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"उग्र बनाम मंटो"

Dr. Mohd. Israr

14 अध्याय
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2 पाठक
13 अगस्त 2022 को पूर्ण की गई
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उर्दू में सआदत हसन मंटो की बहुत सी कहानियाँ पढ़ने के बाद विचार आया कि हिंदी में भी मंटो जैसा कोई विवादस्पद लेखक है? काफी खोजबीन करने पर ज्ञात हुआ कि ऐसा लेखक तो पाण्डेय बेचन शर्मा "उग्र" ही है. उग्र की अनेक कहानियाँ और उपन्यास पढ़ने के बाद विचार आया कि क्यों न उग्र और मंटो की तुलना की जाए. उसी के परिणाम स्वरुप इस किताब को लिखने की प्रेरणा मिली. 

ugra banaam manto quot

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पुस्तक के भाग

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भूमिका

13 अगस्त 2022
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 जब दो साहित्यकारों की तुलना की जाती है तो उनके व्यक्तित्व, रचनागत साम्य-वैषम्य, कृतियों की विषयवस्तुगत विशिष्टताएं, सामाजिक-सांस्कृतिक दृष्टिकोण और युगीन प्रवृत्तियों आदि को आधार बनाया जाता है। इस प्

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"उग्र"- एक परिचय

13 अगस्त 2022
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 हिन्दी साहित्य में ‘उग्र’ अपनी ही तरह के साहित्यकार माने जाते हैं। जिस तरह उनका नाम थोड़ा विचित्र सा है उसी प्रकार उनका साहित्य भी अपने ही ढंग का है। नाम ही देखिए आगे-पीछे जाति सूचक विशेषण और उससे जुड़

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"उग्र"- साहित्यिक अवदान

13 अगस्त 2022
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 ‘उग्र’ ने लेखन की शुरूआत काव्य से की थी। वे अपने स्कूल के दिनों से ही काव्य रचना करने लगे थे। साहित्य के प्रति उनका विशेष अनुराग बढ़ा था, लाला भगवानदीन के सम्पर्क में आने के पश्चात। जिनकी प्रेरणा से उ

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उग्र के साहित्य की मूल चेतना और प्रतिपाद्य विषय

13 अगस्त 2022
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 जिस समय ‘उग्र’ का साहित्य-क्षेत्र में प्रवेश हुआ, उस समय तक छायावाद का आगमन हो चुका था। पद्य हो या फिर गद्य, कल्पना की ऊँची उड़ाने भरकर साहित्य की रचना हो रही थी। अतः समकालिक लेखक-कवियों पर भी इस साहि

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क्या थे उग्र पर आक्षेप के कारण?

13 अगस्त 2022
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 ‘उग्र’ ने ऐसे समय में लिखना आरम्भ किया था, जब हिन्दी साहित्य में ‘आदर्शवाद’ का बोलबाला था और साहित्य यथार्थ से अधिक कल्पना में लिखा जाता था। ऐसे समय में जब उन्होंने अपनी कलम की नोक से समाज के यथार्थ

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उग्र साहित्य की प्रासंगिकता

13 अगस्त 2022
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 साहित्यकारों की प्रासंगिकता और अप्रासंगिकता के बारे में अक्सर प्रश्न उठाया जाता रहा है। लेकिन जो साहित्य विभिन्न समस्याओं और सत्यों का दर्शन कराता हो, उसकी प्रासंगिकता कभी समाप्त नहीं होती, क्योंकि व

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मंटो- एक परिचय

13 अगस्त 2022
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 दो साहित्यकारों की जब आपस में तुलना की जाती है तो उनके जीवन के उतार-चढ़ाव, साहित्यिक अवदान, सामाजिक-सांस्कृतिक दृष्टिकोण, साहित्यिक विषयवस्तुगत विशेषताएं आदि को आधार बनाना ही उचित होता है। पूर्व में ह

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मंटो की साहित्य यात्रा

13 अगस्त 2022
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 सआदत हसन मंटो ने अपने जीवन में कहानियों के अतिरिक्त एक उपन्यास, फिल्मों और रेडियो नाटकों की पटकथा, निबंध-आलेख, संस्मरण आदि लिखे। लेकिन उसकी प्रसिद्धि मुख्य रूप से एक कहानीकार की है। चेखव के बाद मंटो

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मंटो के साहित्य की मूल चेतना और प्रतिपाद्य विषय

13 अगस्त 2022
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 मंटो आज न केवल उर्दू बल्कि समस्त भारतीय भाषाओं में बड़े चाव से पढ़े जाते हैं। हिन्दी में तो उनकी सम्पूर्ण रचनाएं उपलब्ध हैं। उनकी ‘टोबा टेकसिंह’ और ‘खोल दो’ कहानियों को मैंने संस्कृत में भी पढ़ा है। लेक

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मंटो पर आक्षेप- कुछ उलझे सवाल

13 अगस्त 2022
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 मंटो का लेखन ज़बरदस्त प्रतिरोध का लेखन है। यही उसके लेखन की शक्ति भी है। वह दौर ही शायद ऐसा था कि साहित्य से हथियार का काम लेने की अपेक्षा की जाती थी। मंटो ने इसका भरपूर लाभ उठाया और अपनी कहानियों से

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मंटो के साहित्य की प्रासंगिकता

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 सआदत हसन मंटो नैसर्गिक प्रतिभा के धनी और स्वतन्त्र विचारों वाले लेखक थे। वे ऐसे विलक्षण कहानीकार थे जिन्होंने अपनी कहानियों से समाज में अभूतपूर्व हलचल उत्पन्न की और उर्दू कथा-साहित्य को नई ऊँचाईयों त

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उग्र और मंटो- तुलनात्मक बिंदु

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 पिछले अध्यायों में हमने ‘उग्र’ और मंटो के व्यक्तित्व और कृतित्त्व को अलग-अलग रूपों और सन्दर्भों में जानने-समझने का प्रयास किया है। अब हम दोनों साहित्यकारों की एक साथ तुलना करके देखते हैं कि वे कहाँ ए

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उग्र और मंटो- समानताएं और असमानताएं

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 ‘उग्र’ और मंटो ने अपने समय के सवालों से सीधे साक्षात्कार करते हुए उन्हें अपना रचनात्मक उपजीव्य बनाया। वे विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी तरह जिए और अपनी तरह की कहानियाँ लिखी। इस कारण उन्होंने बहुत चो

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परिशिष्ट

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 सन्दर्भ सूची-  आलोचनात्मक-ऐतिहासिक व अन्य ग्रन्थ :-  1. पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ : अपनी खबर (आत्मकथा), राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पेपर बैक्स, दूसरा संस्करण, 2006।  2. डा0 भवदेव पांडेय : ‘उग्र’ का

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