गर रहती ख़ामोश तो
बदल जाते लफ़्ज़ ज़हर में
और मैं मर जाती ...
आते जो लफ़्ज़ बाहर..
रिश्ते मर जाते,
नुक़सान तो आख़िर हुआ
मेरा ही इस सफ़र में...
By - Sneha
13 जून 2016
गर रहती ख़ामोश तो
बदल जाते लफ़्ज़ ज़हर में
और मैं मर जाती ...
आते जो लफ़्ज़ बाहर..
रिश्ते मर जाते,
नुक़सान तो आख़िर हुआ
मेरा ही इस सफ़र में...
By - Sneha
27 फ़ॉलोअर्स
अभी तो शुरुआत है, अपने बारे में
कुछ समय बाद लिखना चाहूंगी.
(सिमित साँस, स्वपन अनंत, अंतरद्वंद )
Dअच्छी रचना उसे हम बोल क्या बोलें जो दिल को दर्द दे जाये सुकूं दे चैन दे दिल को , उसी को बोल बोलेंगें मदन मोहन सक्सेना
30 जून 2016
स्नेहा जी ! आपके शब्दों मैं बहुत गहराई है ,मैं खुद साहित्य्कार हूँ ; आप खूब लिखा करो ,मेरी शुभकामना
14 जून 2016
अच्छी रचना है ।
14 जून 2016
अच्छा है | बदल जाते लफ्ज जहर मैं |
13 जून 2016