
लखनऊ: पारिवारिक महाभारत के कारण तीसरे चरण के चुनाव में मुख्य मंत्री अखिलेश यादव के राजनीति क कौशल की कठिन अग्निपरीक्षा होगी। अपनी कर्मभूमि के प्रति मुलायम सिंह यादव की अभूतपूर्व उदासीनता, टिकट कटने से असरदार सपाइयों मे उपजा प्रबल आक्रोश और पूरे दमखम से बागी सपाइयों के चुनावी जंग में उतरने से सियासी हालात पर काबू पा सकना अखिलेश यादव के लिये किसी चमत्कार से कम नहीं होगा।
इस चुनाव के तीसरे चरण में सपा के संरक्षक मुलायम सिंह यादव की जन्म और कर्मभूमि में भी मतदान होने जा रहा है। यहां के जर्रे जर्रे मे नेताजी के राजनीतिक जीवन कीे अथ से लेकर इति तक की गाथा सुनाई पड रही है। इस भूखंड के इटावा और मैनपुरी जिलों से अपनी राजनीति का श्रीगणेश कर मुलायम सिंह यादव तीन बार मुख्य मंत्री और केंद्र सरकार में रक्षामंत्री भी बने। उनके लगभग 50 साल के सियासी सफर में यह पहला मौका है, जब वह इस चुनाव में इतने उदासीन और निरपेक्ष से दिखाई पडे। इसका असर पडना सुनिश्चित है।
निस्संदेह, इसे कालचक्र की महिमा अथवा राजनीतिक विडंबना कहिये, आज यह समूचा क्षेत्र सपाइयों के महाभारत का कुरुक्षेत्र बन चुका है। इसी के चलते यहां की धरती की कोख से उपजे मुलायम सिंह यादव इस चुनाव में यहां अभी तक सिर्फ दो बार ही आ सके हैं। वह भी सिर्फ अपने भाई शिवपाल सिंह यादव को विजयश्री दिलाने मंशा से उनके चुनाव क्षेत्र जसवंतनगर की दो जनसभाओं में। इस सीट से वह अब तक सात बार विधायक हो सके है। चार बार से शिवपाल सिंह यादव भी यही से विधायक होते चले आ रहे हैं।
पिछले लगभग 25 सालों में यह पहला मौका है, जब वह अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं रह सके हैं। निश्चय ही यह पीडा उन्हें कचोट रही होगी। इस विषम स्थिति में मुख्य मंत्री अखिलेश यादव के लिये इस बार भी यहां अपनी पार्टी का परचम फहराना आसान नहीं होगा। इसके लिये उन्हें बडी विकट अग्निपरीक्षा से गुजरना होगा। याद दिला दें कि 2012 के विधान सभाई चुनाव में इन्हीं 12 जिलों की 69 सीटों में से 55 सीटें सिर्फ सपा की ही झोली में गयी थी। भाजपा और बसपा को क्रमशःः पांच पांच और कांगे्रस को सिर्फ तीन सीटें ही मिल सकी थी। दस जिलों में तो भाजपा और बसपा अपना खाता तक नहीं खोल सकी थी।
इस बार पारिवारिक महाभारत के कारण यहां का सियासी खाका ही पूरी तरह बदल चुका है। मुलायम सिंह यादव के तमाम करीबियों के सपा से टिकट काटे जा चुके हैं। काफी संख्या में असरदार सपाइयों ने विक्षुब्ध मन से पार्टी से अपना नाता ही तोड लिया है। सपा के बागी उम्मीदवार चुनावी जंग में उतरकर अखिलेश यादव को ललकार रहे हैं। इस स्थिति पर काबू पाकर 2012 जैसी कामयाबी का परचम फहरा सकना अखिलेश यादव के लिये बहुत कठिन होगा। बहरहाल, इस चरण में यहां के प्रत्याशियों की कुल संख्या 826 है। इस बार करोडपति प्रत्याशियों की संख्या कम हुई है। 31 फीसदी करोडपति उम्मीदवार हैं। इनमें भाजपा के प्रत्याशी सबसे ज्यादा हैं। महिला प्रत्याशियों की संख्या 12 प्रतिशत होने से उनमें वृद्धि हुई है। भाजपा ने 58 प्रत्याशियों में से 13, बसपा ने 69 में से 5 और सपा में 59 में से 9 महिलाओं को टिकट दिये हैं। दागी उम्मीदवारों की संख्या भी अपेक्षाकृत कम हुई है। आपराधिक पृष्ठभूमि के कुल 110 प्रत्याशी हैं। इनमें भी 10 प्रतिशत पर गंभीर आपराधिक मामले हैं। कांग्रेस ने सबसे अधिक संख्या में दागियों को टिकट दिये हैं और सपा ने सबसे कम। सुशिक्षित उम्मीदवारों की संख्या 51 प्रतिशत है, जो दूसरे चरण के ऐसे 43 फीसदी उम्मीदवारों से अधिक है।