कोरा मन…
कोरा सा मन, कोरा है दिन, औऱ मेरा कागज़ भी,
लिख दूँ सुन्दर इसमें कुछ मैं, या बहा दूँ बना नावं इसकी,
धीमी धीमी लहराती पवन, मन तरंग हुई पतंग,
बहती हवा से, उलझता पानी,
झन झन, कल कल आती धवनि,
रेत किनारे , पत्थरों को जैसे,
सहला के पिघलने को कहती लहर,
हर कोशिश में छोड़ जाती है छाप अपनी,
पत्थर अडिग है, लहर को ज़िद है,
न बहो संग तो क्या, चुभते किनारे तो टूटेंगे,
शायद बन पाओ तब तुम, किसी के पाँव की ठहर,
मैं भी तो बनी हूँ इसी रेत , हवा और पानी से,
मिलने से पहले इसमें फिर से,
काश कोई छाप छोड़ पाती मैं भी,
कोरा सा मन, कोरा है दिन, औऱ मेरा कागज़ भी…
By- Sneha Dev
9/2/15