना चाहिये। बहुत से मित्र हैं, जिन्होंने आँखे फेर ली हैं, कतराने लगे हैं शायद वे सोचते हैं अब मेरे पास बचा क्या है

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कोसल में विचारों की कमी है

20 अगस्त 2022
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महाराज बधाई हो; महाराज की जय हो ! युद्ध नहीं हुआ  लौट गये शत्रु । वैसे हमारी तैयारी पूरी थी ! चार अक्षौहिणी थीं सेनाएं दस सहस्र अश्व लगभग इतने ही हाथी । कोई कसर न थी । युद्ध होता भी तो नत

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कलिंग

20 अगस्त 2022
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केवल अशोक लौट रहा है और सब कलिंग का पता पूछ रहे हैं केवल अशोक सिर झुकाए हुए है और सब विजेता की तरह चल रहे हैं केवल अशोक के कानों में चीख़                      गूँज रही है और सब हँसते-हँसत

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आस्था की प्रतिध्वनियां

20 अगस्त 2022
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जीवन का तीर्थ बनी जीवन की आस्था। आंसू के कलश लिए हम तुम तक आती हैं। हम तेरी पुत्री हैं, तेरी प्रतिध्वनियां हैं। अपने अनागत को हम यम के पाशों से वापस ले आने को आतुर हैं। जीवन का तीर्थ बनी ओ मन की

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टूटी पडी है परम्परा

20 अगस्त 2022
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टूटी पडी है परम्परा शिव के धनुष-सी रखी रही परम्परा कितने निपुण आए-गए धनुर्धारी। कौन इसे बौहे? और कौन इसे कानों तक खींचे? एक प्रश्नचिह्न-सी पडी रही परम्परा। मैं सबमें छोटा और सबसे अल्पायु- मैं

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महामहिम

20 अगस्त 2022
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महामहिम! चोर दरवाज़े से निकल चलिए ! बाहर हत्यारे हैं ! बहुक़्म आप खोल दिए मैनें जेल के दरवाज़े, तोड़ दिया था करोड़ वर्षों का सन्नाटा महामहिम ! डरिए ! निकल चलिए ! किसी की आँखों में हया

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ऊब

20 अगस्त 2022
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स्वेद में डूबे हुए सब जन्म पर पछता रहे हैं पालने में शिशु। चौंक या खिसिया रहे या पेड़ पर फन्दा लगा कर आत्महत्या कर रहे हैं शहर के मैदान। उमस में डूबे हुए हैं घर सबेरा घोंसले और घास आ रहा या ज

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हवन

20 अगस्त 2022
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चाहता तो बच सकता था मगर कैसे बच सकता था जो बचेगा कैसे रचेगा पहले मैं झुलसा फिर धधका चिटखने लगा कराह सकता था मगर कैसे कराह सकता था जो कराहेगा कैसे निबाहेगा न यह शहादत थी न यह उत्सर्ग

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भद्रवंश के प्रेत

20 अगस्त 2022
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छज्जों और आईनों, ट्रेनों और दूरबीन कारों और पुस्तकों यानी सुविधाओं के अद्वितीय चश्मों से मुझे देखने वाले अपमानित नगरों में सम्मानित नागरिकों मुझे ध्यान से देखो जेबी झिल्लियाँ सब उतार मुझे नंगी

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एक और ढंग

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भागकर अकेलेपन से अपने   तुममें मैं गया।     सुविधा के कई वर्ष      तुमने व्यतीत किए।          कैसे?            कुछ स्मरण नहीं।  मैं और तुम! अपनी दिनचर्या के          पृष्ठ पर             अंक

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काशी का न्याय

20 अगस्त 2022
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सभा बरखास्त हो चुकी सभासद चलें जो होना था सो हुआ अब हम, मुँह क्यों लटकाए हुए हैं? क्या कशमकश है? किससे डर रहे हैं? फैसला हमने नहीं लिया  सिर हिलाने का मतलब फैसला लेना नहीं होता हमने तो सोच

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काशी में शव

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तुमने देखी है काशी? जहाँ, जिस रास्ते जाता है शव - उसी रास्ते आता है शव! शवों का क्या शव आएँगे, शव जाएँगे - पूछो तो, किसका है यह शव? रोहिताश्व का? नहीं, नहीं, हर शव रोहिताश्व नहीं हो सकत

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घर-धाम

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मैं अब हो गया हूँ निढाल अर्थहीन कार्यों में नष्ट कर दिए मैंने        साल-पर-साल              न जाने कितने साल!              - और अब भी              मैं नहीं जान पाया                   है कहाँ

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टूटी पड़ी है परंपरा

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टूटी पड़ी है परंपरा शिव के धनुष-सी रखी रही परंपरा कितने निपुण आए-गए धनुर्धारी। कौन इसे बौहे? और कौन इसे कानों तक खींचे? एक प्रश्नचिह्न-सी पड़ी रही परंपरा। मैं सबमें छोटा और सबसे अल्पायु - मैं

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नकली कवियों की वसुंधरा

20 अगस्त 2022
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धन्य यह वसुंधरा! मुख में इतनी सारी नदियों का झाग,       केशों में अंधकार! एक अंतहीन प्रसव-पीड़ा में पड़ी हुई    पल-पल     मनुष्य उगल रही है,       नगर फेंक रही है,         बिलों से मनुष्य निक

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प्रक्रिया

20 अगस्त 2022
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मैं क्या कर रहा था जब सब जयकार कर रहे थे? मैं भी जयकार कर रहा था - डर रहा था जिस तरह              सब डर रहे थे। मैं क्या कर रहा था जब सब कह रहे थे, 'अजीज मेरा दुश्मन है?' मैं भी कह रहा था

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बुखार में कविता

20 अगस्त 2022
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मेरे जीवन में एक ऐसा वक्त आ गया है जब खोने को कुछ भी नहीं है मेरे पास  दिन, दोस्ती, रवैया, राजनीति, गपशप, घास और स्त्री हालाँकि वह बैठी हुई है मेरे पास कई साल से क्षमाप्रार्थी हूँ मैं काल से

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माया-दर्पण

20 अगस्त 2022
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 देर से उठकर       छत पर सर धोती             खड़ी हुई है देखते-ही-देखते             बड़ी हुई है       मेरी प्रतिभा लड़ते-झगड़ते       मैं आ पहुँचा हूँ उखड़ते-उखड़ते           भी             

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हस्तक्षेप

20 अगस्त 2022
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कोई छींकता तक नहीं इस डर से कि मगध की शांति भंग न हो जाय, मगध को बनाए रखना है, तो, मगध में शांति रहनी ही चाहिए मगध है, तो शांति है कोई चीखता तक नहीं इस डर से कि मगध की व्यवस्था में दखल न

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हस्तिनापुर का रिवाज

20 अगस्त 2022
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मैं फिर कहता हूँ धर्म नहीं रहेगा, तो कुछ नहीं रहेगा  मगर मेरी कोई नहीं सुनता! हस्तिनापुर में सुनने का रिवाज नहीं  जो सुनते हैं बहरे हैं या अनसुनी करने के लिए नियुक्त किए गए हैं मैं फिर कह

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तीसरा रास्ता

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मगध में शोर है कि मगध में शासक नहीं रहे जो थे वे मदिरा, प्रमाद और आलस्य के कारण इस लायक        नहीं रहे कि उन्हें हम       मगध का शासक कह सकें लगभग यही शोर है      अवंती में यही कोसल में  

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एक मुर्दे का बयान

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मैं एक अदृश्य दुनिया में, न जाने क्या कुछ कर रहा हूँ। मेरे पास कुछ भी नहीं है न मेरी कविताएँ हैं, न मेरे पाठक हैं न मेरा अधिकार है यहाँ तक कि मेरी सिगरटें भी नहीं हैं। मैं ग़लत समय की कविताएँ लिख

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जलसाघर

20 अगस्त 2022
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-यही सोचते हुए गुज़र रहा हूँ मैं कि गुज़र गई बगल से गोली दनाक से । राहजनी हो या क्रान्ति ? जो भी हो, मुझको गुज़रना ही रहा है शेष । देश नक्शे में देखता रहा हूँ हर साल नक्शा बदलता है कच्छ हो या

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ट्राय का घोड़ा

20 अगस्त 2022
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पहला बड़ी तेज़ी से गुज़रता है, दूसरा बगटूट भागता है-- उसे दम मारने की फुर्सत नहीं, तीसरा बिजली की तरह गुज़र जाता है, चौथा सुपरसौनिक स्पीड से ! कहाँ जा रहे हैं, वे ? क्यों भाग रहे हैं ? क्या

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प्रक्रिया

20 अगस्त 2022
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मैं क्या कर रहा था जब सब जयकार कर रहे थे? मैं भी जयकार कर रहा था  डर रहा था जिस तरह              सब डर रहे थे। मैं क्या कर रहा था जब सब कह रहे थे, 'अजीज मेरा दुश्मन है?' मैं भी कह रहा था,

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महामहिम

20 अगस्त 2022
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महामहिम! चोर दरवाज़े से निकल चलिए ! बाहर हत्यारे हैं ! बहुक़्म आप खोल दिए मैनें जेल के दरवाज़े, तोड़ दिया था करोड़ वर्षों का सन्नाटा महामहिम ! डरिए ! निकल चलिए ! किसी की आँखों में हया

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मैं

20 अगस्त 2022
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मैं एक भागता हुआ दिन हूँ और रुकती हुई रात- मैं नहीं जानता हूँ मैं ढूँढ़ रहा हूँ अपनी शाम या ढूँढ़ रहा हूँ अपना प्रात!

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कोसल में विचारों की कमी है

20 अगस्त 2022
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महाराज बधाई हो; महाराज की जय हो ! युद्ध नहीं हुआ  लौट गये शत्रु । वैसे हमारी तैयारी पूरी थी ! चार अक्षौहिणी थीं सेनाएं दस सहस्र अश्व लगभग इतने ही हाथी । कोई कसर न थी । युद्ध होता भी तो

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मगध के लोग

20 अगस्त 2022
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मगध के लोग मृतकों की हड्डियां चुन रहे हैं कौन-सी अशोक की हैं? और चन्द्रगुप्त की? नहीं, नहीं ये बिम्बिसार की नहीं हो सकतीं अजातशत्रु की हैं, कहते हैं मगध के लोग और आँसू बहाते हैं स्वाभा

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फागुन

20 अगस्त 2022
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फागुन भी नटुआ है, गायक है, मंदरी है। अह। इसकी वंशी सुन सुधियां बौराती हैं।    अपनी दुबली अंगुली से जब यह जादूगर कहीं तमतमायी दुपहर को छू देता है, महुए के फूल कहीं चुपके चू जाते हैं और किसी झुं

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स्वरों का समर्पण

20 अगस्त 2022
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डबडब अँधेरे में, समय की नदी में अपने-अपने दिये सिरा दो; शायद कोई दिया क्षितिज तक जा, सूरज बन जाए!! हरसिंगार जैसे यदि चुए कहीं तारे, अगर कहीं शीश झुका बैठे हों मेड़ों पर पंथी पथहारे, अगर किसी

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एक और ढंग

20 अगस्त 2022
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भागकर अकेलेपन से अपने  तुममें मैं गया।  सुविधा के कई वर्ष  तुममें व्यतीत किए।  कैसे?  कुछ स्मरण नहीं।  मैं और तुम! अपनी दिनचर्या के  पृष्ठ पर  अंकित थे  एक संयुक्ताक्षर!  क्या कहूँ! लिपि की

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वह मेरी नियति थी

20 अगस्त 2022
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कई बार मैं उससे ऊबा  और  नहीं—जानता—हूँ—किस ओर  चला गया।  कई बार मैंने संकल्प किया।  कई बार  मैंने अपने को  विश्वास दिलाने की कोशिश की हममें से हरेक  संपूर्ण है।  कई बार मैंने निश्चय किया 

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मणिकर्णिका का डोम

20 अगस्त 2022
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डोम मणिकर्णिका से अक्सर कहता है,  दु:खी मत होओ  मणिकर्णिका  दु:ख तुम्हें शोभा नहीं देता  ऐसे भी श्मशान हैं  जहाँ एक भी शव नहीं आता  आता भी है,  तो गंगा में  नहलाया नहीं जाता 

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जो युवा था

20 अगस्त 2022
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लौटकर सब आएँगे  सिर्फ़ वह नहीं  जो युवा था युवावस्था लौटकर नहीं आती।  अगर आया भी तो  वही नहीं होगा।  पके बाल, झुर्रियाँ,  ज़रा,  थकान  वह बूढ़ा हो चुका होगा।  रास्ते में  आदमी का बूढ़ा

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दिनारंभ

20 अगस्त 2022
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शहरों के छतों में  ह-ल-च-ल  हुईं  मक्खियाँ  बैठ गईं  मँ-ड़-रा  अपनी-अपनी  मेज़ों  पर। 

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जलसाघर

20 अगस्त 2022
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यही सोचते हुए गुज़र रहा हूँ मैं कि गुज़र गई बग़ल से गोली दनाक से। राहजनी है या क्रांति? जो भी हो, मुझको गुज़रना ही रहा है शेष। देश नक़्शे में देखता रहा हूँ हर साल नक़्शा बदलता है कच्छ हो या

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बाबर और समरकंद

20 अगस्त 2022
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बाबर समरकंद के रास्ते पर है  समरकंद बाबर के रास्ते पर  बाबर हर थोड़ी दूर पर  पूछता है,  समरकंद अब कितनी दूर है?  बाबर को कोई जवाब नहीं मिलता।  ऊपर चिलचिलाती हुई धूप है  नीचे धूल है,  बाबर

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वसंतसेना

20 अगस्त 2022
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सीढ़ियाँ चढ़ रही है  वसंतसेना  अभी तुम न समझोगी  वसंतसेना  अभी तुम युवा हो  सीढ़ियाँ समाप्त नहीं  होती  उन्नति की हों  अथवा  अवनति की  आगमन की हों   या  प्रस्थान की  अथवा  अवसान की 

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नगर निवासी

20 अगस्त 2022
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रोज़ शाम  सड़कों पर  फटे  हुए उड़ते  सुबह के  अख़बार! 

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