सच है की तुमसे है ज़्यादा,
तुम्हारा ख़्याल ख़ूबसूरत
क्यूँकि इसमें हक़ीक़त के
दाग़ों का शुमार नहीं
ढल जाता है ये मेरी पसंद से …
घंटो बैठता है मेरे नज़दीक ये
मेरी आँखों में आँखें डाल,
पकड़ कर मेरे हाथो को
दे जाता है गरमाहट
ठंडी अकेली शामों में अक्सर…
मेरी उदासियों का गवाह बनके
चुपचाप रहता है नज़दीक मेरे
बिना किसी चाहत के, फ़रमाइश के
मेरी ख़ामोशियों से बात करता हुआ ये
दे जाता है फिर से उठने की तमन्ना
और ज़िंदगी की भीड़ में शामिल
होने की हिम्मत …
कुछ भी तो नहीं माँगता ये मुझसे
बस शामिल रहता है मुझमें
हर जगह हर समय
हाँ ये सच है की तुमसे है ज़्यादा
तुम्हारा ख़्याल ख़ूबसूरत ….
By – Sneha Dev
7/09/2016